दक्षिण एशिया उपग्रह जीसैट-9 से अंतरिक्ष कूटनीति की ओर भारत ने बढ़ाए कदम

जीसैट-9 को एक तरफ दक्षिण एशियाई देशों के बीच दोस्ती के रूप में देखा जा रहा है, तो दूसरी तरफ इसे प्रधानमंत्री मोदी की एक और जीत के रूप में दर्ज किया जा रहा है। क्योंकि भाजपा शासन में विकास के पथ पर इसरो ने अब तक कई उपलब्धियों हासिल की है, जिनने विश्व स्तर पर पहचान बनाई है। इस उपग्रह की लागत तकरीबन 235 करोड़ रूपये है।

भारत ने पड़ोसी मुल्कों को एक नायाब तोहफा देते हुए दक्षिण एशिया संचार उपग्रह का प्रक्षेपण किया। भारत के इस कदम को दोस्ती के तोहफे के रूप में देखा जा रहा है। इससे समझौते के नये आयाम खुलेंगे। ये उपग्रह कई मायनों में खास है, क्योंकि ये दक्षिणी देशों से ना सिर्फ संचार के लिए फायदेमंद साबित होगा बल्कि प्राकृतिक आपदा जैसी सूचनाएं देने में भी सहायक होगा।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन द्वारा निर्मित नवीनतम संचार उपग्रह जीसैट-9 को एसएएस रोड पिग्गीबैक कहा जाता है, जिसे 50 मीटर लंबे रॉकेट स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन वाले जीएसएलवी से प्रक्षेपित किया गया है। एक तरफ इसे दोस्ती के रूप में देखा जा रहा है, तो दूसरी तरफ इसे प्रधानमंत्री मोदी की एक और जीत के रूप में दर्ज किया जा रहा है। क्योंकि भाजपा शासन में विकास के पथ पर इसरो ने अब तक कई उपलब्धियों हासिल की जिसने विश्व स्तर पर पहचान बनाई है। इस उपग्रह की लागत तकरीबन 235 करोड़ रूपये है।

इस दक्षिण एशियाई सैटेलाइट को भारत की अंतरिक्ष कूटनीति के तौर पर देखा जा रहा है। इस उपग्रह से सीधा फायदा नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, भारत, मालदीव, श्रीलंका और अफगानिस्तान को होने वाले है, ये वो सभी देश है जिनसे भारत की दोस्ती काफी अच्छी है। पाकिस्तान इसमें शामिल नहीं है। हर बुरे वक्त में भारत ने इन देशों का साथ दिया है।

साभार : गूगल

मोदी जमीनी और राजनैतिक स्तर पर इन देशों के साथ हाथ मिलाएंगें तो दूसरी तरफ ये उपग्रह अन्तरिक्ष में भी इन देशों के बीच संबंधों की अदृश्य डोर स्थापित करेगा। भारत का ये शांति दूत संचार का नया माध्यम बनते हुए विभिन्न देशों में टीवी कार्यक्रमों का प्रसारण करेगा। किसी भी आपदा के दौरा उनकी संचार सुविधाएं बेहतर होंगी, ताकि जरूरत पड़ने पर सभी एक-दूसरे का काम आ सकें।  

प्रधानमंत्री मोदी के सत्ता संभालने के बाद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत को पहचान दिलाने के लिए वो कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत को एक नई पहचान दिलाने की जद्दोजहद में ये उपग्रह मील का पत्थर साबित होने वाला है। मोदी के कार्यकाल के बाद अब तक इसरो ने उन बुलंदियों को छुआ है जिसके बारे में एक समय पहले कल्पना कर पाना भी मुश्किल था।

जीएसएलवी मार्क 2 का सफल प्रक्षेपण भी भारत के लिए बड़ी कामयाबी थी, क्योंकि इसमें भारत ने अपने ही देश में बनाया हुआ क्रायोजेनिक इंजन लगाया था। इसके बाद भारत को सैटेलाइट लांच करने के लिए दूसरे देशों पर निर्भर नहीं रहना पड़ा। 28 अप्रैल 2016 भारत का सातवां नेविगेशन उपग्रह (इंडियन रीजनल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम) लॉन्च किया था। य़े भारत का खुद की जीपीएस प्रणाली थी, क्योंकि इससे पहले ये उपलब्धि सिर्फ अमेरिका और रूस ने हासिल की थी।

(लेखिका पेशे से पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)