वित्त मंत्री के नए ऐलानों से अर्थव्यवस्था को मिलेगी गति

देश में कुछ क्षेत्रों में आई अस्थायी सुस्ती को वैश्विक मंदी से जोड़ते हुए विपक्ष मंदी का माहौल बना रहा है, जबकि वास्तविकता में अभी ऐसा नहीं है। विकास दर के भी जल्दी ही फिर रफ़्तार पकड़ लेने की पूरी उम्मीद है। ऐसे में विपक्ष को अपनी राजनीति चमकाने के लिए इस विषय में दुष्प्रचार कर लोगों में भय व अविश्वास नहीं पैदा करना चाहिए।

भारत सहित समूचे विश्‍व में इन दिनों आर्थिक मंदी की बात हो रही है। लेकिन पिछले दिनों एप्पल आईफोन के सालाना लॉन्चिंग कार्यक्रम के बाद भारतीयों की ओर से इस महंगे मोबाइल फोन के लिए बड़ी संख्‍या में की गई बुकिंग के बाद मंदी जैसा शब्‍द असंगत लगने लगा। जहां तक वैश्विक मंदी की बात है, यह वर्ष 2008 में आई थी और 2009 के अंत तक इसका असर रहा था। इस दौरान देश-दुनिया में नौकरियों पर संकट आया था और देश की विकास दर को तगड़ा झटका लगा था।

असल में, मंदी एक अर्थव्‍यवस्‍था आधारित शब्‍द है जिसे तटस्‍थ रूप में देखा जाना चाहिये। लेकिन अभी देखने में यह आ रहा है कि सरकार विरोधी लोग, केवल विरोध करने के लिए, अनावश्‍यक रूप से औद्योगिक आंकड़ों की बाजीगरी प्रस्‍तुत कर रहे हैं और सीधे तौर पर केंद्र सरकार पर आक्षेप लगाने से बाज नहीं आ रहे। इसी तरह की आधारहीन बातों का जवाब देने के लिए केंद्र सरकार समय-समय पर सामने आई है। वित्‍त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले एक महीने में तीन बार प्रेस वार्ताएं करके कथित मंदी से निपटने के लिए सरकार के प्रयासों, योजनाओं की जानकारी मीडिया के माध्‍यम से जनता को प्रत्‍यक्ष रूप से दी है।

बीते शनिवार को उन्‍होंने अर्थव्‍यवस्‍था में सुधारवादी कदमों की जानकारी मीडिया के माध्‍यम से दी। इसमें उन्‍होंने बताया कि सरकार किस तरह कई सेक्‍टर के लिए बड़े ऐलान कर रही है। राजधानी दिल्ली के नेशनल मीडिया सेंटर में वित्त मंत्री ने अर्थव्‍यवस्‍था में सुधार के संकेत दिए जिसे बूस्‍टर डोज भी कहा जा रहा है। उन्‍होंने साफ तौर पर कहा कि सीपीआर पूरी तरह से नियंत्रण में है और देश में महंगाई का स्‍तर 4 प्रतिशत से कम पर ही कायम है।

गौरतलब है कि वित्‍त मंत्री ने पिछले दिनों ऑटोमोबाइल सेक्‍टर में आए स्‍लोडाउन को लेकर बयान दिया था कि ओला और उबर जैसी टैक्‍सी सेवाएं इसके पीछे मुख्‍य कारण हैं क्‍योंकि इसके चलते नई गाड़ियों की खरीदी नहीं हो रही है। उनकी बात काफी हद तक सही थी, मगर कांग्रेस आदि ने इसको आधार बनाकर उनका विरोध करना और मजाक बनाना शुरू कर दिया जो कि उनके वैचारिक दिवालियेपन को ही दिखाता है।

पिछली दो प्रेसवार्ताओं में बताए थे ये बड़े निर्णय 

गत 30 अगस्त को वित्त मंत्री सीतामरण ने 10 सरकारी बैंकों को मिलाकर चार बैंक बनाने की घोषणा की थी, जिसमें कहा गया था कि पंजाब नेशनल बैंक में यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया और ओरिएंटल बैंक का मर्जर होगा। इसी तरह दूसरे मर्जर में यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, आंध्रा बैंक और कॉरपोरेशन बैंक एक साथ होने की बात कही गई थी। 

इसके अलावा केनरा बैंक में सिंडिकेट बैंक और इंडियन बैंक में इलाहाबाद बैंक को मर्ज करने की घोषणा की गई थी। 23 अगस्‍त को भी ऐसी पहली प्रेस वार्ता में सीतारमण ने बैंकों को 70 हज़ार करोड़ रुपए की अतिरिक्‍त पूंजी मुहैया कराने का ऐलान किया था। 

वित्‍त मंत्री की घोषणाओं के प्रमुख बिंदु

वित्‍त मंत्री ने घोषणा करते हुए बताया कि अब आयकर में ई-असेसमेंट लागू किया जा चुका है। एमएसएमई के लिए गारंटी प्रीमियम को कम किया जाएगा। जीएसटी को लेकर बताया गया कि इसका रिफंड अब संपूर्ण रूप से इलेक्‍ट्रॉनिक होगा, जिसे सितंबर के अंत में लागू किया जाएगा। निर्यात के लिए नई योजना लाई जाएगी, जिसका बजट करीब 50 करोड़ रुपए तक आ सकता है। इसकी उपयोगिता बनाने के लिए चार शहरों में बड़े स्‍तर पर शॉपिंग फेस्टिवल लगाए जाएंगे। 

सामान्‍य एवं मध्‍यमवर्गीय परिवारों के लिए सरकार ने बड़ा पैकेज देते हुए 10 हज़ार करोड़ रुपए के फंड की घोषणा की है। इसके लिए अफोर्डेबल हाउसिंग पर अब गाइडलाइन को भी आसान बनाया जाएगा। लोन लेने के लिए मौजूदा नियमों को और अधिक सरल बनाया जाएगा।

विपक्ष बना रहा व्यर्थ नकारात्मक माहौल 

देश में घोषित रूप से कोई वैश्विक मंदी नहीं है। यह केवल अनिश्चतता की स्थिति है जो कि मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही में विकास दर के प्रतिशत के घटने से पैदा हुई है। लेकिन सवाल यह है कि विपक्ष ऐसे में क्या कर रहा है। विपक्ष को इस समय देश में सकारात्मकता का माहौल बनाकर सरकार को सहयोग करना चाहिये, लेकिन इसके उलट वह अनावश्यक भय का माहौल बनाने की चेष्टा में लगा है। यह विपक्ष का नकारात्मक रवैया है। 

इस बीच पूर्व  पीएम मनमोहन सिंह भी एनडीए सरकार पर निशाना साधने से बाज नहीं आ रहे। उनका बोलना आश्चर्यजनक लगता है, क्योंकि यूपीए सरकार में हो रहे घोटालों के समय वे चुप थे और उस समय हुई पूंजी की क्षति से देश अबतक उबरने की कोशिश में है। वे यह नहीं देख रहे हैं कि जब वैश्विक मंदी आई थी तब केंद्र में उनकी ही सरकार थी और वे स्वयं पीएम थे। उनके जैसे आर्थिक जानकार व्यक्ति का सरकार पर इस तरह निशाना साधना समझ से परे है।

आटोमोबाइल सेक्टर में आई सुस्ती को चौतरफा मंदी के रूप में प्रचारित किया जा रहा है लेकिन यदि हम जरा दूसरे सेक्टर की बात करें तो वहां इस कथित मंदी के दौर में भी सरकार की झोली भरती नजर आ रही है। उत्तर प्रदेश के मेरठ में अगस्त महीने में वाणिज्य कर विभाग ने 121 प्रतिशत कर जमा किया है जो कि निर्धारित लक्ष्य की तुलना में कहीं अधिक है। इसी तरह, जीएसटी संग्रह भी बढ़ा है। 

मोबाइल कंपनियों और सर्विस सेक्टर ने भी बेहतर प्रदर्शन किया है। ब्रांडेड सामानों के शो रूम से खरीदी के आंकड़े बताते हैं कि इस सेक्टर में करोड़ों रुपया जमा हुआ है। यह बात सच है कि मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में कुछ सुस्ती है जो कि अस्थायी ही मानी जा रही, लेकिन सेवा क्षेत्र अब भी अपनी गति से चल रहा है। फिर इसे मंदी कहना कैसे सही है? 

विकास को गति मिलने की उम्मीद 

इस माहौल से निपटने के लिए सरकार की जो तैयारियां हैं, उनसे प्रतीत होता है कि आम आदमी पर इसका असर अधिक नहीं पड़ने वाला। अनुमान है कि आरबीआई जल्द ही आम आदमी को राहत देने वाला है। जानकार कहते हैं कि मौद्रिक नीति समीक्षा के तहत नीतिगत दरों में बैंक कमी कर सकता है, जिससे मकान या कार लोन की किश्तों में राहत मिल सकती है।  

निष्कर्ष

कुल मिलाकर बात ये है कि देश में कुछ क्षेत्रों में आई अस्थायी सुस्ती को वैश्विक मंदी से जोड़ते हुए विपक्ष मंदी का माहौल बना रहा है, जबकि वास्तविकता में अभी ऐसा नहीं है। विकास दर की कमी भी अस्थायी है, जिसके जल्दी ही फिर रफ़्तार पकड़ लेने की पूरी उम्मीद है। ऐसे में विपक्ष को अपनी राजनीति चमकाने के लिए इस विषय में दुष्प्रचार कर लोगों में भय व अविश्वास नहीं पैदा करना चाहिए।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)