नीरव के खिलाफ ईडी और सीबीआई दोनों एजेंसियां कार्यवाही करने में जुटी हुई हैं। प्रवर्तन निदेशालय ने नीरव के खिलाफ हांगकांग, सिंगापुर, बेल्जियम, चीन, फ्रांस, स्विट्जरलैंड, यूएई, जापान, मलेशिया, रूस, दक्षिण अफ्रीका, ब्रिटेन और अमेरिका को न्यायिक अपील भेजी है। निश्चित ही केंद्र सरकार के ये सक्रिय प्रयास सराहनीय हैं और अब उम्मीद बंधी है कि जल्द ही नीरव भारत में सलाखों के पीछे होगा और बैंकों का पैसा उन्हें वापस मिल सकेगा।
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के मुताबिक 13 हजार करोड़ रुपये के पीएनबी घोटाले का आरोपित और भगोड़ा हीरा कारोबारी नीरव मोदी लंदन में ही रह रहा है और उसके खिलाफ भारत ने प्रत्यर्पण के प्रयास तेज कर दिए हैं। भारत सरकार ने ब्रिटेन की स्थानीय कोर्ट में अपनी अपील दर्ज कराई है।
भारतीय प्रवर्तन निदेशालय ने स्पष्ट किया है कि नीरव के प्रत्यर्पण के लिए लंबे समय से प्रयास जारी थे। पिछले साल जुलाई में ही इसकी अपील ब्रिटेन को सौंपी गई थी। अब चूंकि वहां के गृह मंत्रालय ने भी भारतीय अपील की तस्दीक की है, ऐसे में प्रत्यर्पण का रास्ता साफ होता नज़र आ रहा है। भारत की इस अपील को वेस्टमिंस्टर अदालत में प्रेषित किया गया है ताकि आगामी कार्यवाही की जा सके। मालूम हो कि यह वही कोर्ट है जहां से भगोड़े शराब कारोबारी विजय माल्या के प्रत्यर्पण का केस चला था। माल्या के प्रत्यर्पण को तो कोर्ट से मंजूरी मिल भी चुकी है।
नीरव के प्रत्यर्पण की दिशा में यह एक अहम कदम माना जा रहा है। यहां इस बात का उल्लेख करना प्रासंगिक होगा कि नीरव के घोटाले को सामने आए अभी एक साल ही हुआ है और सरकार ने उस पर जमकर शिकंजा कस दिया है। यह इस बात का प्रमाण है कि केंद्र की भाजपा सरकार घोटालों और भ्रष्टाचार के प्रति कितना सख्त रवैया अपनाए हुए है। जीरो टॉलरेंस केवल नीति या महज जुमला नहीं, वह व्यवहारिक धरातल पर क्रियान्वित किया जाने वाला काम है।
नीरव ही क्यों, मोदी सरकार ने तो भगोड़े कारोबारी विजय माल्या पर भी जर्बदस्त शिकंजा कसा है। नीरव की तरह माल्या की भी देश एवं विदेश में स्थित कई संपत्तियों को जब्त किया गया है। इससे पहले सहारा ग्रुप में सुब्रत रॉय की एंबी वैली की भी नीलामी की जा चुकी है। ये सारे तथ्य इस ओर इशारा करते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने ध्येय वाक्य ‘ना खाउंगा ना दूंगा’ को ध्यान में रखकर चल रहे हैं।
उनके नेतृत्व में केंद्र सरकार की प्रशासनिक मशीनरी, जांच एजेंसिया और नौकरशाही अलग ही सक्रियता से लबरेज हैं, जो पहले नहीं थीं। एक सच्चे विपक्ष होने के नाते कांग्रेस को ऐसे में सरकार के इन कदमों का स्वागत करना चाहिये और खुश होना चाहिये कि देश के घोटालेबाज कानूनी शिकंजे में कसे जा रहे हैं, लेकिन इसके उलट कांग्रेस लगातार अनर्गल बयानबाजियों में ही लगी है। कांग्रेस ने कई मंचों से मोदी सरकार पर भ्रष्टाचार के खुले आरोप लगाए हैं, लेकिन एक को भी साबित करने में वह नाकाम रही है।
सार्वजनिक रूप से बात-बात पर देश के प्रधानमंत्री को अपशब्द बोलने वाले और भ्रष्टाचार के भद्दे आरोप लगाने वाले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी स्वयं नेशनल हेराल्ड मामले में जमानत पर छूटे हुए आरोपी हैं। स्वयं आरोपी होते हुए दूसरों पर कीचड़ उछालने का कृत्य करते हुए राहुल गांधी को शर्म आनी चाहिये, लेकिन उन्हें नहीं आती।
कांग्रेस ने मोदी सरकार पर नीरव, मेहुल चौकसी की तरफदारी का बेमतलब आरोप लगाया लेकिन अपने गिरेबान में झांककर नहीं देखा कि माल्या से नीरव तक सब भगोड़े कांग्रेस के कार्यकाल में ही फले-फूले। साथ ही कांग्रेस को इस बात का भी जवाब देना चाहिये कि टूजी, कॉमनवेल्थ जैसे घोटालों में आरोपियों की धरपकड़ के लिए उन्होंने क्या किया।
असल में कांग्रेस सरकार स्वयं भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी हुई थी, इसके मंत्री स्वयं घोटालों में लिप्त थे, ऐसे में कार्यवाही करते भी तो कैसे करते। इधर, मोदी सरकार ने ना केवल भगोड़े कारोबारियों के प्रत्यर्पण का रास्ता साफ किया है, बल्कि उनकी काली कमाई से अर्जित चल-अचल संपित्तयों को जब्त करके उनकी कमर भी तोड़ दी है।
अब जल्द ही ईडी और सीबीआई के अधिकारियों का एक दल ब्रिटेन जाएगा और इस प्रकरण के संबंध में साक्ष्य उपलब्ध कराएगा। ईडी ने अभी तक नीरव की 1,873.08 करोड़ रुपए मूल्य की संपत्ति अटैच की है। इतना ही नहीं, उसके परिजनों की 489.75 करोड़ रुपये की संपत्ति को भी जब्त किया जा चुका है। हांगकांग, स्विट्जरलैंड, अमेरिका, सिंगापुर और यूएई में स्थित उसकी 961.49 करोड़ रुपये की संपत्ति को भी अब तक अटैच किया गया है।
नीरव के खिलाफ ईडी और सीबीआई दोनों एजेंसियां कार्यवाही करने में जुटी हुई हैं। प्रवर्तन निदेशालय ने नीरव के खिलाफ हांगकांग, सिंगापुर, अरमानिया, बेल्जियम, चीन, फ्रांस, स्विट्जरलैंड, यूएई, जापान, मलेशिया, रूस, दक्षिण अफ्रीका, ब्रिटेन और अमेरिका को न्यायिक अपील भेजी है। निश्चित ही केंद्र सरकार के ये सक्रिय प्रयास सराहनीय हैं और अब उम्मीद बंधी है कि जल्द ही नीरव भारत में सलाखों के पीछे होगा और बैंकों का पैसा उन्हें वापस मिल सकेगा।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)