शहाबुद्दीन जैसा बाहुबली जेल के अन्दर रहे या बाहर, ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। फर्क तो लालू को भी नहीं पड़ता उससे बात करने से, क्योंकि वह भी कानून की नज़र में एक सजायाफ्ता मुजरिम ही हैं। लेकिन, मुख्यमंत्री नितीश कुमार को तो फर्क पड़ना चाहिए। उनके हवाले तो बिहार जैसे महत्वपूर्ण सूबे की कानून व्यवस्था है। लेकिन, इस पूरे मामले पर उनकी प्रतिक्रिया इतनी ठंडी और लचर क्यों हैं? नीतीश के अलावा कांग्रेस भी इस पूरे मामले पर सन्नाटे की चादर ओढ़े बैठी है, क्योंकि बिहार सरकार में एक घटक दल के रूप में वो भी मौजूद है। मतलब यह कि सत्ता से चिपके रहने की प्रवृत्ति में अपराध के प्रति आँखें मूंदी जा रही हैं।
जेल के अन्दर की दुनिया उतनी अँधेरी और मनहूस नहीं होती बशर्ते कि आपके पास पैसा हो, रसूख हो और बाहर आपका गॉडफादर बैठा हो। सियासत और अपराध का ऐसा घालमेल हमें बिहार से अच्छा सिर्फ फिल्मों में ही देखने को मिल सकता है, जहाँ जेल का बड़ा अधिकारी, पुलिस अफसर, माफिया डॉन और नेता मिलकर अपना एकछत्र साम्राज्य चलाते हैं।
जेल के अन्दर बैठे अपराधियों की बाहर की दुनिया से फ़ोन पर बातें होती हैं, यह कोई चौंकाने वाली खबर नहीं है। अपराधियों और पुलिसकर्मियों के संबंध जगजाहिर हैं। जेल से बाहर बात करवाने के आरोप में कभी कभार, छोटे-मोटे अधिकारियों को सज़ा भी मिल जाती है ताकि बड़ी मछलियां जाल से बाहर ही रहें।
अभी एक निजी चैनल के माध्यम से हमारे सामने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और फिलहाल चारा घोटाले में सजायाफ्ता लालू यादव और जेल में बंद माफिया डॉन, बाहुबली व लालू की पार्टी राजद के नेता शहाबुद्दीन के बीच हुई बातचीत का ऑडियो टेप आया। बातचीत के सन्दर्भ को विस्तार से समझने के लिए पहले ये देखना ज़रूरी होगा कि दोनों के बीच क्या बातचीत हुई, उसके बाद हम कहानी को आगे बढ़ाएंगे…
शहाबुद्दीन और लालू की बातचीत:
लालू के फोन पर रिंग आता है। लालू के साथी उपेंद्र फोन उठाते हैं।
उपेंद्र : सर प्रणाम।
शहाबुद्दीन : क्या हाल है उपेंद्र?
उपेंद्र : ठीक है भइया।
शहाबुद्दीन : कहां हैं लालू जी?
उपेंद्र : बैठे हुए हैं।
शहाबुद्दीन : फ्री हैं, तो दो न उनको।
उपेंद्र : अच्छा देते हैं।
(लालू यादव फोन पर।)
लालू : हेलो।
शहाबुद्दीन : जी प्रणाम।
लालू : बोलो।
शहाबुद्दीन : जरा, सीवान की भी खबर ले लीजिए।
लालू : सीवान के मीरागंज का तो सुना है।
शहाबुद्दीन : सीवान में ज्यादा है। उस दिन भी छाता वाला हम बताए हैं। आज नवमी था। पुलिस का डेपुटेशन करना चाहिए था।
लालू : नहीं किया था?
शहाबुद्दीन : नहीं, नहीं, कुछ नहीं। खतम है भाई एसपी आपका। हटाइये न ये सबको।
लालू : आज कुछ हुआ है?
शहाबुद्दीन : हमको लगता है, पुलिस की तरफ से गोली भी चली है।
लालू : फायरिंग किया है? कहां पर?
शहाबुद्दीन : नवलपुर में तो ईट पत्थर चला था। लेकिन, विधायक जी भी किसी से बात कर रहे थे, तो इनको बताए लोग कि वहां कोई गोली चली है…पुलिस फायरिंग में।
लालू : कहां पर?
शहाबुद्दीन : पता कर लीजिए।
लालू : लगाओ तो एसपी को।
सिवान जेल में बंद माफिया डॉन शहाबुद्दीन और लालू यादव की इस अंतरंगता को देखकर क्या आपको शॉक लगा ? क्या आपकी आँखें खुली की खुली रह गईं? यकीन है, ऐसा आपके साथ कुछ भी नहीं हुआ होगा। लालू यादव सालों तक अपराधियों के सरगना रहे हैं। जिन्होंने बिहार में 1990 का दशक देखा है, उनके लिए ये सब बचकानी बातें हैं। लालू जैसे लोगों को श्रेय जाता है, अपराधियों को संरक्षण देकर संसद और विधान सभा के दरवाजे तक पहुँचाने का, लालू बिहार की राजनीति में अपराधियों के सिरमौर रहे हैं।
लालू यादव का शासन क्या था? जंगल राज। जंगल राज, जिसमें पुलिस भी थर्राती थी। आम लोगों के लिए जिंदगी कुछ और नहीं, बस तमाशा भर थी। घर से बाहर निकलने पर वापस आयेंगे कि नहीं, इसका कोई भरोसा नहीं होता था। जंगलराज का मतलब था, आप नई कार नहीं खरीदेंगे, यहाँ तक कि आप शो रूम के अन्दर भी कार नहीं रखेंगे।
आप अंग्रेजी स्कूलों में अपने बच्चे नहीं पढ़ाएंगे, आप बिज़नस नहीं करेंगे, महँगी घड़ियाँ नहीं पहनेंगे। बहन-बेटियाँ चेहरा ढँक कर निकलेंगी और अँधेरे से पहले घर के अन्दर दाखिल हो जाएंगी। जंगल राज में आप पक्का मकान नहीं बनायेंगे। आप कुछ भी शो-ऑफ नहीं करेंगे। जंगल राज का यह भी मतलब था कि आप सर उठाकर नहीं चलेंगे। आप जुबान पर ताला लगाकर रखेंगे। जंगल राज भुलाए नहीं भूलता।
अब लालू की पार्टी के लोग कहते हैं कि जेल में बंद अपराधी से बात करना अपराध नहीं है? आखिर शहाबुद्दीन आरजेडी के नेता भी तो हैं। बिहार पुलिस के पूर्व डीजीपी डीपी ओझा ने केंद्र को भेजी अपनी रिपोर्ट में कहा था कि शहाबुद्दीन का रिश्ता आईएसआई से रहा है। ओझा ने अपने रिपोर्ट में बताया था कि शहाबुद्दीन के पास हथियार कहाँ से आते थे। बाकी शहाबुद्दीन का क्रिमिनल एक्टिविटीज में शामिल होना सर्वविदित है।
याद है, कुछ महीने पहले जब शहाबुद्दीन जेल से बाहर निकला था, तो उसने फ़ौरन ही नितीश को चुनौती दी थी। उसके बाद ही सारी स्थिति बदली। शहाबुद्दीन को अदालत ने समाज के लिए खतरा माना और उसे सीपीआई एम एल के कार्यकर्ता छोटे लाल गुप्ता के मर्डर केस में सिवान जेल से तिहाड़ जेल स्थानांतरित कर दिया गया।
शहाबुद्दीन जैसा बाहुबली जेल के अन्दर रहे या बाहर, ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। फर्क तो लालू को भी नहीं पड़ता उससे बात करने से, क्योंकि वह भी कानून की नज़र में एक सजायाफ्ता मुजरिम ही हैं। लेकिन, मुख्यमंत्री नितीश कुमार को तो फर्क पड़ना चाहिए। उनके हवाले तो बिहार जैसे महत्वपूर्ण सूबे की कानून व्यवस्था है। लेकिन, इस पूरे मामले पर उनकी प्रतिक्रिया इतनी ठंडी और लचर क्यों हैं? नीतीश कुमार राज्य के मुखिया हैं, अगर शहाबुद्दीन जेल में बैठकर सिवान के पुलिस अधीक्षक को हटाने की बात करे और लालू उसके सुर में सुर मिलाएं तो इससे गंभीर बात और क्या हो सकती है? नीतीश को एक्शन मोड में आना चाहिए।
इधर, लालू को फिर से निशाने पर लेते हुए वरिष्ठ भाजपा नेता सुशील मोदी ने कहा कि लालू प्रसाद एक्सपोज हो गए हैं। लालू को कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन क्या नीतीश कुमार इस पर कुछ करेंगे? नीतीश के अलावा कांग्रेस भी इस पूरे मामले पर सन्नाटे की चादर ओढ़े बैठी है, क्योंकि बिहार सरकार में एक घटक दल के रूप में वो भी मौजूद है। मतलब यह कि सत्ता से चिपके रहने की प्रवृत्ति में अपराध के प्रति आँखें मूंदी जा रही हैं।
बहरहाल, इस टेप ने बिहार की कानून व्यवस्था में अपराधियों की संलिप्तता को एक बार फिर जगजाहिर कर दिया है। लेकिन इससे होगा क्या, यह देखना ज़रूरी है। नीतीश कुमार चुपचाप हैं, जिससे उनके सुशासन की कलई धीरे-धीरे खुलती जा रही है। कहना गलत नहीं होगा कि सत्ता के लोभ में नीतीश जंगलराज को संरक्षण दे रहे हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)