गणेश कुमार प्रकरण के कई दिनों के बाद नीतीश कुमार का बयान आया कि सब कुछ ठीक है बिहार में। इस बयान को सुनकर तो यही कहेंगे कि नीतीश कुमार जी! वाकई सब कुछ ठीक है बिहार में; लेकिन उन नेताओं के बच्चों के लिए जिन्हें सब कुछ थाली में सजा सजाया हुआ मिलता है। नेतापुत्रों को मंत्री, उपमुख्यमंत्री या भविष्य में मुख्यमंत्री बनने के लिए किसी डिग्री की ज़रुरत नहीं पड़ेगी।
बिहार में शिक्षा की किस कदर दुर्गति हुई है, इसका प्रमाण हमें पिछले दो साल के टॉपर ही दे देते हैं। गणेश कुमार और रूबी राय। दो नाम ही काफी हैं, शैक्षणिक व्यवस्था के क्रमिक विनाश को समझने के लिए। 2015 में बिहार में बारहवीं की परीक्षा में 75 फीसद छात्र पास हुए, वहीं 2017 में सिर्फ 36 फीसद छात्र ही उत्तीर्ण हुए यानि 64 प्रतिशत छात्र फेल हो गए। दो वर्षों के नतीजों के बीच आया ये बड़ा अंतर चौंकाता है।
एसएससी के इस नतीजे के लिए जिम्मेदार कौन है? क्या सिर्फ यह कहना कि इस बार सख्ती के साथ कॉपी चेक की गई थी, इसलिए इतना बुरा हाल हुआ? अगर ऐसा मान लेते हैं, तो यह कहना भी जायज़ होगा कि पहले जितनी परीक्षाएं हुईं, वह सही नहीं थीं। सवाल यह भी है कि अगर इतनी सख्ती से कॉपी जांच हुई थी, तो फिर टॉपर में ही गड़बड़ी कैसे हो गयी? कहीं ऐसा तो नहीं कि सख्ती से कॉपी की जांच के नाम पर ज्यादातर छात्रों को फेल कर दिया है।
बिहार की पहली और आखिरी उम्मीद है यहाँ के लाखों युवा; जिनके बूते बिहार जैसे राज्य की चमक पूरे देश में कायम है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उस तस्वीर पर कालिख पोत दी है। बिहार की थाती शिक्षा है आज से सैकड़ों साल से, जिसका जिक्र हम हर उस वक़्त कर लेते हैं, जब पूछा जाता है बिहार के पास क्या है? या जब पूछा जाता है कि सारे रिक्शावाले आखिरकार बिहार से ही क्यों आते हैं? या इसके उलट यह सवाल किया जाता है कि आखिर बिहार की मिट्टी में क्या है कि वहां से हर साल सैकड़ों की तादाद में आईएस अधिकारी चुने जाते हैं।
शिक्षा बिहार की पहचान थी, लेकिन लगता है कि बिहार के शासकों ने तय कर लिया है कि बिहार की इस थाती को मिट्टी में मिला दें। पहले लालू प्रसाद यादव ने और अब नीतीश कुमार ने शैक्षणिक संस्थाओं को समूल उखाड़ फेंकने का निश्चय किया है। बिहार में साइकिल पर स्कूल जा रही लड़कियों की तस्वीर देखकर हमें बड़ी राहत मिली थी कि बिहार तरक्की की राह पर है, लेकिन पता चला कि वाकई यह सब ब्रांडिंग का एक सोचा-समझा हिस्सा था। इन तस्वीरों के सच के ऊपर एक झूठ का बड़ा मुलम्मा चढ़ा दिया कि बिहार में होनहार बच्चे ही पैदा हो रहे हैं।
क्या यह क्रमिक विघटन नीतीश के शासनकाल में ही हुआ, या इसकी नींव 1990 के दशक में ही पड़ गई थी, जब शिक्षा पर नेताओं ने और माफिया ने कब्ज़ा कर लिया। बिहार में बड़े स्तर पर परीक्षा में चल रही धांधली ने दुनिया की आँखें खोल दी, इसने बिहार की रही सही उम्मीदों पर भी पानी फेर दिया।
गणेश कुमार प्रकरण के कई दिनों के बाद नीतीश कुमार का बयान आया कि सब कुछ ठीक है बिहार में। इस बयान को सुनकर तो यही कहेंगे कि नीतीश कुमार जी! वाकई सब कुछ ठीक है बिहार में; लेकिन उन नेताओं के बच्चों के लिए जिन्हें सब कुछ थाली में सजा सजाया हुआ मिलेगा। नेतापुत्रों को मंत्री, उपमुख्यमंत्री या भविष्य में मुख्यमंत्री बनने के लिए किसी डिग्री की ज़रुरत नहीं पड़ेगी। बहरहाल, नीतीश कुमार के 12 साल के कार्यकाल में ऐसा क्या हुआ, जिन्होंने बिहार की शिक्षा व्यवस्था की दुर्गति कर दी है। आइये, इस सम्बन्ध में दस मुख्य कारणों पर नज़र डालते हैं:
1. राज्य भर में ऐसे शिक्षकों की भर्ती की गई, जिन्हें खुद अच्छी शिक्षा की ज़रुरत थी। जब शिक्षक अच्छे नहीं होंगे तो छात्र अच्छे कैसे हो सकते हैं? नतीजे कैसे अच्छे आ सकते हैं?
2. हमारे शिक्षक ज़्यादातर मिड डे मील के हिसाब में उलझे हुए हैं; पढ़ाई किस चिड़िया का नाम है, इससे उन्हें कोई मतलब नहीं।
3. साइकिल और स्कूल पोशाक के नाम पर भी फर्जीवाड़ा हुआ। जब वोट बैंक की सियासत जोड़ तोड़ से हो रही है, तो संकल्प और प्रतिबद्धता की किसे फ़िक्र है?
4. शिक्षकों को कभी समय पर वेतन नहीं मिल पाया, इस वजह से वह क्लास रूम में कम सड़कों पर लाठी खाते ज्यादा नज़र आये।
5. बिहार जैसे राज्य में जुगाड़तंत्र पर सबको ज्यादा यकीन है। पेपर नक़ल करवाने में, पेपर आउट करवाने में पूरा तंत्र लगा रहता है। ऐसे में मेधा की बात करनी बेमानी हो जाती है; जो मेधावी छात्र हैं, वह भी आटे में घुन की तरह पिस जाते हैं।
6. इस बार तो ऐसा भी हुआ कि जो बच्चे आईआईटी में कम्पीट कर गए, वह बारहवीं में फेल हो गए। यह बिहार की शिक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़ा करता है।
7. इस बार मार्किंग की व्यवस्था खुद जांच के घेरे में आ गई है, सवाल उन गुरुओं पर उठ रहा है, जो कॉपी जांच रहे हैं।
8. प्राइवेट शिक्षा माफिया ने सरकारी शिक्षण संस्थाओं की नींव हिला कर रख दी है। नीतीश कुमार ने क्या कभी इन माफियाओं पर नकेल कसी?
9. क्या इन सरकारी संस्थाओं से पढ़कर निकले बच्चे कभी नौकरी ले पाएंगे, क्या है उनमें काबिलियत?
10. क्या राज्य में नौकरी के अवसर हैं कि युवाओं को बाहर जाने से रोका जा सके ? बिहार के युवाओं को दूसरे प्रदेशों में दर-बदर भटकना ही लिखा है।
बार बार हम लालू प्रसाद यादव को उनके जंगल राज के लिए कोसते रहते हैं, लेकिन वह तो बीते ज़माने की बात हो गई। अब बिहार में पिछले 12 सालों से तो नीतीश राज है। जवाब तो नीतीश कुमार से ही मांगा जाएगा, जिन्होंने शिक्षा को मखौल बना दिया। सत्ता में बने रहने के लिए आप लाख जुगत भिड़ा लीजिये, इससे बहुत फर्क नहीं पड़ता है। लेकिन, अगर बिहार के शिक्षा को आप खत्म करते हैं, तो आप बिहार की ऐसी अनमोल थाती को खत्म कर रहे हैं, जिसको दोबारा हासिल कर पाना आसान नहीं होगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)