‘विनाश काले विपरीत बुद्धि’ एक पुरानी और प्रचलित कहावत है, जो वर्तमान में ईवीएम को लेकर विपक्ष द्वारा मचाए जा रहे फ़िज़ूल के हंगामे पर एकदम सटीक बैठती है। एक तरफ यूपी की पराजय से सपा, बसपा तो दूसरी तरफ पंजाब में हुई हार से आप के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल इतने बौखलाए हुए हैं कि ये सब हार के दिन से ही ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए जा रहे हैं। लम्बे समय से ईवीएम के जरिये ही हुए चुनावों में जीतकर देश पर शासन करने वाली कांग्रेस भी अब अपने राजनीतिक दुर्दशा के दौर में पहुंचकर ईवीएम में खराबी का राग आलाप रही है।
भाजपा की प्रचंड जीत से बौखलाए हुए विपक्षी दल अपनी हार की मूल वजह पर आत्ममंथन करने की बजाय ईवीएम में खराबी के हंगामे से जनता के बीच अपनी छवि और ज्यादा ख़राब कर रहे हैं, जिसके दुष्परिणाम निश्चय ही आने वाले चुनावों में इन्हें देखने को मिलेंगे। विपक्षी दलों को समझना चाहिए कि उनकी पराजय की वजह उनकी संकीर्ण राजनीति और जनता के मुद्दों से दूरी है न कि ईवीएम। ईवीएम पर सवाल उठाने से पहले इन दलों को एकबार अपनी गिरेबान में झांककर अपनी राजनीति में आ चुकी खोट को ज़रूर देख लेना चाहिए। इसके बाद भी अगर वे अपनी हार की वजहों पर आत्ममंथन करने की बजाय ईवीएम को ही कोसेंगे, तो आगे के चुनावों में भी जनता द्वारा ऐसे ही नकारे जाते रहेंगे।
केजरीवाल ने दिल्ली के आगामी एमसीडी चुनाव के मद्देनज़र चुनाव आयोग से ईवीएम में ख़राबी की शिकायत करते हुए बैलेट पेपर से चुनाव करने की विचित्र मांग तक कर दी है। इसके अलावा कांग्रेस की ओर से हमेशा उल-जुलूल बयानबाज़ी करने वाले दिग्विजय सिंह का भी कहना है कि जब सारी दुनिया में पेपर बैलट से चुनाव होते है, तो हमें इसमें आपत्ति क्यों हो ? शायद दिग्विजय सिंह की स्मृति-शक्ति को हार का जोरदार झटका लगा है और वे ये बात भूल गए है कि ईवीएम की शुरुआत उन्ही की सरकार के दौर में हुई थी। मायावती ने तो शुरुआत से ही चुनावी हार को ईवीएम में गड़बड़ी का जामा पहना दिया था और उन्होंने कभी इस तथ्य को स्वीकार किया ही नही कि उत्तर प्रदेश की जनता अब जागरूक हो गयी है और वो जाति, धर्म से ऊपर उठकर मुद्दों व विकास के एजेंडे पर अपना वोट डालने लगी है।
दरअसल भाजपा पर ईवीएम में धांधली का आरोप लगाने वाले विपक्षी दल इसपर कुछ नहीं कह पा रहे कि अगर भाजपा की जीत का कारण ईवीएम में खराबी है, तो इससे पहले बिहार के चुनाव और इस बार के पंजाब विधान सभा चुनाव में भाजपा की हार कैसे हो गयी ? कान्रेस को बताना चाहिए कि 2004 जबसे देश में ईवीएम का पूर्ण रूप से प्रयोग हो रहा है, से 2014 तक वो दो बार देश की सत्ता में रही और इस दौरान कई राज्यों के चुनाव भी उसने जीते, तो क्या उसकी ये जीतें ईवीएम के कारण ही हुई थीं ? केजरीवाल भी बताएं कि दिल्ली के विधानसभा चुनाव में उन्हें 67 सीटें क्या ईवीएम की खराबी के कारण ही मिली थीं ? स्पष्ट है कि इन प्रश्नों का विपक्षियों के पास कोई ठोस उत्तर नहीं है और उनका सारा विरोध केवल ‘मीठा-मीठा गप, कड़वा-कड़वा थू’ जैसा है।
जाहिर सी बात है कि भाजपा की प्रचंड जीत से बौखलाए हुए ये विपक्षी नेता अपनी हार की मूल वजह पर विमर्श करने के बजाय इस तरह के हंगामे से जनता के बीच अपनी छवि और ज्यादा ख़राब कर रहे हैं, जिसके दुष्परिणाम निश्चय ही आने वाले चुनावों में इन्हें देखने को मिलेंगे। अपनी हार से सबक न लेने वालों को इतिहास में मूर्ख का ही दर्ज़ा दिया गया है और यह भारतीय लोकतंत्र का दुर्भाग्य है कि यहाँ ऐसे लोग लोकतंत्र के प्रतिनिधि होने का बेसुरा राग अलापते फिरते है। विपक्षी दलों को समझना चाहिए कि उनकी पराजय की वजह उनकी संकीर्ण राजनीति और जनता के मुद्दों से दूरी है न कि ईवीएम। ईवीएम पर सवाल उठाने से पहले इन दलों को एकबार अपनी गिरेबान में झांककर अपनी राजनीति की असलियत को तो देख ही लेना चाहिए। इसके बाद भी अगर वे अपनी हार की वजहों पर आत्ममंथन करने की बजाय ईवीएम को ही कोसेंगे तो आगे के चुनावों में भी जनता द्वारा ऐसे ही नकारे जाते रहेंगे।
(लेखिका पत्रकारिता की छात्रा हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)