मोदी सरकार अब देश के समूचे परिवहन तंत्र को पेट्रोल-डीजल के बजाए बिजली आधारित करने की महत्वाकांक्षी योजना पर काम कर रही हैं ताकि पेट्रोलियम पदार्थों के आयात में कमी लाई जा सके। सरकार ने 2020-21 तक रेलवे के समूचे ब्रॉडगेज नेटवर्क के विद्युतीकरण का लक्ष्य रखा है। इसी के साथ रेलवे ने इस साल से डीजल इंजनों की खरीद पर पूरी तरह से रोक लगा दी है।
बिजली क्षेत्र में मोदी सरकार-1 की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि बिजली के मामले में देश बल्ब जलाने के सीमित दायरे से आगे निकल गया। इतना ही नहीं देश पहली बार बिजली का निर्यातक बना। बिजली उत्पादन, आपूर्ति और हर गांव तक बिजली पहुंचाने में मिली अभूतपूर्व कामयाबी से उत्साहित मोदी सरकार अब देश के हर घर को सातों दिन-चौबीसों घंटे रोशन करने की कवायद में जुट गई है।
सरकार इसके लिए प्रीपेड वाली रणनीति अपना रही है। इसके तहत अगले तीन वर्षों में देश के समूचे बिजली क्षेत्र में प्रीपेड मीटर लगा दिए जाएंगे। पहले मीटर रिचार्ज कराइए और फिर बिजली जलाइए। गौरतलब है कि देश में हुई मोबाइल क्रांति में एक बड़ा योगदान प्रीपेड रिचार्ज कूपन का रहा है। बिजली क्षेत्र में दूरगामी सुधार के लिए आम बजट में वन नेशन, वन ग्रिड नामक महत्वाकांक्षी योजना शुरू करने की घोषणा की गई है।
मोदी सरकार अब देश के समूचे परिवहन तंत्र को पेट्रोल-डीजल के बजाए बिजली आधारित करने की महत्वाकांक्षी योजना पर काम कर रही हैं ताकि पेट्रोलियम पदार्थों के आयात में कमी लाई जा सके। सरकार ने 2020-21 तक रेलवे के समूचे ब्रॉडगेज नेटवर्क के विद्युतीकरण का लक्ष्य रखा है। इसी के साथ रेलवे ने इस साल से डीजल इंजनों की खरीद पर पूरी तरह से रोक लगा दी है।
ऐसा होने पर भारतीय रेल दुनिया की पहली ऐसी रेल बन जाएगी जो सौ प्रतिशत विद्युतीकृत होगी। इससे रेलवे हर साल 2.8 अरब लीटर डीजल की बचत करेगी जिससे 13000 करोड़ रूपये की दुर्लभ विदेशी मुद्रा बचेगी। विद्युतीकरण पूरा होने पर रेलवे की रफ्तार भी 10-15 प्रतिशत बढ़ जाएगी। इतना ही नहीं डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर पर मालगाड़ियां भी बिजली वाले इंजन से चलेंगी।
रेल लाइनों के विद्युतीकरण के साथ-साथ सरकार ने 2030 तक कुल वाहनों के 30 प्रतिशत को बिजली आधारित करने का लक्ष्य रखा है। इसे बढ़ावा देने के लिए वित्त मंत्री ने बजट में इलेक्ट्रिक वाहनों पर जीएसटी की दर को 12 प्रतिशत से घटाकर पांच प्रतिशत करने के साथ-साथ इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने वाले ग्राहकों को डेढ़ लाख रूपये के ब्याज पर आयकर छूट देने की घोषणा की है।
इसके अलावा इन वाहनों के कुछ पुर्जों को सीमा शुल्क से भी मुक्त किया जा रहा है। नीति आयोग पहले ही कह चुका है कि 2022 के बाद से देश में 150 सीसी से कम क्षमता के केवल बिजली चालित दोपहिया और 2023 के बाद सिर्फ बिजली से चलने वाले तिपहिया वाहनों का ही निर्माण होगा। यात्री कारों के लिए यह समय सीमा 2030 रखी गई है।
गौरतलब है कि इलेक्ट्रिक वाहनों के क्षेत्र में भारत अभी बहुत पीछे है। इलेक्ट्रिक व्हीकल आउटलुक-2019 के आंकड़ों के मुताबिक 2018 में जहां चीन ने 2.6 करोड़ इलेक्ट्रिक दोपहिया का उत्पादन किया वहीं भारत में यह आंकड़ा महज एक लाख वाहन का है। चीन की सड़कों पर जहां 25 करोड़ इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहन दौड़ते हैं जबकि भारत में यह संख्या महज छह लाख है।
संसद में प्रस्तुत 2018-19 की आर्थिक समीक्षा में देश को इलेक्ट्रिक वाहनों का हब बनाने का रोडमैप पेश किया गया है। इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रोत्साहन में सरकार का पूरा जोर लिथियम इयान बैटरी से चलने वाले वाहनों पर है। गौरतलब है कि सौ साल लंबे सफर के बाद वाहन उद्योग अब आंतरिक दहन वाले इंजन की जगह लिथियम ऑयन बैटरी से चलने वाले इलेक्ट्रिक वाहन की ओर बढ़ रहा है।
दुनिया भर की दिग्गज ऑटोमोबाइल कंपनियों ने पेट्रोल-डीजल वाहनों से तौबा करना शुरू कर दिया है। इसी को देखते हुए मोदी सरकार वाहन तकनीक में हो रहे परिवर्तन के साथ कदमताल कर रही है। यदि भारत इस वैश्विक मुहिम में पिछड़ता है तो न सिर्फ वाहन उद्योग व निर्यात बल्कि 30 अरब डॉलर सालाना राजस्व देने वाला घरेलू कल-पुर्जा उद्योग भी पिछड़ जाएगा। इसलिए सरकार की पहल सराहनीय है।
भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी पेट्रोलियम पदार्थ आयात करता है। ऐसे में परिवहन क्षेत्र में हो रही बिजली क्रांति से न केवल आयात पर निर्भरता घटेगी बल्कि पर्यावरण प्रदूषण में भी कमी आएगी। सबसे बढ़कर बिजली अर्थव्यवस्था की धुरी बन जाएगी।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)