मोदी के दूसरे कार्यकाल का प्रथम वर्ष वैचारिक संकल्प और सेवा दोनों पर केन्द्रित नजर आता है। एक तरफ अनुच्छेद-370, नागरिकता संशोधन कानून, राममंदिर, तीन तलाक जैसे विषय हैं, तो दूसरी तरफ मोदी के जनकल्याण की योजनाएं भी अपना असर दिखा रही हैं।
नरेंद्र मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल का पहला वर्ष पूरा कर लिया है। तमाम राजनीतिक विश्लेषक मोदी के कार्यकाल का अलग-अलग नजरिये से मूल्यांकन कर रहे हैं। 2019 में प्रचंड जनादेश से नरेंद्र मोदी सरकार की वापसी इस बात की तरफ स्पष्ट संकेत दे गई थी कि मोदी की लोकप्रियता के बरक्स भारतीय राजनीति में कोई ऐसा चेहरा फ़िलहाल मौजूद नहीं है, जो उनके सामने टिक सके।
2014 से ही नरेंद्र मोदी के आलोचकों ने हर कदम पर उनकी निंदा के स्तर तक जाकर आलोचना की, उनका स्पष्ट मानना था कि यह सरकार अब वापसी नहीं करेगी। गौर करें तो 2019 के चुनाव परिणाम के दिन तक उनके आलोचक यह मानने को तैयार नहीं थे कि नरेंद्र मोदी दुबारा सत्ता में वापसी कर रहे हैं। किन्तु आम जनमानस के मस्तिष्क पर मोदी ने विकास की ऐसी गहरी छाप छोड़ रखी है कि भारत की जनता ने पहले की अपेक्षा अभूतपूर्व बहुमत देकर अपना अपार भरोसा मोदी और भाजपा पर जताया।
वर्ष 2014 में मोदी जब सत्ता में आए तो उन्होंने देश की बुनियादों जरूरतों को पूरा करने में अपनी सरकार को केन्द्रित किया जिसका परिणाम हमें उज्ज्वला, स्वच्छता, हर घर बिजली, जनधन, आयुष्मान और पीएम किसान सम्मान निधि इत्यादी योजनाओं के माध्यम से देखने को मिला।
ये वो योजनाएं हैं जिससे मोदी ने सीधे गांव के मन को स्पर्श किया और इस स्पर्श ने उन्हें नायक बना दिया। एक ऐसा नायक जो जनआकांक्षाओं की पूर्ति के लिए कृत संकल्पित नजर आ रहा हो। गांव के लोगों के जीवन स्तर में आए सुधार ने उन्हें यह सोचने पर मजबूर किया कि कोई तो है जो उनकी सुध ले रहा है।
अब सरकार के दूसरे कार्यकाल पर आएं तो इसका यह पहला साल इतिहास की दृष्टि से काफी अहम कार्यकाल माना जाएगा। क्योंकि इस कार्यकाल में ही वर्षों से लंबित एवं विवादित मुद्दों का नरेंद्र मोदी सरकार ने दृढ़ इच्छाशक्ति दिखाते हुए हल निकाला है।
इसमें ज्यादातर वह मुद्दे हैं जो भाजपा के घोषणापत्र में वर्षों से दर्ज होते रहे हैं, इसलिए यह भाजपानीत सरकार के लिए अधिक उत्साह का अवसर था, किन्तु कोरोना महामारी के चलते वह उत्साह नजर नहीं आया। सरकार की तरफ से कोई बड़ा आयोजन भी नहीं हुआ और निश्चित ही संकटकाल में इस तरह के आयोजन होने भी नहीं चाहिए।
नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल को हम वैचारिक संकल्प की कसौटी पर परखें तो समझ में आता है कि आज़ादी के उपरांत जनसंघ के समय से जो वादें पार्टी करती आ रही थी, उसे पूरा करने का यश नरेंद्र मोदी को प्राप्त हुआ है। वैचारिकता के प्रसंग में एक बात यह भी विचारणीय है कि क्या आज भी वैचारिकता का पक्ष भारतीय राजनीति में बचा हुआ है?
यह अपने आप में बड़ी और व्यापक चर्चा का विषय हो सकता है, किन्तु हम सरसरी तौर पर देखें तो भाजपा ही एक ऐसी पार्टी फिलहाल नजर आ रही है, जो अपने वैचारिक धरातल पर अडिग है। बाकी दलों के लिए तो वर्तमान में भारतीय राजनीति के दो ही वैचारिक ध्रुव हैं, नरेंद्र मोदी के पक्ष में रहना अथवा उनके विरोध में। या यूँ कहें कि सत्ता का संधान जिस विचार के व्याकरण से होता हो, ये सभी दल उसीका पाठ करने लगते हैं।
बहरहाल, मोदी के दूसरे कार्यकाल का प्रथम वर्ष वैचारिक संकल्प और सेवा दोनों पर केन्द्रित नजर आता है। एक तरफ अनुच्छेद-370, नागरिकता संशोधन कानून, राममंदिर, तीन तलाक जैसे विषय हैं, तो दूसरी तरफ मोदी के जनकल्याण की योजनाएं भी अपना असर दिखा रही हैं; लेकिन कोरोना वायरस से उपजे संकट के कारण साल पूरा होते-होते स्थिति जरा भिन्न हो गयी है।
सरकार का पूरा ध्यान कोरोना से निपटने एवं आत्मनिर्भर भारत अभियान पर है और यह होना भी चाहिए क्योंकि देश इस समय जिस स्थिति में खड़ा है, जल्द इस संकट से उबारने की आवश्यकता है। बहरहाल, हमें इस मोदी सरकार के इस कार्यकाल के वैचारिक एवं ऐतिहासिक पक्ष को एक-एक कर समझना होगा।
अनुच्छेद 370 और 35ए
जनसंघ के संस्थापक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने देश की अखंडता के लिए अपना बलिदान दे दिया था। अनुच्छेद 370 का मुद्दा जनसंघ के जमाने से भाजपा के प्रमुख मुद्दों में शामिल रहा है। जैसे ही पूर्ण बहुमत की सरकार के पास अनुकूल अवसर आया, नरेंद मोदी के नेतृत्व और गृह मंत्री अमित शाह की कार्य-कुशलता के कारण सरकार ने अनुच्छेद 370 और 35ए को एक झटके में हटा कर अखंड भारत के सपने को साकार करने का काम किया।
भाजपा के लिए यह विषय बहुत भावनात्मक रहा है। गौर करें तो जनसंघ की स्थापना के प्रस्ताव से लेकर 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए जारी संकल्प पत्र तक में इसे प्रमुखता से शामिल किया गया था। 21 अक्टूबर 1951 जो जनसंघ की स्थापना हुई और उसदिन कहा गया कि “अनिश्चितताओं की स्थिति को समाप्त करने के लिए आवश्यक है कि कश्मीर को भारत के साथ सम्मलित होने वाले अन्य राज्यों के समान समझा जाए”।
स्पष्ट है कि जनसंघ के 1957 के घोषणापत्र से लेकर 2019 के संकल्प पत्र तक भाजपा अनुच्छेद 370 को देश की अखंडता के लिए हटाना आवश्यक समझती थी और 05 अगस्त 2019 को राज्यसभा एवं 6 अगस्त 2019 को लोकसभा में गृह मंत्री अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक पारित कर एक ऐतिहासिक संकल्प को पूरा किया।
नागरिकता संशोधन कानून
नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने अपने साहसिक निर्णयों से देश की जनता के बीच अपनी विश्वसनीयता को पहले की अपेक्षा इस कार्यकाल में और अधिक मजबूत किया है। जनसंघ से लेकर अभीतक पार्टी जिन वादों को जनता के बीच घोषणापत्रों के माध्यम से ले जाती रही है, उन वादों को एक-एक करके नरेंद्र मोदी सरकार पूरा भी कर रही है।
31 दिसंबर, 1952 को कानपुर में जनसंघ के प्रथम अधिवेशन में एक प्रस्ताव पास किया गया, जिसमें पूर्वी बंगाल के हिन्दुओं की दिनों दिन बिगड़ती स्थिति पर चिंता जाहिर की गई। उसमें कहा गया कि “भारत का यह अधिकार ही नहीं, अपितु कर्तव्य भी बनता है कि पाकिस्तान के अल्पसंख्यको की रक्षा का भार संभाले”।
इसी क्रम में 18 जुलाई, 1970 को चंडीगढ़ में भी जनसंघ की भारतीय प्रतिनिधि सभा में एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें विस्थापितों की चिंता जाहिर की गई। अपने घोषणापत्रों और पार्टी के दस्तावेजों में पाकिस्तान और बांग्लादेश के शरणार्थियों की समस्याओं को पार्टी क्रमश: प्रमुखता से उठाती रही।
भारतीय जनता पार्टी ने 2019 के घोषणापत्र में भी बेहद स्पष्ट रूप से माना कि पड़ोसी देशों के धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों के व्यक्तियों की सुरक्षा के लिए, उन्हें उत्पीड़न से बचाने के लिए हम नागरिकता संशोधन विधेयक को लागू करने को प्रतिबद्ध हैं। 11 दिसम्बर 2019 को राज्यसभा में यह बिल पास हुआ और मोदी सरकार की यह वैचारिक प्रतिबद्धता पूर्ण हुई।
अयोध्या में राममंदिर
राम मंदिर को भाजपा सदैव आस्था का मुद्दा मानती रही है और इसके लिए भाजपा द्वारा किए गए आंदोलन को कौन भुला सकता है। लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा इस पूरे विषय को राष्ट्रीय फलक पर ले जाने वाली एक निर्णायक यात्रा थी। यह देश के बहुसंख्यक समाज के लिए आस्था एवं भावना से जुड़ा मुद्दा रहा है। पार्टी इसे अपने घोषणापत्र में शुरू से उठाती रही है।
1989 चुनाव के घोषणापत्र की प्रस्तावना में ही राम मंदिर का जिक्र मिलता है। इसी तरह 1991 में हुए आम चुनाव के घोषणापत्र में भाजपा ने राममंदिर निर्माण को लेकर अपनी प्रतिबद्धता को जाहिर किया। उसके उपरांत पार्टी ने कभी भी इस मुद्दे को नहीं छोड़ा। राममंदिर को भाजपा ने सदैव सांस्कृतिक विरासत और राष्ट्रीय स्वाभिमान के संकल्प के रूप में माना और इस मुद्दे को पकड़े रखा। इसके लिए भाजपा को तमाम प्रकार के आरोपों का भी सामना करना पड़ा लेकिन वो अपने वैचारिकता पर अटल रही।
आख़िरकार मोदी सरकार के कार्यकाल में ही यह मामला सुखद मोड़ पर पहुंचा, जब सुप्रीम कोर्ट ने सर्वसम्मति से विवादित भूमि राममन्दिर को देने का निर्णय सुनाया और मंदिर निर्माण के लिए केंद्र सरकार को एक ट्रस्ट के गठन का निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार नरेंद्र मोदी सरकार ने श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का गठन किया और आज मंदिर निर्माण का कार्य भी शुरू हो गया है।
इस तरह हम देखें तो भाजपा अपने वैचारिक धरातल पर अन्य राजनीतिक दलों की अपेक्षा बहुत मजबूत नजर आ रही है, उससे भी अधिक इस बात पर गौर करना चाहिए कि भाजपा ने अवसर देखकर मुद्दों से किनारा नहीं किया, बल्कि अपने घोषणापत्र के माध्यम से जनता के सामने जो मुद्दे रखे थे उन्हें एक-एक कर पूरा कर रही है।
सरकार के इन निर्णयों से यह भरोसा भी पैदा होता है कि घोषणापत्र महज एक खानापूर्ति भर नहीं होता यद्यपि उसे अमल में लाने के लिए दृढ़ संकल्प की आवश्यकता होती है। नरेंद्र मोदी सरकार ने उचित अवसर आते ही अपने संकल्पों को पूरा किया है। अतः यह एक वर्ष देश के लिए तो ऐतिहासिक निर्णयों के लिए स्मरणीय है ही, भाजपा की वैचारिक प्रतिबद्धताओं की पूर्ति के लिए भी याद रखा जाएगा।
(लेखक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च एसोसिएट हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)