चुनाव में अपनी हार के कारकों का विश्लेषण करने के बजाय जिन्होंने ईवीएम पर सीधे तौर पर गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए चुनाव आयोग पर सवाल खड़े किए थे और जो बार बार ‘हैकाथोन’ करवाने की माँग कर रहे थे, उन्होंने इस ईवीएम हैकिंग की चुनौती में भाग क्यों नही लिया ? क्या उन्हें डर था कि सच सबके सामने आ जायेगा और वे मुँह छुपाने लायक भी नही बचेंगे ? या फिर अचानक ईवीएम में उनका विश्वास दोबारा गहरा हो गया।
2017 की शुरुआत में हुए पांच राज्यों के चुनावों में जब भाजपा चार राज्यों में अपनी सत्ता स्थापित करने में कामयाब रही, तबसे ही सारे विरोधी एकजुट होकर ईवीएम हैक करने की बात कहकर भाजपा पर आरोप मढ़ने लगे। यूपी चुनाव में जनता द्वारा खारिज की जा चुकीं मायावती ने ईवीएम हैकिंग का किस्सा शुरू किया, जिसे पंजाब की हार से बौखलाए केजरीवाल ने लपकने में जरा भी देर नहीं लगायी। फिर तो केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी ने अपनी हर हार और भाजपा की जीत के लिए ईवीएम को दोषी ठहराना ही शगल बना लिया।
उपचुनाव से लेकर दिल्ली के एमसीडी चुनाव तक में हुई पराजय के लिए लिए केजरीवाल ने ईवीएम को दोषी ठहराया। यहाँ तक कि उनकी पार्टी के एक नेता ने तो दिल्ली विधानसभा में ‘ईवीएम कैसे हैक करें’ का ट्यूटोरियल भी दे डाला, जिसके बाद चुनाव आयोग ने भी ‘हैकाथोन’ यानी ईवीएम हैकिंग का आयोजन किया। लेकिन, विडंबना देखिये की ईवीएम को लेकर हाहाकार मचाने वाले दल में से किसी ने भी इसमें भाग नही लिया।
इस ईवीएम हैकिंग की चुनौती मे केवल एनसीपी और सीपीआई (एम) ने भाग लिया, वो भी केवल ईवीएम की कार्यप्रणाली समझने के लिए न कि उसे हैक करने के लिए, लेकिन कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी और खास तौर पर आम आदमी पार्टी इस चुनौती से नदारद रहे, जिससे ईवीएम पर इनके आरोपों की पोल खुल चुकी है।
चुनाव आयोग अध्यक्ष नजीम ज़ैदी ने कहा कि “चुनाव आयोग के ईवीएम का परीक्षण किया जा सकता है और इनमें कोई भी हैकिंग संभव नही है”, साथ ही उन्होंने दोनों प्रतिभागी दलों को इसके साक्ष भी दिए। एनसीपी ने जब राज्य चुनाव आयोग के तहत इस्तेमाल होने वाले ईवीएम की बात की तो उन्होंने यह स्पष्ट किया कि वे ईवीएम राज्य चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र में है।
चुनाव में अपनी हार के कारकों का विश्लेषण करने के बजाय जिन्होंने ईवीएम पर सीधे तौर पर गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए चुनाव आयोग पर सवाल खड़े किए थे और जो बार बार ‘हैकाथोन’ करवाने की माँग कर रहे थे, उन्होंने इस ईवीएम हैकिंग की चुनौती में भाग क्यों नही लिया ? क्या उन्हें डर था कि सच सबके सामने आ जायेगा और वे मुँह छुपाने लायक भी नही बचेंगे ? या फिर अचानक ईवीएम में उनका विश्वास दोबारा गहरा हो गया।
कितनी शर्मनाक बात है कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश मे जब जनता भारी मतों से एक दल को विजयी घोषित करती है, तो पराजित दल हार की हताशा का ऐसा वाहियात मंज़र देश के सामने रखते है और देश की निर्वाचन प्रणाली पर ही प्रश्नचिन्ह खड़े कर देते हैं। शायद इन दलों के नेताओं को इस बात का अंदाज़ा नही था कि चुनाव आयोग इनकी चुनौती स्वीकार कर लेगा, लेकिन जब चुनाव आयोग ने चुनौती स्वीकार करते हुए ईवीएम को बेदाग़ भी साबित कर दिया, तब ये मौन साधे हुए है।
इस तरह की छिछली और आधारहीन राजनीति का परिणाम ये भुगत ही रहे है और अगर इन्होंने अब सबक नही लिया तो निश्चित ही राजनीति से इन्हें अपने कदम वापस लेने पड़ जाएंगे। बहरहाल इससे जनता के मत को और मजबूती मिली है और निश्चित ही आगे भी मिलती रहेगी।
(लेखिका पत्रकारिता की छात्रा हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)