आज जब ममता घुसपैठियों की हिमायती बन रही हैं, तब वे शायद भूल रही हैं कि कभी इन्हीं घुसपैठियों के विरोध में उन्होंने संसद में भारी हंगामा किया था। 2005 में उन्होंने संसद में इस घुसपैठ को देश की सुरक्षा के लिए खतरनाक माना था। इतना ही नहीं, ममता को जब बोलने नहीं दिया गया तो उन्होंने बड़ा हंगामा करते हुए कागज फाड़कर फेंक दिए थे।
इन दिनों आसाम में एनआरसी यानी नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन का मुद्दा उछल रहा है। इसके बहुत विस्तार में न जाते हुए सरल रूप में इतना ही समझा जा सकता है कि असम में 40 लाख लोग ऐसे रह रहे हैं जो कि भारतीय नागरिकता प्राप्त नहीं हैं। इस लिहाज से वे घुसपैठियों के दर्जे में आते हैं। ये लोग बांग्लादेशी मूल के हैं। आसाम में इनकी बड़ी आबादी निवासरत है। अब चूंकि केंद्र सरकार हरकत में आ गई है और इन घुसपैठियों को बाहर खदेड़ने की बात पर उसे जनता का समर्थन भी मिल रहा है, ऐसे में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी एनआरसी के मसले पर पुरजोर विरोध कर स्वयं शंका के दायरे में आ गईं हैं।
ममता ने केंद्र सरकार पर तानाशाही का आरोप लगाते हुए इस कवायद को गलत करार दिया है। इतना ही नहीं, उन्होंने बेसिर पैर का बयान देते हुए यहां तक कह डाला था कि यदि सरकार ने यह काम नहीं रोका तो देश में गृहयुद्ध भी छिड़ सकता है। बांग्लादेशी घुसपैठियों का इस तरह हितैषी बनकर सामने आना ममता को भले ही अच्छा लग रहा हो, लेकिन गृहयुद्ध की उनकी भाषा किसीको रास नहीं आ रही।
इस विवादित बयान के बाद भाजपा ने उन्हें आड़े हाथों लिया और ममता की खूब आलोचना हुई। संसद भवन में मीडिया से बात करते हुए ममता ने गृहयुद्ध छिड़ने जैसी बात तो जरूर बोल दी, लेकिन बाद में कथित रूप से कांग्रेस ने भी इस बयान पर सहमति न जताते हुए इससे दूरी बनाए रखी। लिहाजा अराजकता की आड़ में अपनी बातें मनवाने का यह दांव ममता को उल्टा पड़ गया। बड़ी सफाई से वह अपने बयान से पलट भी गईं और विडंबनापूर्ण तरीके से उन्हें अभी भी 40 लाख घुसपैठियों की चिंता सता रही है।
असल में आक्रामकता दिखाने का हथकंडा इस बार ममता के काम नहीं आया। जब वे आज घुसपैठियों की हिमायती बन रही हैं, तब वे शायद भूल रही हैं कि कभी इन्हीं घुसपैठियों के विरोध में उन्होंने संसद में भारी हंगामा किया था। 2005 में उन्होंने संसद में इस घुसपैठ को देश की सुरक्षा के लिए खतरनाक माना था। इतना ही नहीं, ममता को जब बोलने नहीं दिया गया तो उन्होंने बड़ा हंगामा करते हुए कागज फाड़कर फेंक दिए थे।
अब सवाल ये उठता है कि जो बांग्लोदशी घुसपैठिये 13 साल पहले ममता को देश के लिए खतरनाक लग रहे थे, वे आज अचानक मासूम कैसे हो गए। सवाल तो यह भी उठता है कि यदि ममता को देश की आंतरिक सुरक्षा की इतनी ही चिंता है तो वे ये क्यों नहीं सोचतीं कि 13 साल में इन घुसपैठियों की आबादी काफी बढ़ गई होगी, यानी खतरा भी बढ़ गया होगा।
सच तो यह है कि ममता को ना भाजपा से कुछ मतलब है, ना कांग्रेस से और ना ही 40 लाख घुसपैठियों से। ममता को केवल सत्ता की मलाई खाना है और जनाधार खोने के भय एवं असुरक्षा से ग्रस्त होकर अब वे इन घुसपैठियों की हिमायती बनकर सामने आ रही हैं। वास्तविकता में ये 40 लाख लोग ममता के लिए केवल वोटबैंक हैं, और कुछ नहीं।
गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने स्पष्ट किया है कि सरकार किसी तरह की जर्बदस्ती नहीं कर रही है एवं सभी को पर्याप्त समय मिलेगा ताकि वे एनआरसी में अपना नाम देख सकें, नाम ना होने पर इसका प्रमाण दे सकें, दावे-आपत्ति कर सकें, बावजूद इसके ममता केंद्र सरकार के रूख को तानाशाही करार दे रही हैं।
इस बीच यह खबर भी सुनने में आ रही है कि आसाम सरकार इन घुसपैठियों के लिए बायोमेट्रिक डेटा तैयार करने जा रही है ताकि ये अन्य प्रदेशों में प्रवेश ना पा सकें। इस देश में आंतरिक सुरक्षा को लेकर गंभीर केंद्र सरकार के इस रवैये से देश के मूल निवासी बहुत संतुष्ट एवं प्रसन्न हैं। उम्मीद की जा सकती है कि समय रहते सब घुसपैठियों को देश से निकाल बाहर किया जाएगा।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)