प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस रफ्तार से बिजली, सड़क, पेयजल, रेल विकास, संचार आदि के जरिए विकास की राजनीति को अमलीजामा पहना रहे हैं, उससे वोट बैंक की राजनीति के दिन लदते नजर आ रहे हैं। जाति-धर्म-क्षेत्र-भाषा की राजनीति के जरिए अपनी जमीन बनाने वाले नेताओं को बेरोजगारी का डर सताने लगा है। इसीलिए वे कभी ईवीएम तो कभी सर्वोच्च न्यायालय के सहारे नरेंद्र मोदी को कटघरे में खड़ा करने में जी जान लगाए हुए हैं।
समकालीन भारतीय राजनीति में जितना विरोध नरेंद्र मोदी का हुआ है, उतना शायद ही किसी नेता का हुआ हो। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि मोदी का जितना विरोध होता है, मोदी उतने ही मजबूत बनते जाते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता की सबसे बड़ी वजह है, उनकी विकास की राजनीति जो “सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय” पर आधारित है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस रफ्तार से बिजली, सड़क, पेयजल, रेल विकास, संचार आदि के जरिए विकास की राजनीति को अमलीजामा पहना रहे हैं, उससे वोट बैंक की राजनीति के दिन लदते नजर आ रहे हैं। जाति-धर्म–क्षेत्र-भाषा की राजनीति के जरिए अपनी जमीन बनाने वाले नेताओं को बेरोजगारी का डर सताने लगा है। इसीलिए वे कभी ईवीएम तो कभी सर्वोच्च न्यायालय के सहारे नरेंद्र मोदी को कटघरे में खड़ा करने में जी जान लगाए हुए हैं।
मोदी विरोधियों के तमाम प्रयासों के बावजूद मोदी मजबूत बनते जा रहे हैं, तो इसका कारण यह है कि आम आदमी विकास की राजनीति के महत्व को समझ गया है। देश यह भी जान गया है कि भारत संपन्न और समृद्ध देश है, लेकिन वोट बैंक की राजनीति करने वाले नेताओं ने आम आदमी को संपन्नता और समृद्धि से दूर रखा।
वैसे तो मोदी की विकास की राजनीति के कई कारगर हथियार हैं, लेकिन उसमें सबसे सशक्त हथियार है बिजली। गौरतलब है कि गरीबी और बिजली खपत के बीच गहरा रिश्ता रहा है। जहां बिजली खपत ज्यादा है वहां गरीबी आखिरी सांसे गिन रही है, दूसरी ओर जहां बिजली की किल्लत है, वहां गरीबी का अंधियारा छाया हुआ है।
सबसे बड़ी बात यह है कि आजादी के बाद से ही सभी तक बिजली पहुंचाने के लिए ढेरों योजनाएं चलीं, लेकिन लक्ष्य पूरा नहीं हुआ। हां, इन योजनाओं के भ्रष्टाचार से अफसरों-नेताओं-ठेकेदारों की कोठियां जरूर गुलजार हो गईं। इसी का नतीजा है कि आजादी के लगभग 70 साल बाद भी देश के तीस करोड़ लोगों की जिंदगी सूरज की रोशनी में ही चहलकदमी करती रही है। लेकिन, मोदी सरकार के आने के बाद अब यह काला अध्याय इतिहास के पन्नों में दफन हो चुका है।
मोदी सरकार के प्रयासों से 2017 से 2018 के बीच भारत की बिजली उत्पादन क्षमता 1003.52 बिलियन यूनिट हो गई। औद्योगिक-कारोबारी गतिविधियों के विस्तार और प्रति व्यक्ति आमदनी में बढ़ोत्तरी के कारण देश में बिजली की मांग में लगातार इजाफा हो रहा है। इसी को देखते हुए मोदी सरकार बिजली उत्पादन की क्षमता में बढ़ोत्तरी कर रही है।
जनवरी 2018 में देश की बिजली उत्पादन क्षमता 3.34 लाख मेगावाट तक पहुंच गई। इस प्रकार यूरोपीय संघ, चीन, अमेरिका और जापान के बाद भारत विश्व का पांचवा सबसे बड़ा विद्युत उत्पादन क्षमता वाला देश बन चुका है। पिछले चार वर्षों के दौरान देश के बिजली उत्पादन में एक लाख मेगावाट की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है।
भारत 2016 में ही दुनिया का तीसरा बड़ा बिजली उपभोक्ता देश बन चुका है। चूंकि, देश में बिजली की मांग लगातार बढ़ रही है, इसी को देखते हुए मोदी सरकार ने 2022 तक पारंपरिक स्रोतों से एक लाख मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा है। लेकिन, मोदी सरकार इस कड़वी हकीकत से परिचित है कि सभी को चौबीसों घंटे सातों दिन बिजली मुहैया कराने का लक्ष्य केवल पारंपरिक स्रोतों से हासिल करना संभव नहीं है। इसीलिए वह अपारंपरिक ऊर्जा स्रोतों के विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता दे रही है।
हालांकि मोदी सरकार के आने के बाद अपारंपरिक ऊर्जा स्रोतों के विकास और उनसे बिजली उत्पादन में तेजी आई है, लेकिन अभी भी देश के कुल बिजली उत्पादन में इनका योगदान महज 14 फीसदी ही है। मोदी सरकार इस अनुपात को बढ़ाने पर काम कर रही है ताकि कोयले व पेट्रोलियम पदार्थों पर निर्भरता में कमी आए और जलवायु परिवर्तन के खतरों से भी निपटा जा सके। अपारंपरिक ऊर्जा विकास योजना के तहत मोदी सरकार ने 2022 तक 60000 मेगावाट पवन ऊर्जा, एक लाख मेगावाट सौर ऊर्जा और 2020 तक एटमी बिजली उत्पादन क्षमता को दो गुना करने का लक्ष्य रखा है।
मोदी सरकार बिजली उत्पादन में बढ़ोत्तरी के साथ-साथ संचरण-वितरण ढांचे को भी आधुनिक बना रही है ताकि बिजली चोरी और ट्रांसमिशन लॉस कम से कम हो। सरकार की तमाम उपलब्धियों को छोड़ भी दें तो यह एक उपलब्धि ही विरोधियों की राजनीतिक जमीन खिसकाने के लिए काफी है, इसीलिए वे मोदी के अंधविरोध की राजनीति कर रहे हैं।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)