कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी जितनी तेजी से रोज केंद्र सरकार के खिलाफ श्रृंखलाबद्ध रूप से ट्वीट करते हैं, उतनी तेजी व गंभीरता उन्होंने कांग्रेस शासित राज्यों में बिगड़ते हालातों को सुधारने के लिए कभी नहीं दिखाई। राहुल कम से कम अपने संसदीय क्षेत्र वायनाड के ही हालात संभालने में जुट जाते तो अच्छा होता। लेकिन वे अपना सारा ध्यान केवल सरकार को कोसने में लगा रहे हैं।
इन दिनों देश कोरोना महामारी की भीषण विभीषिका से जूझ रहा है। कोरोना वायरस महामारी की दूसरी लहर ने देश को हिलाकर रख दिया है। वायरस के बदलते स्वरूप से निपटने के बीच बिगड़ते हालातों को संभालना केंद्र सहित राज्य सरकारों के लिए चिंता और चुनौती का विषय बना हुआ है। चूंकि दूसरी लहर में कुछ राज्य अधिक चपेट में आए हैं तो कुछ अपेक्षाकृत कम। ऐसे में राज्य सरकारों ने सूझबूझ का परिचय देते हुए स्वत: अपने यहां के हालातों पर नियंत्रण करना शुरू किया। कोरोना कर्फ्यू, लॉकडाउन जैसे प्रतिबंधात्मक उपायों से संक्रमण की चेन को तोड़ने के भरसक प्रयास किए जा रहे हैं।
ऐसे प्रतिकूल हालातों में एक आदर्श विपक्ष की यह भूमिका होना चाहिये कि अपने दलगत एवं व्यक्तिगत मतभेदों को परे रखकर राष्ट्रहित में कार्य करें। केंद्र सरकार का साथ दें एवं राष्ट्र के निर्माण में सहयोग दें। लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो रहा है। देश के महामारी की चपेट में बुरी तरह आने के बाद भी विपक्षी दल, विशेषकर कांग्रेस, अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने से बाज नहीं आ रहे हैं।
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी जितनी तेजी से रोज केंद्र सरकार के खिलाफ श्रृंखलाबद्ध रूप से ट्वीट करते हैं, उतनी तेजी व गंभीरता उन्होंने कांग्रेस शासित राज्यों में बिगड़ते हालातों को सुधारने के लिए कभी नहीं दिखाई। राहुल कम से कम अपने संसदीय क्षेत्र वायनाड के ही हालात संभालने में जुट जाते तो अच्छा होता। लेकिन वे अपना सारा ध्यान केवल सरकार को कोसने में लगा रहे हैं।
विपक्षी दलों को नहीं भूलना चाहिये कि आपदा किसी के भी सत्ता में रहते हुए आ सकती है। तिसपर यह तो आजादी के बाद की सबसे बड़ी आपदा है। अतः इसमें राजनीतिक अवसर ना खोजते हुए उन्हें सत्तारूढ़ दल का सहयोग करना चाहिये। विपक्षी दल विरोध की राजनीति में इतना गिर गए हैं कि वे बिना सोचे समझे केंद्र सरकार के कार्यों में अड़ंगा लगा रहे हैं।
मसलन, अब वे दिल्ली में सरकार की परियोजना सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट का काम रोकने में लामबंद हो रहे हैं। मामला दिल्ली हाईकोर्ट तक चला गया है। कोर्ट से इस परियोजना को रुकवाने की मांग की जा रही है। यह आश्चर्य की बात है कि याचिका लगाने वालों ने अन्य एजेंसियों के कामों को रोकने में रुचि नहीं दिखाई है। उन्हें बस सेंट्रल विस्टा से एतराज़ है। राहुल गांधी सहित कांग्रेस के तमाम नेता लगातार इस प्रोजेक्ट का विरोध करने में लगे हैं और यह विरोध कोरोना की पिछली लहर के समय भी किया गया था।
इस तरह के विघ्नसंतोषी अपना और सरकार का समय नष्ट कर रहे हैं। विरोधियों के तर्क भी बड़े बेतुके हैं। उन्हें बंगाल चुनाव में भाजपा की प्रचार रैलियों से संक्रमण बढ़ता नज़र आया लेकिन महाराष्ट्र, पंजाब, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कौन से चुनाव हो रहे थे। इन राज्यों में तो कोरोना संक्रमण कहर बरपा रहा है। दक्षिण भारत में देखें तो केरल में संक्रमण का दायरा घातक हो गया है।
वैक्सीन को लेकर भी कांग्रेस के नेता आज हो-हल्ला मचाए हैं और इसकी कमी की बात कर रहे हैं, लेकिन यही लोग अभी कुछ महीने पहले तक वैक्सीन पर भरोसा करने को तैयार नहीं थे। राहुल गांधी सहित कांग्रेस के तमाम नेताओं ने वैक्सीन पर सवाल उठाए थे। वहीं सपा के अखिलेश यादव ने तो यह तक कह दिया था कि ये भाजपा की वैक्सीन है, इसलिए वे इसे नहीं लगवाएंगे। ऐसे में, आज जब ये लोग वैक्सीन की बात करते हैं तो इनके चरित्र का दोहरापन ही सामने आता है।
यह जानना प्रेरक हो सकता है कि कई छोटे शहर, कस्बों में स्थानीय प्रशासन ने अपने स्तर पर निराकरण किया। इस बात की तस्दीक केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की उस सूचना से होती है जिसमें यह कहा गया है कि देश के 170 से अधिक जिलों में गत 7 दिन से कोरोना का एक भी नया केस नहीं आया है। जब सुदूर इलाकों में यह हो रहा है तो सवाल उठता है कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में क्या हो रहा है। दिल्ली में मौत के अलावा अव्यवस्थाओं का तांडव हो रहा है।
अप्रैल महीने में दिल्ली देश के उन क्षेत्रों में एक था जहां कोरोना की सर्वाधिक मार पड़ी है। प्रश्न यह है कि ऐसे में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल आखिर क्या कर रहे थे। वे केवल सोशल मीडिया पर पोस्ट करने और प्रेस कांफ्रेंस कर अपनी छवि चमकाने में व्यस्त थे। धरातल पर केजरीवाल ने कोई ठोस पहल नहीं की और लगातार सोशल मीडिया पर पोस्ट करके वे अपने कर्तव्य की इतिश्री कर रहे हैं। बाद में जब केंद्र ने राज्यपाल के माध्यम से दिल्ली के हालात का नियंत्रण लिया तब धीरे-धीरे वहाँ हालत सुधरने लगे हैं।
कोरोना की त्रासदी के बीच केजरीवाल ने केवल केंद्र के सामने कभी ऑक्सीजन तो कभी वैक्सीन की कमी का रोना रोया है। कभी पत्र लिखकर केंद्र से कुछ मांगा। कभी पोस्ट लिखकर केंद्र को कोसा। ऑक्सीजन मिल गई तो केंद्र का आभार माना। नहीं मिली तो शिकायत की। जब वे ऑक्सीजन से बढ़ते हैं तो वैक्सीन पर शुरू हो जाते हैं। प्रश्न यह है कि आखिर केजरीवाल खुद क्या कर रहे हैं।
जिस मोहल्ला क्लिनिक के वादे के दम पर उन्होंने दिल्ली की सत्ता पाई, इस आपदा में वो मोहल्ला क्लिनिक कहीं नजर नहीं आए। कम से कम दिल्ली से तो यह अपेक्षा की ही जाती है कि यहां सुपर स्पेशलिटी से लेकर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में स्वास्थ्य की उत्तम सुविधाएं होना चाहिये। क्या केजरीवाल इस तरह से कोरोना संक्रमण की चेन तोड़ेंगे?
यदि अभी भी केजरीवाल ने अपनी जिम्मेदारी नहीं समझी तो अगले चुनाव में वे मुफ्त की रेवडि़यों के लालच से भी वोटर्स को रिझा नहीं सकेंगे। जनता उन्हें आईना दिखा देगी। समग्रतः कांग्रेस, केजरीवाल आदि सभी विपक्षी दलों और नेताओं को एक बात समझनी चाहिए कि देश इस समय बहुत बड़ी आपदा से जूझ रहा है, जिसे संभालने का प्रयास केंद्र सरकार तथा तमाम राज्य सरकारें भी अपने-अपने स्तर पर कर रही हैं। ऐसे में यह समय नकारात्मक राजनीति करने और कमियां निकालने का नहीं, बल्कि केंद्र सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर इस महामारी से लड़ने का है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)