समस्या अकेले अखिलेश या मायावती की नहीं, बल्कि समूचे विपक्ष की है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि 2017 से लेकर अभी तक योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री के रूप में बहुत सफल साबित हुए हैं। उन्होंने प्रदेश में ना केवल गुंडागर्दी को नियंत्रित किया, बल्कि अपराध भी घटे हैं। योगी ने कोरोना महामारी में भी उत्तर प्रदेश को एक आदर्श राज्य के रूप में स्थापित किया एवं कुशल आपदा प्रबंधन के चलते अन्य राज्यों के लिए भी मिसाल कायम की। इससे विपक्ष बौखलाया हुआ है।
पिछले दिनों उत्तर प्रदेश की पुलिस, आतंकरोधी दस्ते ने बहुत बड़ी सफलता प्राप्त की। राजधानी लखनऊ से आतंकी संगठन अलकायदा के दो आतंकी धरे गए। इसके अलावा काकोरी से भी एटीएस ने दो आतंकियों को गिरफ्तार किया। इसके साथ ही प्रदेश में रची जा रही बहुत बड़ी आतंकी साजिश का भंडाफोड़ हो गया। यूपी पुलिस की सूझबूझ और सक्रियता से आतंकी हमले के मंसूबे नाकाम हो गए।
पकड़े गए आतंकियों ने पूछताछ में स्वीकार किया है कि वे प्रदेश के 8 शहरों में आगामी स्वतंत्रता दिवस के आसपास सीरीयल ब्लास्ट करने वाले थे। धरपकड़ में पुलिस को इनसे प्रेशर कुकर बम, टाइम बम और भारी मात्रा में विस्फोटक सामग्री भी बरामद हुई है। यहां तक सब कुछ साफ सुथरा और स्पष्ट है कि हजारों लोगों की जान बचा ली गई।
निश्चित ही यह संतोष और प्रसन्नता का विषय है। लेकिन आश्चर्यजनक है कि पुलिस की इस प्रभावी कार्रवाई से सपा नेता अखिलेश यादव असंतुष्ट हैं। उनके साथ ही पूर्व सीएम मायावती भी बहुत प्रसन्न नहीं हैं। सवाल है कि यदि आतंकी विस्फोट की साजिश रच रहे थे और वे पकड़े जाते हैं तो यह संतोष का विषय होना चाहिये या शिकायत का ? इससे तो यह प्रतीत होता है जैसे अखिलेश और मायावती इन आतंकियों की पैरवी कर रहे हों।
अखिलेश ने एक बयान में कहा कि उन्हें यूपी पुलिस पर भरोसा नहीं है, वहीं मायावती कहती हैं कि विधानसभा चुनाव के पहले ऐसी कार्रवाई अविश्वसनीय है। यदि हम अखिलेश की बातों पर गौर करें तो पाएंगे कि उन्हें आतंकी साजिश नाकाम होने की जरा भी खुशी नहीं है। साथ ही, यदि वे कहते हैं कि उन्हें यूपी पुलिस और भाजपा पर भरोसा नहीं है तो सवाल उठता है कि फिर उन्हें भरोसा किसपर है ? क्या अखिलेश यह चाहते हैं कि आतंकी साजिशें सफल हो जाएं।
जरा याद कीजिये, यूपीए की सरकार में एक दशक पहले का दौर जब देश के कई शहरों में एक के बाद एक लगातार बम विस्फोट हुए थे और हजारों लोगों की मौत हुई थी। 2007 में उत्तर प्रदेश के कई शहरों में सीरीयल ब्लास्ट हुए थे। अब जबकि ऐसे साजिशों को अंजाम दिए जाने से पहले ही ध्वस्त किया जा रहा है तो इसमें अखिलेश यादव को इतनी समस्या क्यों हो रही है। उनकी यह समस्या बहुत कुछ बयां करती है।
इससे पहले भी अखिलेश कोरोना की वैक्सीन को भाजपा की वैक्सीन बताकर अपनी हंसी उड़वा चुके हैं। आज वे वैक्सीन और एटीएस पर सवाल उठा रहे हैं। पांच साल पहले सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल उठाने वालों में वे भी शामिल थे। इसमें नया कुछ नहीं है।
उनके इस बेसिर पैर के बयान के बाद भाजपा ने उन्हें आड़े हाथों लिया है। यूपी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने उनकी जमकर खबर ली और कहा कि एक तरफ जहां पुलिस अपने जीवन को ताक पर रखकर आतंकियों को पकड़ रही है, वहीं अखिलेश यादव को इस पुलिस पर भरोसा नहीं हो रहा है। ये वही अखिलेश यादव हैं जिन्होंने अपने कार्यकाल में आतंकवादियों के केस वापस लेने का प्रयास किया था।
यदि उन्हें पुलिस पर भरोसा नहीं है तो फिर वे खुद बताएं कि उन्हें किस पर भरोसा है। क्या उन्हें उन पर भरोसा है जो सपा के शासनकाल में दंगाइयों को हेलीकॉप्टर में बैठाकर मुख्यमंत्री कार्यालय ले जाकर स्वागत कर रहे थे। कांग्रेस के शासन में तो आतंकियों को जेल में भी बिरयानी खिलाई गई थी। बाटला हाउस मुठभेड़ में मारे गए अपराधियों के लिए तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के आंसू तक छलक आए थे।
देश की सुरक्षा के लिए तो पुलिस और सेना बारहों महीने काम करती है, ऐसे में मायावती के इस बेतुके बयान का भी भी कोई औचित्य नहीं है कि यह चुनाव से पहले क्यों किया गया। यदि चुनाव के पहले एटीएस ने आतंकी मॉड्यूल पकड़ा है तो इससे तो संदेश जाता है कि प्रदेश की कानून व्यवस्था बिल्कुल पुख्ता एवं सतर्क है। इसमें भी खुश होने की बजाय मायावती का प्रतिकूल बयान उनकी भी विचारधारा को स्पष्ट करता है।
असल में यह समस्या अकेले अखिलेश या मायावती की नहीं, बल्कि समूचे विपक्ष की है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि 2017 से लेकर अभी तक योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री के रूप में बहुत सफल साबित हुए हैं। उन्होंने प्रदेश में ना केवल गुंडागर्दी को नियंत्रित किया, बल्कि अपराध भी घटे हैं। कोरोना महामारी में भी उत्तर प्रदेश को एक आदर्श राज्य के रूप में स्थापित किया एवं कुशल आपदा प्रबंधन के चलते अन्य राज्यों के लिए भी मिसाल कायम की। इससे विपक्ष बौखलाया हुआ है।
अब जहां तक राजनीतिक बढ़त की बात है, तो इस मामले में भी योगी आदित्यनाथ के सामने अखिलेश-मायावती से लेकर कांग्रेस तक सब फीके ही नजर आ रहे। राज्य में पंचायत स्तर से लेकर जिला स्तर तक सपा सिमट गई है।
ऐसे में अपनी बची खुची जमीन बचाने के लिए अखिलेश बयानबाजी तो कर रहे हैं लेकिन बौखलाहट में वे प्रदेश की आतंरिक सुरक्षा पर कुछ ऐसा बोल गए हैं जिससे उनकी ही सर्वत्र किरकिरी हो रही है। वे पहले भी बड़बोले थे और अब भी उनमें कोई सुधार नहीं आया है। उनका यह बड़बोलापन प्रदेश की जनता बखूबी समझ रही है। यूपी में आतंकवाद सहित इन्हें पोषित करने वाली ताकतों को चुनाव में जनता जरूर जवाब देगी।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)