योगी सरकार ने यूपी के विकास की दिशा में जो छाप छोड़ी है, वह पूर्ववर्ती सरकारें कई वर्षों तक नहीं कर पाईं थीं। एक मुख्यमंत्री मायावती थीं जिन्होंने खुद की मूर्ति, हाथियों की मूर्ति बनाने में जनता का पैसा बर्बाद किया तो एक मुख्यमंत्री अखिलेश यादव थे जो जनता की कमाई का पैसा सैफई में होने वाले फूहड़ जलसों में उड़ा दिया करते थे। रही सही कसर उनके मंत्री आजम खान, गायत्री प्रजापति जैसे लोग पूरी कर दिया करते थे जो पद पर रहते हुए व्यभिचार और भ्रष्टाचार का पर्याय बन गए थे।
उत्तर प्रदेश में चुनावी बिगुल बज चुका है। राजनीतिक दल अपने-अपने स्तर पर प्रचार अभियान में लगे हैं। हालांकि चुनाव आयोग के नियमों के अनुसार फिलहाल वर्चुअल प्रचार ही चल रहा है लेकिन तब भी बयान-प्रतिक्रिया में कोई कमी नहीं है।
देखा जाए तो राज्य की भाजपा सरकार के पास गिनाने के लिए पर्याप्त उपलब्धियां हैं जबकि विपक्ष के पास ना तो गिनाने के लिए अतीत के काम हैं और ना ही भविष्य में किए जाने वाले वायदों के लिए कोई विश्वास योग्य आधार।
परिणामतः विपक्ष पूरी तरह से मुद्दाविहीन नजर आ रहा है और उसकी राजनीति का आधार केवल अनर्गल बयानबाजी, आरोप-प्रत्यारोप, सस्ती लोकप्रियता हासिल करने वाले वक्तव्य और थोथी नीतियों तक सीमित होकर रह गया है। उत्तर प्रदेश में इन दिनों बस यही सब हो रहा है।
वर्तमान मुख्यमंत्री और गोरखपुर से चुनाव लड़ने वाले योगी आदित्यनाथ यदि आश्वस्त नज़र आ रहे हैं तो इसके पीछे उनके पास पर्याप्त आधार है। 2017 से लेकर 2022 तक उनके पास कुशल प्रशासन, आपदा प्रबंधन, विकास कार्य, सुरक्षा व्यवस्था, व्यवसायिक निवेश जैसे गौरवशाली अनुभव हैं, जिनके बूते उन्होंने प्रदेश की जनता के मन में जगह बनाई है और वे पुन सरकार बनाने का दावा कर रहे हैं। लेकिन इसके उलट विपक्षी समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव के पास ईर्ष्या एवं कुंठा के सिवाय कुछ नहीं है। नतीजतन वे बेसिर पैर के बयान देने में लग गए हैं।
उनका यह बयान देना कि भगवान श्रीकृष्ण उनके सपनों में आए, केवल यही दर्शाता है कि वे मानसिक रूप से अस्थिर हैं। भगवान श्रीकृष्ण का सपने में आना कोई असंभव या बुरी बात नहीं है लेकिन अपने राजनीतिक हथकंडों के लिए ईश्वर तक का ऐसा इस्तेमाल कर लेने की सोच बहुत कुत्सित सोच है।
अखिलेश यादव कर्म करना नहीं जानते ना ही उनका कर्म से वास्ता रहा है, जबकि योगी आदित्यनाथ घोषित रूप से एक संत, महंत होने के बावजूद राजनीतिक प्रचार के लिए ईश्वर के नाम का सहारा ना लेकर स्वयं के कार्यों व नीतियों का बखान कर रहे हैं। आदर्श रूप से होना भी यही चाहिये। भगवान् श्री कृष्ण ने भी गीता में कर्म की प्रधानता का ही संदेश दिया है।
कहने को तो योगी सरकार ने 5 साल पूरे किए हैं लेकिन इसमें भी डेढ़ साल कोरोना महामारी ने लील लिए। बावजूद इसके सरकार का रिपोर्ट कार्ड जबरदस्त है। उन्होंने यूपी के विकास की दिशा में जो छाप छोड़ी है, वह पूर्ववर्ती सरकारें कई वर्षों तक नहीं कर पाईं थीं।
एक मुख्यमंत्री मायावती थीं जिन्होंने खुद की मूर्ति, हाथियों की मूर्ति बनाने में जनता का पैसा बर्बाद किया तो एक मुख्यमंत्री अखिलेश यादव थे जो जनता की कमाई का पैसा सैफई में होने वाले फूहड़ जलसों में उड़ा दिया करते थे। रही सही कसर उनके मंत्री आजम खान, गायत्री प्रजापति जैसे लोग पूरी कर दिया करते थे जो पद पर रहते हुए व्यभिचार और भ्रष्टाचार का पर्याय बन गए थे।
आज लोग यह फर्क साफ महसूस कर पा रहे हैं कि प्रदेश में माफिया भी सरकार से खौफ खाते हैं। यहां कानून व सुरक्षा व्यवस्था बहुत हद तक सुधरी है। अपराधियों पर अंकुश लगा तो अपराध भी घटे। जेवर एयरपोर्ट हो या कानपुर मेट्रो, गन्ना किसानों को लाभ देना हो या पूर्वांचल एक्सप्रेस वे की सौगात, इस सरकार ने जनता को, हर वर्ग को बहुत सुविधाएं दी हैं। इससे विकास को पंख लग गए हैं। यकीन नहीं आता कि क्या यह वही यूपी है, जिसकी छवि एक बुरे राज्य की बना दी गई थी जहां केवल गुंडाराज और मनमानी ही चलती थी। सही हाथों में सत्ता जाने का यह फायदा होता है जो अब दिखाई दे रहा है।
प्रदेश की जनता अब पूरी तरह से समझ चुकी है कि उन्हें पिछड़ा बनाए रखने में सपा सरकार ने कोई कसर नहीं छोड़ी। रही बात अल्पसंख्यकों की, तो उन्हें केवल वोटबैंक की तरह इस्तेमाल किया गया। उन्हें साक्षरता एवं विकास से दूर इसलिए रखा गया कि वे पिछड़े बने रहें। क्योंकि यदि वे साक्षर हो गए तो फिर वे सवाल उठाने लगेंगे और भले बुरे का भेद समझने लगेंगे। इसलिए बहुत सोची-समझी नीति के तहत उन्हें पिछड़ा बनाए रखा गया। लेकिन अब योगी सरकार सबका साथ, सबका विकास का मंत्र लेकर चल रही है इसलिए यहां किसी प्रकार का भेदभाव नहीं है।
यूपी में मुस्लिम तबका भी तरक्की कर रहा है और भाजपा सरकार का समर्थन कर रहा है। कोरोना महामारी के समय योगी सरकार ने कुशल रूप से आपदा प्रबंधन कर दिखाया। इतने बड़े राज्य की विपुल जनसंख्या को घातक संक्रमण से बचाए रखना बड़ी चुनौती थी। योगी आदित्यनाथ ने पूरी मेहनत के साथ संक्रमण को रोकने में सफलता प्राप्त की। इतना ही नहीं, जब कोरोना टीकाकरण अभियान शुरू हुआ तब भी यूपी की तरफ से इसमें सर्वाधिक भागीदारी की गई। समय-समय पर प्रतिबंधात्मक उपाय किए जाने से संक्रमण पर भी काबू पाया जा सका है। यह तब होना संभव है जब सरकार को जनता की फिक्र हो।
अखिलेश यादव ने तो कभी जनता की चिंता की ही नहीं। उन्होंने खुद तो काम किया ही नहीं और उल्टा अब वे हर बात में श्रेय लेने आगे जा जाते हैं। इससे बड़ी शर्मनाक बात और क्या हो सकती है। असल में यूपी में विपक्ष के पास कोई चुनावी मुद्दा ही नहीं है। यह मुद्दा विहीन विपक्ष है जिसके पास गिनाने के लिए योगी सरकार की कोई नाकामी नहीं है, क्योंकि ऐसा कुछ हुआ ही नहीं है।
ऐसे में विपक्ष सिर धुनने की मुद्रा में आ गया है। समय-समय पर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी यूपी में अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने और नफरत की राजनीति फैलाने चले आते हैं लेकिन जनता उन्हें गंभीरता से नहीं लेती है। 10 मार्च को तय हो जाएगा कि यूपी की जनता ने दोबारा किस पर भरोसा जताया है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)