भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने उचित ही कहा कि घुसपैठियों की पहचान जरूरी थी। लेकिन सवाल यह है कि बांग्लादेशी घुसपैठियों को विपक्ष क्यों बचाना चाहता है? असम समझौते के तहत एनआरसी का ड्राफ्ट तैयार किया गया है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने राज्यसभा में दावा किया कि किसी भी भारतीय का नाम नहीं कटेगा, लेकिन वोटबैंक के लिए विरोधी दल बेमतलब हंगामा कर रहे हैं।
असम के राष्ट्रीय जनगणना रजिस्टर प्रसंग पर संसद में हंगामा हतप्रभ करने वाला है। आंतरिक सुरक्षा से जुड़े इस मुद्दे पर तो राष्ट्रीय सहमति दिखनी चाहिए थी, जबकि इसमें सभी छूटे भारतीयों का नाम दर्ज होना तय है। लेकिन कुछ लोगों के लिए यह आंतरिक सुरक्षा की जगह सियासत का मुद्दा है। जनगणना रजिस्टर पर भारत के नागरिकों के लिए कोई कठिनाई ही नहीं है। दो महीने में छूट गए भारतीयों का नाम राष्ट्रीय जनगणना रजिस्टर में दर्ज होगा। ऐसे में विपक्ष का हंगामा बेमानी है। उसे सुप्रीम कोर्ट की निगरानी पर भी विश्वास नहीं है।
चालीस लाख लोगों के नाम इसमें दर्ज नहीं हुए हैं। लेकिन इस पर हंगामे का अभी कोई कारण ही नही था, जिन भारतीयों के नाम छूटे थे, उन्हें तो किसी से डरने की जरूरत ही नहीं है, सरकार स्वयं उनका नाम शामिल करने की बात कह रही है। यह कोई मुद्दा ही नहीं है। लेकिन असली वजह उन अवैध घुसपैठियों को लेकर है, जिन्हें असम की कांग्रेस और प. बंगाल की अनेक सरकारो ने वोटर बना दिया था। इन दलों की वोटबैंक की सियासत बेनकाब हो रही है।
विश्व के किसी भी देश में अवैध घुसपैठियों पर ऐसी हमदर्दी नहीं दिखाई जाती। भारत की संसद में विपक्षी दलों के बीच इसे लेकर प्रतिस्पर्धा चल रही थी। कोई भी यह मौका हाथ से छोड़ना नहीं चाहता था। ममता बनर्जी गृहयुद्ध की धमकी दे रही हैं। मायावती गंभीर परिणाम की चेतावनी जारी कर रही हैं। राहुल गांधी को लोगों में असुरक्षा दिखाई देने लगी है। इनकी धर्मनिरपेक्षता में अवैध घुसपैठियों के लिए हमदर्दी है। जम्मू कश्मीर से भगाए गए हिंदुओं के लिए इन्होंने कभी हंगामा नहीं किया।
असम में राष्ट्रीय जनगणना रजिस्टर का कार्य सुप्रीम कोर्ट के निर्देश और निगरानी में चल रहा है। इसके अलावा राज्य सरकार ने कहा है कि घुसपैठियों के बारे में अभी कोई भी अंतिम निष्कर्ष नहीं निकाला गया है। तीन करोड़ से ज्यादा लोगों के रजिस्टर में विवरण दर्ज करना कठिन कार्य था, इसमें मानवीय गलती हो सकती है। इसीलिए सरकार ने दो महीने का अतिरिक्त समय दिया। नागरिकता की दो आसान शर्तें थीं। इसमें दो विकल्प दिए गए। पहला या तो 1991 की जनगणना में वंशज का नाम हो या 1971 की आधी रात तक भारत मे प्रवेश का कोई भी प्रमाण हो।
इसके लिए दो महीने का अवसर दिया गया है। इसके बाद ट्रिब्यूनल में अपील का भी विकल्प है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने उचित ही कहा कि घुसपैठियों की पहचान जरूरी थी। लेकिन सवाल यह है कि बांग्लादेशी घुसपैठियों को विपक्ष क्यों बचाना चाहता है? असम समझौते के तहत एनआरसी का ड्राफ्ट तैयार किया गया है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने राज्यसभा में दावा किया कि किसी भी भारतीय का नाम नहीं कटेगा, लेकिन वोट बैंक के लिए विरोधी दल बेमतलब हंगामा कर रहे हैं।
राजीव गांधी ने उन्नीस सौ पच्चासी में असम समझौता किया था। यह आज के राष्ट्रीय जनगणना रजिस्टर जैसा ही था। लेकिन उनकी सरकार में इसे लागू करने की हिम्मत नहीं थी, वर्तमान सरकार में इसके क्रियान्वयन की हिम्मत है। अमित शाह के इस बयान पर कांग्रेस सांसदों ने हंगामा करते हुए विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया जबकि शाह उन्हें आईना दिखा रहे थे।
इस मामले पर शुरू से गौर करें तो अस्सी के दशक मे असम में अवैध रूप से रह रहे लोगों के खिलाफ एक आंदोलन की शुरूआत हुई थी। इस आंदोलन की अगुवाई ‘ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन’ और ‘ऑल असम गण संग्राम परिषद्’ ने की थी। आंदोलनकारियों की मांग थी कि असम में अवैध रूप से रह रहे लोगों, खासकर बांग्लादेशियों, की पहचान की जाए और उन्हें वापस भेजा जाए। साथ ही असम के मूल निवासियों के संवैधानिक और प्रशासनिक अधिकारों की रक्षा की जाए। छह साल तक चले इस आंदोलन के चलते साल उन्नीस सौ पच्चासी में केन्द्र सरकार और आंदोलनकारियों के बीच समझौता हुआ था।
वस्तुतः अगले दो महीने तक विपक्षी नेताओं को अभी इस विषय पर कुछ बोलना ही नहीं चाहिए था। इस दौरान वहां निवास करने वाले सभी भारतीयों के नाम रजिस्टर में जुड़ जाते। ऐसा नहीं है कि देश के निवासियों की चिंता केवल ममता बनर्जी, राहुल गांधी और उनकी पार्टियों को है।
इन लोगों को समझना चाहिए कि भाजपा राष्ट्रीय पार्टी है। प्रत्येक प्रांत में उसका आधार है। वह किसी भारतीय को राष्ट्रीय जगगणना रजिस्टर से बाहर रखने के बारे में सोच भी नहीं सकती। इस संबन्ध में जो लिपकीय गड़बड़ी हुई है, उसे दूर किया जा रहा है। रही बात अवैध घुसपैठियों की तो उन्हें किसी भी देश की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था के लिए खतरा माना जाता है। इन्हें वोटर बना कर रखने के हिमायती देश की सुरक्षा से खिलवाड़ कर रहे हैं।
(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)