देश में हो रहें पाक प्रायोजित आतंकी हमलों के विरुद्ध माहौल बनता हैं, और उसके कृत्यों का जवाब उसी की भाषा में सेना के पैरा कमांडो द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक के रूप में दिया जाता हैं। शुरुआती दौर में तो देश की सभी विपक्षी पार्टियां इस मुद्वे पर सहमत रहती हैं, लेकिन कुछ ही दिन बाद जिस तरह से सेना के बाहुबल पर शक करते हुए सरकार और सेना से सबूत मांग रही हैं, यह साबित करता हैं कि देश में अपनी राजनीति चमकाने के लिए ये पार्टियां कोई भी हथकण्डा अपना सकती हैं। फिर इसके लिए चाहे देश को विश्व के सामने मुँह की खानी पडें। जब विश्व की शक्ति अमेरिका, रूस और इंग्लैंड भारत के सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर देश के पक्ष में हैं, तो देश के अंदर उस पर सियासत करना ठीक नहीँ कहा जा सकता हैं।
कांग्रेस और आप पार्टी के लोगों द्वारा सेना की कार्यवाही को फर्जी बताना देश की सुरक्षा की दृष्टि से अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण कहा जा सकता हैं। भारत के जवाबी कार्यवाही के बाद पाक द्वारा पुनः हमले के खिलाफ पक्ष और विपक्ष को मिलकर कठोर रणनीति से जवाब की आशा देश के लोंगो को थी, लेकिन विपक्ष के इस रवैये से लोगों की उम्मीदों से एक बार फिर झटका लगा हैं। 28-29 की मध्य-रात्रि की इस सर्जिकल कार्यवाही से भारत जहां पाक और अन्य देशों को संकेत देने में सफ़ल रहा कि, वह अपने ऊपर होने वाले हमले का जवाब देने के लिए किसी के आदेश का मोहताज नहीँ, फिर देश के भीतर ही विरोध का स्वर इस क्षमता पर सवाल खड़ा करता हैं।
पाक की भारत द्वारा की गयी सर्जिकल कार्यवाही से मना करना उसकी मजबूरियाँ हो सकती हैं। अपनी आवाम में अपना जलवा दिखाने की पाक सत्ता की विवशता हो सकती हैं। वहां की सरकार को अपने देश और सिहासन को बचाने की कवायद हो सकती हैं? परन्तु अपने देश में अपनी ही सेना के कार्यो और बातों पर सन्देह जताना सेना के गौरव के साथ सरकार के नीतिगत मामलोँ पर सवाल उठाना देश की सुरक्षा और हितों के लिए सही नहीँ कहा जा सकता हैं। आतंकवाद जब आज विश्वव्यापी समस्या बन चुकी हैं और भारत ने आतंकवाद के खिलाफ विश्व स्तर पर जंग छेड़ दिया हैं, तो देश में ही इस तरीके से सेना की कार्रवाई का अप्रत्यक्ष रूप में सबूत माँगना किस भी रूप में सही नहीं हैं। सर्जिकल आपरेशन को बहुत ही रक्षात्मक ढंग से सेना द्वारा किया जाता हैं, जिसमें सेना के जवानों की छोटी सी गलती सेना के जवान के लिए खतरें का रूप ले सकती हैं, फिर इस मुद्वे पर विपक्षी राजनेताओं द्वारा बयानबाजी करना और सेना के कार्य को संदिग्ध बताना उचित नहीं हो सकता?
कांग्रेस और आप पार्टी के लोगों द्वारा सेना की कार्यवाही को फर्जी बताना देश की सुरक्षा की दृष्टि से अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण कहा जा सकता हैं। भारत के जवाबी कार्यवाही के बाद पाक द्वारा पुनः हमले के खिलाफ पक्ष और विपक्ष को मिलकर कठोर रणनीति से जवाब की आशा देश के लोंगो को थी, लेकिन विपक्ष के इस रवैये से लोगों की उम्मीदों से एक बार फिर झटका लगा हैं। 28-29 की मध्य-रात्रि की इस सर्जिकल कार्यवाही से भारत जहां पाक और अन्य देशों को संकेत देने में सफ़ल रहा कि, वह अपने ऊपर होने वाले हमले का जवाब देने के लिए किसी के आदेश का मोहताज नहीँ, फिर देश के भीतर ही विरोध का स्वर इस क्षमता पर सवाल खड़ा करता हैं।
भारतीय सेना का मुख्य उद्देश्य उरी हमले का बदला लेना था, जिसमें हमारी सेना सफल रही, यह बात देश के लिए महत्वपूर्ण थी,न कि कार्यवाही को दिखाना। सेना के साथ अजित डोभाल और सरकार को इसका श्रेय भी मिलना चाहिए। देश 25 वर्षो से आतंकवाद को झेलता आ रहा हैं, जिसके विरुद्ध यह मोर्चा खोलना जरूरी भी था। आज के दौर में आतंकवादियों के हौसले बहुत बुलंद हो चुके थे, जिस पर प्रहार कर भारतीय सेना ने 7 आतंकी कैम्पो को ध्वस्त किया और 40 के लगभग आतंकी मार गिराये, यह आतंकियों के हुक्मरानों के इरादों पर पानी फेरने वाले हो सकते हैं। उरी के बाद पाक के भ्रमित नेताओं और समर्थकों को यह समझ लेना चाहिए कि वह आतंकवाद पर अपनी नीति बदल ले वरना अब भारत नें सामरिक संयम से किनारा कर लिया हैं और विश्व के देश उसके साथ खड़े हैं, अब वह गहरा आघात पहुँचाने से नहीं हटेगा। पाक की तो नियति में यह बस गया हैं, क़ि वह बार-बार अपने ऊपर हो रहे सर्जिकल अभियान से इंकार करता आया हैं, जिससे देश के सामने और विदेशों में उसकी करतूतों की वजह से थू-थू न हो। फ़िर वह चाहे अमेरिका द्वारा ओसामा-बिन-लादेन को खोजकर मौत के घाट उतारने के वक्त हो, या 2011, 2013 और 2014 की बात हो, जब भारतीय सुरक्षा बलों नें पाक की सीमा के अंदर जाकर आतंकियों पर कार्यवाही हो। अरविंद केजरीवाल, संजय निरुपम जैसे नेताओं और सोशल- मिडिया द्वारा सेना की कार्यवाही पर सन्देह परोसने का स्वार्थ क्या हैं,यह जनता को जरूर पूछना चाहिए। क्या उन्हें सेना और देश की लोकतांत्रिक सरकार पर विश्वास नहीं हैं? विपक्ष का यह रवैया निश्चित तौर पर सेना का मनोबल गिराने वाला और अत्यंत निराशाजनक है।
(ये लेखक के निजी विचार हैं।)