गुजरात में पशुपालकों व कम्पनियों के बीच कॉन्ट्रेक्ट आधार पर व्यवसाय चल रहा है। डेरी वाले पशुपालकों से दूध लेने का कॉन्ट्रैक्ट करते हैं, लेकिन इससे पशुपालकों के साथ कभी अन्याय नहीं हुआ। अपितु इस योजना से पशुपालकों को लाभ मिल रहा है। ऐसा ही लाभ किसान को भी मिलेगा। इसकी व्यवस्था नए कृषि कानून में की गई है।
नरेंद्र मोदी की सरकार 2014 में पहली बार सत्तारूढ़ होने के बाद से ही किसानों को लाभ पहुंचाने का लगातार प्रयास कर रही है। छह वर्ष के दौरान अनेक अभूतपूर्व कदम उठाए गए हैं। किसानों को इतनी सुविधाएं पहले कभी भी उपलब्ध नहीं कराई गई। यूपीए सरकार ने दस वर्ष में एक बार किसानों की कर्ज माफी की थी। लेकिन उस समय किसानों के पास जनधन खाते ही नहीं थे।
ऐसे में किसानों को इस कर्ज माफी का पर्याप्त लाभ ही नहीं मिला था। लेकिन यूपीए सरकार इसी को अपनी उपलब्धि बताती रही। क्योंकि उसके पास किसान हित के नाम पर ज्यादा कुछ बताने के लिए नहीं था। जबकि नरेंद्र मोदी सरकार की इस क्षेत्र में बेहतरीन उपलब्धियां हैं।
अब किसानों को सरकारी योजनाओं का सीधा लाभ मिल रहा है। प्रधानमंत्री ने कच्छ में किसानों से बात की, यह बताया कि विपक्षी पार्टी कृषि कानून पर किसानों को भ्रमित करने का प्रयास कर रही है। उनका विरोध कल्पना पर आधारित है।
इस समय किसानों के नाम पर नकारात्मक राजनीति चल रही है। लेकिन इसका क्षेत्र अति सीमित है। दिल्ली के आसपास किसानों को भ्रमित करने की बड़ी साजिश चल रही है। उन्हें बताया जा रहा है कि नए कृषि सुधारों के बाद किसानों की ज़मीन पर दूसरे कब्ज़ा कर लेंगे। जबकि ऐसा सोचने का कोई आधार नहीं है क्योंकि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग देश में कई जगहों पर चल रही है और कहीं किसान के साथ अन्याय नहीं हुआ।
गुजरात में पशुपालकों व कम्पनियों के बीच कॉन्ट्रेक्ट आधार पर व्यवसाय चल रहा है। डेरी वाले पशुपालकों से दूध लेने का कॉन्ट्रैक्ट करते हैं, लेकिन इससे कभी पशुपालकों के साथ अन्याय नहीं हुआ। अपितु इस योजना से पशुपालकों को लाभ मिल रहा है। ऐसा ही लाभ किसान को भी मिलेगा। इसकी व्यवस्था नए कृषि कानून में की गई है।
फल सब्ज़ी व्यवसाय में लगे उद्यमी किसान की जमीन पर कब्जा नहीं करते हैं। देश में डेरी उद्योग का योगदान कृषि अर्थव्यवस्था के कुल मूल्य में पच्चीस प्रतिशत से भी ज्यादा है। यह योगदान करीब आठ लाख करोड़ रुपए होता है।
दूध उत्पादन का कुल मूल्य अनाज और दाल के कुल मूल्य से भी ज्यादा होता है। इस व्यवस्था में पशुपालकों को आज़ादी मिली हुई है। कृषि कानून के माध्यम से ऐसी ही आजादी अनाज और दाल पैदा करने वाले छोटे और सीमांत किसानों को मिलेगी।
ऐसा भी नहीं कि कृषि कानून आकस्मिक रूप से लागू कर दिए गए। सुधारों की मांग वर्षों से की जा रही थी। कांग्रेस ने चुनावी घोषणापत्र में ऐसे सुधारों का वादा किया था। यूपीए सरकार के कृषि मंत्री ने इसके लिए मुहिम भी चलाई थी। अनेक किसान संगठन भी पहले ही मांग करते थे।
कृषि कानून में किसान को कहीं पर भी अनाज बेचने का विकल्प दिया गया है, एमएसपी समाप्त होने की तो कोई बात ही नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा कि आज विपक्ष के वही लोग किसानों को भ्रमित कर रहे हैं, जो अपनी सरकार के समय इन कृषि सुधारों के समर्थन में थे। लेकिन अपनी सरकार के रहते वह निर्णय लेने का साहस नहीं दिखा सके।
आंदोलनकारियों से वार्ता का प्रस्ताव सरकार ने ही किया था। कई दौर की वार्ता हुई। सरकार कह रही कि वो किसानों की प्रत्येक आशंका के समाधान के लिए चौबीसों घंटे तैयार है। लेकिन आंदोलनकारियों को हठधर्मिता छोड़नी होगी।
ये आंदोलन सीमित क्षेत्र में है, जबकि देशभर के बहुसंख्यक किसान कृषि सुधारों के पक्ष में हैं। अतः जो राजनीति करने पर तुले हुए लोग हैं, जो किसानों के कंधों पर बंदूकें रखकर राजनीति कर रहे हैं, देश के सारे जागरुक किसान उनको भी परास्त करके रहेंगे।
(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफ़ेसर हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)