नागरिकता संशोधन कानून के वजूद में आने से विपक्ष बुरी तरह सकपका गया है। जो काम वे खुद नहीं कर पाए, उसे भाजपा ने कर दिखाया है तो उनकी हालत खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे वाली हो रही है। बहरहाल, कांग्रेस, टीएमसी जैसे दलों के भड़काऊ भाषणों के चक्कर में जनता अब नहीं आने वाली है और सरकार भी पूरी तैयारी में है कि कोई अराजक तत्व विरोध के बहाने देश का माहौल न खराब सकें।
नागरिकता संशोधन कानून पर देश भर में मचा बवाल अब ठंडा हो चुका है। हालात अब काबू में हैं और सरकार हर हाल पर नजर रखे हुए है। पिछले सप्ताह उत्तर प्रदेश के कई जिलों में हिंसक प्रदर्शन हुए और उपद्रवी तत्वों ने सार्वजनिक संपत्ति को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाया। इस बार उप्र सरकार पूरी तरह से तैयार थी। शुक्रवार के एक दिन पहले ही प्रदेश के 14 जिलों में इंटरनेट पूरी तरह से बंद कर दिया गया ताकि कोई अफवाहें न फैला सकें और जिलों में पुलिस बल तैनात रहा।
दिल्ली के जामा मस्जिद क्षेत्र सहित महाराष्ट्र व अन्य राज्यों में भी सीएए का विरोध तो हुआ लेकिन यह सांकेतिक था और इस बार किसी ने भी कानून हाथ में नहीं लिया। यह सरकार की बड़ी सफलता है। असल में बीता सप्ताह हिंसा से ग्रस्त रहा लेकिन सप्ताह के अंत में रविवार को नई दिल्ली के रामलीला मैदान से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे देश को यह स्पष्ट संदेश दिया कि सीएए किसी भी रूप से अहितकारी नहीं है।
उन्होंने अफवाहें उड़ाने वालों की भी जमकर खबर ली। प्रधानमंत्री द्वारा स्थिति साफ किए जाने के बाद से स्थिति में सुधार आया है और इस बार कहीं से भी अप्रिय समाचार प्राप्त नहीं हुए। उत्तर प्रदेश में तो अब संगठन पीएफआई पर प्रतिबंध भी लगाने की तैयारी चल रही है। सबसे अहम खबर भी उत्तर प्रदेश से ही आई है कि यहां पर उपद्रव करने वाले 498 असामाजिक तत्वों की पहचान कर ली गई है। सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले इन लोगों की संपत्ति को जब्त करके अब सरकार इस नुकसान की भरपाई करेगी।
यह खबर अहम इसलिए भी है क्योंकि समाज में इस प्रकार का संदेश जाना ही चाहिये कि सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का क्या खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। उप्र के संभल, बुलंदशहर, कानपुर, मेरठ, गोरखपुर, फिरोजाबाद, रामपुर, सीतापुर आदि जिलों में उपद्रवी तत्वों ने काफी नुकसान किया था।
मीडिया में केवल यही अधिक दिखाया गया कि सीएए का विरोध हो रहा है जबकि सच्चाई यह है कि जितना विरोध हो रहा, समानांतर रूप से समर्थन के स्वर भी उतने ही पुरजोर हैं। पीएम मोदी की दिल्ली की सभा के बाद ट्विटर पर सीएए के समर्थन में एक घंटे के भीतर 5 हजार पोस्ट आए और यह सोशल मीडिया पर ट्रेंड करने लगा। सड़क पर भी शांतिपूर्ण ढंग से बहुत से लोगों ने इसके प्रति समर्थन व्यक्त किया। इससे स्पष्ट होता है कि सीएए अब लोगों को समझ में आने लगा है।
लेकिन विपक्षी दलों ने भ्रम पैदा करने की कोशिश खूब की। बीते दिनों पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री व टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने सब हदें पार करते हुए संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में देश में नागरिकता संशोधन कानून पर जनमत संग्रह तक कराए जाने की बात कह डाली। हालांकि अगले दिन शनिवार को जब संयुक्त राष्ट्र ने इस पर जवाब देते हुए अपना रूख स्पष्ट कर दिया और कहा कि ऐसा संभव नहीं है तो ममता बनर्जी की किरकिरी हो गई। लेकिन पश्चिम बंगाल में ममता नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में अराजकता का माहौल बनाने में लगी हुई हैं।
सोनिया गांधी ने भी कम कुप्रचार नहीं किया। कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अपने वीडियो सन्देश में गैर जिम्मेदाराना बयान देते हुए कहा कि जनता को विरोध का अधिकार है। उन्होंने ऐसा कहके हुड़दंगियों की हरकतों को एक तरह से उचित ही ठहरा दिया और हिंसा रोकने के संबंध में एक शब्द भी कहना उचित नहीं समझा। सोनिया ने पूरे बयान में एक बार भी यह नहीं कहा कि हिंसक प्रदर्शन अनुचित हैं। यानी एक तरह से वे हिंसा की पक्षधर ही साबित हुईं।
सोनिया ने अपने बयान में एनआरसी का भी जिक्र किया और कहा कि केंद्र सरकार एनआरसी के जरिये लोगों को परेशान कर रही है। आश्चर्य की बात है कि सोनिया गांधी को इतना भी नहीं पता कि एनआरसी यानी नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन एक प्रक्रिया है, जो अभी केवल सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर असम में चल रही है और शेष देश में अभी इसके विषय में कुछ भी नहीं हुआ है।
एनआरसी और सीएए अलग चीजें हैं। सीएए यानी नागरिकता संशोधन कानून तो गत 13 दिसंबर को राज्यसभा से पारित हुआ था। यह संसद के दोनों सदनों, लोकसभा व राज्यसभा से पास हो चुका है। इसके लिए विधिवत मतदान हुआ था, जिसमें पक्ष में अधिक वोट आने के बाद ही यह विधेयक पारित किया गया।
क्या सोनिया गांधी ने इस पर तटस्थ रूप से बोलना उचित नहीं समझा। आखिर वे किस आधार पर इसे जनविरोधी फैसला बता रही हैं। उन्हें शायद जानकारी नहीं है कि उनके बयान के समय ही दूसरी तरफ गुजरात के कच्छ में पाकिस्तान के सिंध प्रांत से आए 7 शरणार्थियों को भारत की नागरिकता का प्रमाण पत्र सौंपा गया। यह एक सरकारी कार्यक्रम के तहत हुआ।
सोनिया गांधी और ममता बनर्जी दोनों ने गैर जिम्मेदाराना बयान ऐसे समय में दिए, जबकि देश झुलस रहा था। अब चूंकि दिल्ली समेत अन्य राज्यों में भी हालात काबू में होने लगे हैं। दंगाइयों की पहचान व धरपकड़ की जा रही है, ऐसे में भी इन तथाकथित नेताओं के मुंह से अमन बहाली के लिए एक शब्द नहीं निकला।
नागरिकता संशोधन कानून के वजूद में आने से विपक्ष बुरी तरह सकपका गया है। जो काम वे खुद नहीं कर पाए, उसे भाजपा ने कर दिखाया है तो उनकी हालत खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे वाली हो रही है। बहरहाल, कांग्रेस व टीएमसी के भड़काऊ भाषणों के चक्कर में जनता अब नहीं आने वाली है और किसी भी स्थिति में फिजां नहीं खराब होने देना चाहती।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)