संसद की परंपरा और मर्यादा क्या होती है, विपक्षी दलों को इससे जैसे कोई मतलब ही नहीं है। बाकी बातें तो बाद की हैं, लेकिन अभी तो विपक्ष ने अपने संसदीय आचरण को ही सवालों के घेरे में खड़ा कर लिया है। सोचिये जरा कि ये कितना बेतुका रवैया है कि हम किसी बात से असहमत हैं तो तोड़फोड़ पर उतर आएं। जहां तक बिलों की बात है, उन्हें पूरी संवैधानिक एवं लोकतांत्रिक ढंग से पारित किया गया है। लेकिन विपक्ष ने तो इस तरह हंगामा मचाया मानो इसे पिछले दरवाजे से बिना प्रक्रिया पूरी किए पास कर दिया गया हो।
संसद के मानसून सत्र को आज एक सप्ताह हो गया है। आज का दिन एक ही साथ इस सत्र का सबसे महत्वपूर्ण दिन भी रहा और हंगामाखेज भी। महत्वपूर्ण इसलिए क्योंकि आज आखिरकार कृषि विधेयक पर संसद की आखिरी मुहर लग गई। लोकसभा से पास होने के बाद अब यह कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020, कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) बिल राज्यसभा से भी ध्वनि मत के साथ पारित हो गए हैं।
वहीं हंगामाखेज इसलिए क्योंकि यह बिल पारित होते ही विपक्ष बुरी तरह बौखला गया और अपनी खीझ मिटाने के लिए संसद की मर्यादा लांघ दी। अनावश्यक रूप से भारी शोरगुल किया गया और हंगामे के बीच यह बिल पारित हुए।
तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने विपक्ष की गरिमा एवं सदन की मर्यादा को ताक पर रखते हुए राज्यसभा के उप-सभापति हरिवंश के सामने ही सदन की रूल बुक फाड़ दी। माइक तोड़ दिए। ऐसा करके वे क्या साबित करना चाह रहे थे, यह समझ से परे है। हालांकि इस हंगामे ने विपक्ष के मन की खबर जरूर दे दी है। इससे यह भी भलीभांति स्पष्ट हो गया है कि विपक्ष सरकार के अंधविरोध में अब संसदीय मर्यादाओं के भी विरोध के स्तर तक पहुँच चुका है।
संसद की परंपरा और मर्यादा क्या होती है, इन्हें इससे कोई मतलब नहीं है। बाकी बातें तो बाद की हैं, लेकिन अभी तो विपक्ष ने अपने संसदीय आचरण को ही सवालों के घेरे में खड़ा कर लिया है। क्या संसद जैसे स्थान में इस तरह का अशोभनीय व्यवहार जरूरी है?
सोचिये जरा कि ये बेतुका रवैया हुआ कि हम किसी बात से असहमत हैं तो तोड़फोड़ पर उतर आएं। जहां तक बिलों की बात है, उन्हें पूरे संवैधानिक एवं लोकतांत्रिक ढंग से पारित किया गया है। लेकिन विपक्ष ने तो इस तरह हंगामा मचाया मानो इसे पिछले दरवाजे से बिना प्रक्रिया पूरी किए पास कर दिया गया हो।
जिस समय बिल पर राज्यसभा में चर्चा हो रही थी, तभी यह तय हो गया था कि यह बहुमत से पास होने वाले हैं। लेकिन तभी कांग्रेस को पता चला कि वे बहुमत में नहीं हैं। इसके बाद तो उनके सांसद मनमानी एवं एक प्रकार से गुंडागर्दी पर ही उतर आए।
असल में कांग्रेस यही मूल चेहरा व चरित्र रहा है। आपातकाल जैसे काले अध्याय को देश पर थोपने वाली कांग्रेस अपनी हार को बर्दाश्त नहीं कर पाती है और तिलमिला उठती है। बिल का विरोध करने वाले शिवसेना के सांसद संजय राउत ने किसानों का बड़ा हिमायती बनते हुए सवाल उठाया कि क्या यह बिल किसानों की आत्महत्या रोक सकेगा?
यह सैद्धांतिक बात करने वाले राउत शायद यह भूल गए कि किसानों की आत्महत्या के मामले में महाराष्ट्र से ही सबसे अधिक आंकड़े सामने आते हैं। अब तो राज्य में उनकी सरकार है। क्या वे गिरेबान में झांककर देखेंगे कि अब सत्ता में आने के बाद उन्होंने कितने किसानों की आय बढ़ा दी अथवा खुदकुशी करने से रोका।
जब कोरोना के चलते देश में लॉकडाउन लगाया गया और हर राज्य अपने यहां फंसे प्रवासी मजदूरों की देखरेख में जुटा था, तब शिवसेना की गठबंधन नीत सरकार के ही राज्य से लगातार लघु किसानों, भूमिहीन कृषकों और प्रवासी श्रमिकों का बड़े पैमाने पर पलायन हुआ। क्या राउत यह बता सकते हैं कि पलायन रोकने में उनकी सरकार क्यों विफल रही।
दरअसल विपक्षी दलों और नेताओं ने इस बिल को समझने की कोशिश तक नहीं की और केवल विरोध करने के लिए विरोध करते चले गए। कांग्रेस के पास इन विधेयकों का विरोध करने का कोई तर्कसंगत कारण नहीं है। वायएसआर ने बिल का समर्थन करके इन्हें आईना दिखा दिया है।
यह बिल कितना कारगर है, यह तो धरातल पर आने के बाद पता चलेगा, लेकिन क्या कांग्रेस को सरकार की हर नई पहल का इस तरह विरोध करना शोभा देता है। कांग्रेस जब स्वयं 70 वर्षों से सत्ता में थी तो उसने किसानों के हित में आखिर कौन सा बड़ा काम कर दिया। कांग्रेस के समय किसानों की आय इतनी कम क्यों थी, इसका कोई जवाब आज कांग्रेस के पास नहीं है।
अपने छः दशकों के शासन में अगर कांग्रेस ने किसानों के हितों को समझकर निर्णय लिए होते तो आज वर्तमान सरकार को कृषि व्यवस्था में बेहतरी लाने के लिए हर स्तर पर इतने प्रयास नहीं करने पड़ते। मगर कांग्रेस ने खुद भी कुछ नहीं किया और मोदी सरकार के कार्यों में भी गतिरोध पैदा करने की कोशिश कर रही है।
अगर कृषि सम्बन्धी इन बिलों को मोटे तौर पर समझें तो इनके पारित होने के बाद अब किसान किसी भी स्थान पर जाकर अपनी फसल मनचाहे दामों पर बेचने के लिए स्वतंत्र होंगे। इतना ही नहीं, वे अधिक मूल्य की फसलें भी उगा सकेंगे। कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का प्रावधान भी किया गया है। वस्तुतः यह बिल कृषि को व्यावसायिक रूप से सशक्त करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है, जिससे न केवल किसानों की आय बढ़ेगी बल्कि इस क्षेत्र की स्थिति में भी सुधार आएगा।
परन्तु, विपक्ष की यह बड़ी विचित्र नकारात्मक प्रवृत्ति है कि वह खुद भी काम नहीं करता है और सरकार करती है, तो उसमें अड़चन खड़ी करता है। लेकिन विपक्ष के तमाम अवरोधों के बावजूद दोनों सदनों में इन बिलों का पारित होना दिखाता है कि सरकार विपक्ष के इन व्यर्थ के तमाशों से विचलित होने वाली नहीं है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)