बेहतर होता कि हमारे विपक्षी नेता पाकिस्तान को खुश करने और अपने सैनिकों का अपमान करने वाले बयान न देते। युद्ध की परिस्थितियां समाप्त नहीं हुई हैं। इस प्रकार के बयान शर्मनाक हैं। पाकिस्तानी मीडिया में ऐसे भारतीय नेताओं की प्रशंसा हो रही है। शत्रु और आतंकी मुल्क तारीफ करने लगे तो समझ लेना चाहिए कि बात राष्ट्रीय हित के अनुकूल नहीं थी।
भारत की एयर स्ट्राइक की गूंज पूरी दुनिया में सुनाई दी। पाकिस्तान में भी हड़कंप मचा। शीर्ष कमांडरों की लगातार बैठक चली। प्रधानमंत्री इमरान पर भारी दबाब पड़ रहा था। यही कारण था कि पाकिस्तान ने भारत पर हमले के लिए एफ-16 लड़ाकू विमान भेजा था। पाकिस्तान के कई आतंकी सरगना भी हमले का रोना रो रहे थे।
लेकिन पाकिस्तान को अपनी यह झेंप मिटानी थी। अतः कुछ दिन बाद उसने अपनी इज्जत छिपाने का प्रयास किया। इसके तहत उसने एयर स्ट्राइक को हल्का बताने की योजना बताई। उसने कहा कि सर्जिकल स्ट्राइक से केवल जंगल के पेड़ों का नुकसान हुआ है। इसकी शिकायत वह संयुक्त राष्ट्र संघ और ग्रीन पीस संस्था से करेगा। यही समाचार अन्य देशों के कुछ अखबारों में प्रकाशित हुआ। इसी को कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियों के नेता ले उड़े। जबकि एयर स्ट्राइक के बाद यही अखबार और विदेशी न्यूज़ चैनल बता रहे थे कि हमले में तबाह हुए आतंकी संगठन, मारे गए वहां ट्रेनिंग ले रहे आतंकी।
कितना शर्मनाक है कि हमारे कई विपक्षी नेता, जो बात पाकिस्तान कह रहा है, उसीको दोहरा रहे हैं। पाकिस्तान ने इज्जत बचाने को कहा कि हमले में जंगल को नुकसान हुआ, हमारे कई नेता भी यही कह रहे। ममता बनर्जी सबूत मांग रही हैं। नवजोत सिद्धू ने कहा कि बालकोट में हमला करने गए थे या पेड़ गिराने। यह पाकिस्तान का बयान था, जिसे सिद्धू ने दोहरा दिया। कपिल सिब्बल कहते हैं कि जंगल में आतंकी कैम्प नहीं होते। यह कथन अपन अवाम को बरगलाने वाला है। पाकिस्तान में आतंकी प्रशिक्षण ऐसे ही जंगल में चलते हैं।
महबूबा मुफ़्ती ने कहा कि एयर स्ट्राइक पर प्रश्न उठाने का अधिकार है। राहुल गांधी ने पहले एयर स्ट्राइक की सफलता पर संदेह किया। इसके बाद तो उनकी पार्टी और अन्य विपक्षी नेताओं में होड़ मच गई। वोटबैंक की सियासत इन्हें पाकिस्तान की भाषा बोलने को विवश कर रही है। जब कोई नेता यह कहता है कि भारतीय सैनिक क्या पेड़ गिराने गए थे, यह अपनी सेना पर शर्मनाक सन्देह और उसका अपमान है। एयर स्ट्राइक बहुत जोखिम का कार्य होता है। दुश्मन के घर में घुसकर मारने वाले अपनी जान हथेली पर लेकर जाते हैं। ऐसे जांबाज जवान जब लौटकर आते हैं तब उनसे सवाल पूछना बेहद शर्मनाक है।
दिग्विजय सिंह कह रहे हैं कि अमेरिका ने लादेन को मारने के सबूत दिए थे। दिग्विजय झूठ बोल रहे हैं। अमेरिका ने तो लादेन को मारने के बाद उसे किसी को दिखाया भी नहीं था। दिग्विजय को कैसे पता चला कि अमेरिका ने जिसे समुद्र में डुबाया, वह लादेन ही था। कपिल सिब्बल न बोलें यह संभव नहीं। वह कहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया में किसी के मारे जाने की रिपोर्ट नहीं है। कितना शर्मनाक है कि इन नेताओं को अपने सेना प्रमुख पर विश्वास नहीं है, लेकिन ये कुछ विदेशी अखबारों के दीवाने हैं।
कितनी शर्मनाक बात यह कि भारत के इन नेताओं को अपने ही वायु सेना प्रमुख के बयान पर विश्वास नहीं है। एयर मार्शल बीएस धनोआ ने स्पष्ट किया है कि भारतीय वायु सेना की यह कार्रवाई ऑपरेशन का अंत नहीं है। उनका यह बयान बेहद छोटा जरूर है, मगर इसका बड़ा संदेश साफ है कि आतंकवाद पर पाक की घेरेबंदी के लिए बालाकोट के बाद अगली बड़ी कार्रवाई का रास्ता बंद नहीं किया गया है।
उन्होंने कहा कि बमबारी के मिशन में सिर्फ यही देखा जाता है कि कितने टारगेट थे और उनमें से कितनों को निशाना बनाया जा सका। वायु सेना ने टारगेट को हिट किया था। बम निशाने पर गिरे थे। कितनी मौतें हुईं, यह हम नहीं बता सकते। मारे गए लोगों की गिनती करना वायु सेना का काम नहीं है।
जंगल में बम गिराते तो पाक क्यों बौखलाता। यदि जंगल में बम गिराए गए होते तो फिर पाकिस्तान जवाब क्यों देता। नेशनल टेक्निकल रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन ने बालाकोट के कैम्प में स्ट्राइक के दिन तीन सौ एक्टिव मोबाइल कनेक्शन की पुष्टि की है। इसका मतलब है कि वहां जैश के कैंप में तीन सौ से अधिक आतंकी थे।
इस बात की पुष्टि इलेक्ट्रॉनिक तरंगो से मिले सबूतों के जरिए हो रही है। हमले के समय नैशनल टेक्निकल रिसर्च ऑर्गनाइजेशन ने सर्विलांस शुरू कर दिया था। राहुल गांधी, कपिल सिब्बल, महबूबा, चिदम्बरम, दिग्विजय आदि के बयान पाकिस्तानी मीडिया में खूब चलाए जा रहे हैं। जाहिर है, वह इनका उपयोग भारत के विरुद्ध कर रहा है।
पाकिस्तान एयर स्ट्राइक पर जो कह रहा है, वही बात ये भारतीय नेता दोहरा रहे हैं। इनमें कुछ भारतीय पत्रकार भी शामिल हैं। जबकि जैश सरगना अजहर के भाई अम्मार का कहना है कि भारतीय एयर स्ट्राइक से भारी तबाही हुई है। इससे जैश की कमर टूट गई है।
एयर स्ट्राइक पर सबूत मांगने वाले भारतीय नेता अपनी सेना का मनोबल गिरा रहे है। इन्हें यदि बालाकोट में आतंकी शिविरों की तबाही का दर्द है तो कम से कम यही कह देते कि दुश्मन की सीमा में जाकर एयर स्ट्राइक करना असाधारण शौर्य का काम है। 1971 के बाद भारतीय सेना पाकिस्तान में इतना भीतर तक गई थी। कोई भी सरकार आपने सैनिकों को एयर स्ट्राइक में पेड़ नष्ट करने का टारगेट नहीं दे सकती।
कांग्रेस अध्यक्ष भी इसी झोंक में है। पिछली सर्जिकल स्ट्राइक की उन्होंने खून की दलाली बताया था। इस बार एयर स्ट्राइक के कुछ घण्टे भी नहीं बीते थे, उन्होंने इक्कीस पार्टियों की बैठक बुला ली। इसमें भी ये सब मिलकर अपनी ही सरकार पर हमला बोलने लगे थे। कांग्रेस को आमजन के मनोभाव की भी चिंता नहीं है।
बेहतर होता कि ये विपक्षी नेता पाकिस्तान को खुश करने और अपने सैनिकों का अपमान करने वाले बयान न देते। युद्ध की परिस्थितियां समाप्त नहीं हुई हैं। इस प्रकार के बयान शर्मनाक हैं। पाकिस्तानी मीडिया में ऐसे भारतीय नेताओं की प्रशंसा हो रही है। शत्रु और आतंकी मुल्क तारीफ करने लगे तो समझ लेना चाहिए कि बात राष्ट्रीय हित के अनुकूल नहीं थी।
(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)