बांग्लादेश-पाकिस्तान कभी एक थे। अब दोनों के संबंध दुश्मनों की तरह के हो गए हैं। हाल के दिनों में दोनों देशों के संबंधों में काफी तल्खी आती नज़र आ रही है, जिसे भारत के लिहाज से अच्छा संकेत कहा जा सकता है। दरअसल बांग्लादेश ने 1971 के नरसंहार के गुनाहगार और जमात-ए-इस्लामी के नेता कासिम अली को कुछ समय पहले फांसी पर लटकाया। इस पर पाकिस्तान ने आपत्ति जताई। बांग्लादेश ने दो टूक शब्दों में सुना दिया कि वह पाकिस्तान की ओर से उसके आतंरिक मसलों में हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं करेगा। दोनों मुल्कों के संबंधों में आई इस तल्खी को समझने के लिए गुजरे दौर के पन्नों को पलटना ठीक रहेगा।
चीन को छोड़ एशिया के ज्यादातर देश भारत के साथ खड़े हैं। एशिया से बाहर योरोप और अमेरिका भी आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत के साथ होने की बात अनेक मंचों से दुहरा चुके हैं। साथ ही, पाकिस्तान को आतंकियों पर कड़ी कार्रवाई के लिए हिदायत देने का काम भी इन देशों के द्वारा किया जा रहा है। इन सब बातों से स्पष्ट है कि पाकिस्तान न केवल एशिया बल्कि विश्व बिरादरी में पूरी तरह से अलग थलग पड़ता जा रहा है। इसे भारत की बड़ी कूटनीतिक सफलता कह सकते हैं।
शेरे-ए-बंगाल कहे जाने वाले मुस्लिम लीग के मशहूर नेता ए.के.फजल-उर- हक ने 23 मार्च, 1940 को लाहौर के मिन्टो पार्क (अब जिन्ना पार्क) में मुस्लिम लीग के सम्मेलन में पृथक राष्ट्र पाकिस्तान का प्रस्ताव रखा था। उस तारीखी सम्मेलन में संयुक्त बंगाल के नुमाइंदों की बड़ी भागेदारी थी। वे सब भारत के मुसलमानों के लिए पृथक राष्ट्र की मांग कर रहे थे। सात साल के बाद 1947 में पाकिस्तान बना और फिर करीब 25 बरसों के बाद खंड-खंड हो गया और ईस्ट पाकिस्तान बांग्लादेश के रूप में दुनिया के मानचित्र पर सामने आया। यानी पाकिस्तान से एक और मुल्क निकला – बांग्लादेश। और जो कभी एक मुल्क थे, अब एक-दूसरे की जान के प्यासे हो गए हैं। 1971 में जिस नृंशसता से पाकिस्तानी फौजों ने ईस्ट पाकिस्तान के लाखों लोगों का कत्लेआम किया था, उसको लेकर ही दोनों मुल्क लगातार आमने-सामने हैं। बांग्लादेश में उस कत्लेआम के गुनाहगारों को लगातार दंड मिल रहा है। फांसी दी जा रही है। हाल ही में कासिम को फांसी उसी कत्लेआम में शामिल होने के चलते मिली। ये बात पाकिस्तान को गले नहीं उतर रही।
राजनयिकों का निकाला जाना
दरअसल 1971 के कत्लेआम के मुद्दे पर पाकिस्तान-बांग्लादेश के रिश्ते लगातार खराब होते जा रहे हैं। अभी कुछ समय पहले की तो बात है, जब पहले बांग्लादेश ने और फिर पाकिस्तान ने एक-दूसरे के देशों में तैनात एक-एक राजनयिक को देश से निकलने के आदेश दिए। ऐसा पहली बार हुआ था कि पाकिस्तान ने किसी बांग्लादेशी राजनयिक को देश छोड़ने को कहा है। इससे पहले शेख हसीना साल 2000 में जब पहली बार प्रधानमंत्री बनी, तब भी बांग्लादेश ने पाकिस्तान के एक राजनयिक को तुरंत ढाका छोड़कर जाने को कहा था। उसपर आरोप था कि वह पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई का एजेंट है और बांग्लादेश के चरमपंथी समूहों की मदद कर रहा है।
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना की भी पाकिस्तान से शिकायत रही है कि वह हर उस मौके पर बांग्लादेश सरकार को कोसता है, जब वहां पर 1971 के मुक्ति संग्राम के गुनाहगारों को फांसी दी जाती है। उन्हें दंड दिया जाना मानो पाकिस्तान को खल जाता है। हसीना अगले माह भारत आ रही है। जाहिर है, तब उनकी भारतीय नेताओं से बांग्लादेश के पाकिस्तान से मौजूदा संबंधों पर विस्तार से बात होगी। भारत भी बताएगा कि किस तरह से सीमा पार से आतंकवाद के कारण भारत प्रभावित होता रहा है।
पाकिस्तान और बांग्लादेश ने ‘जैसे को तैसा’ की नीति अपनाते हुए एक दूसरे के दूतों को अपने विदेश मंत्रालय के दफ्तरों में तलब किया। पाकिस्तान ने कहा कि मोतिउर रहमान निजामी को दोषपूर्ण न्यायिक प्रक्रिया के तहत फांसी पर चढ़ाया गया। इसपर बांग्लादेश कहां पीछे रहना वाला था। बांग्लादेश ने पाकिस्तान के उच्चायुक्त शुजा आलम को विदेश कार्यालय तलब किया, जहां विदेश सचिव मिजानुर रहमान ने उन्हें कड़े शब्दों वाला एक विरोध पत्र सौंपा। बांग्लादेश ने कहा कि मानवता और नरसंहार के खिलाफ अपराधों के दोषी बांग्लादेशी नागरिकों का पक्ष लेकर पाकिस्तान ने एक बार फिर 1971 में बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के दौरान बड़े पैमाने पर हुए क्रूर अपराधों में प्रत्यक्ष संलिप्तता एवं सहभागिता को स्वीकार किया है।
बांग्लादेश के साथ भारत
महत्वपूर्ण ये भी है कि बांग्लादेश को 1971 के गुनाहगारों को दंड देने के अभियान में भारत का समर्थन मिल रहा है। भारत स्वतंत्रता के आंदोलन के दौरान किए गए युद्ध अपराध में इंसाफ सुनिश्चित करने के लिए न्यायिक प्रक्रिया के पक्ष में है। भारत मानता है कि युद्ध अपराध सुनवाई का मुद्दा बांग्लादेश का आंतरिक विषय है। भारत 1971 में बांग्लादेश की स्वतंत्रता के आंदोलन के दौरान किए गए युद्ध अपराधों के लिए दंडात्मक इंसाफ के लंबित मुद्दों के समाधान के लिए न्यायिक प्रक्रिया के पक्ष में रहा है। भारत का साथ मिलना भी एक कारण है कि अब बांग्लादेश पाकिस्तान को खुलकर जवाब दे रहा है।
बांग्लादेश के अलावा अफगानिस्तान भी पाकिस्तान से कटकर भारत की तरफ मुड़ रहा है। चीन को छोड़ एशिया के अन्य देश भी भारत के साथ खड़े हैं। एशिया से बाहर योरोप और अमेरिका भी आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत के साथ होने की बात अनेक मंचों से दुहरा चुके हैं। साथ ही, पाकिस्तान को आतंकियों पर कड़ी कार्रवाई के लिए हिदायत देने का काम भी इन देशों के द्वारा किया जा रहा है। इन सब बातों से स्पष्ट है कि पाकिस्तान न केवल एशिया बल्कि विश्व बिरादरी में पूरी तरह से अलग थलग पड़ता जा रहा है। इसे भारत की बड़ी कूटनीतिक सफलता कह सकते हैं।
(लेखक यूएई दूतावास में सूचनाधिकारी रहे हैं। पत्रकार एवं स्तंभकार हैं। लेख में व्यक्त विचार उनके निजी हैं।)