पाकिस्तान की संवैधानिक संस्थाओं ने जिस प्रकार एक आतंकी सरगना की मौत पर काला दिवस मनाया, उसके बाद उससे सकारात्मक सहयोग की आखिरी उम्मीद भी समाप्त हो गयी। पिछले दिनों भारतीय सैनिकों ने एक आतंकी सरगना को कश्मीर में मार गिराया था। इसके पहले पाकिस्तान विश्वमंच पर अपने को भी आतंकवाद से पीड़ित बताता रहा है। बात एक हद तक सही भी है। आतंकवाद उसके लिए अब भस्मासुर बन गया है। ऐसे में उससे यह उम्मीद थी कि वह आतंकी के खात्मे पर खामोश ही रह जाता। तब माना जाता कि वह भी पीड़ित है। लेकिन उसने अपने को खुद ही बेनकाब कर दिया। पहले पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने इस पर आंसू बहाए। इसके बाद सरकार के स्तर पर काला दिवस मनाने का ऐलान हुआ। आतंकी की हमदर्दी में नेशनल असेम्बली का विशेष सत्र बुलाया गया। इस प्रकार पाकिस्तान ने आतंकी मुल्क होने की बात पर खुद ही संवैधानिक मोहर लगा ली। इस प्रकरण से एक बात तो साबित हुई कि पाकिस्तान सीमा पार के आतंकवाद पर रोक नहीं लगाएगा। इतना ही नहीं अब तो पत्थरबाजी और आतंकवाद सीमा पार के व्यापार में बदल गया है। इस बारे में संशय भी समाप्त हुआ। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इस मसले पर कुछ करने की हैसियत में नहीं है। कश्मीर का मसला वहां सेना और गुप्तचर संस्था आईएसआई के हवाले है। वही आतंकियों के प्रशिक्षण शिविर चलाती है। वही पत्थरबाजों को दिहाड़ी का इंतजाम करती है। आतंकी के प्रति हमदर्दी दिखाने और सरकार द्वारा प्रायोजित कालादिवस मनाने के बाद पाकिस्तान की असलियत सामने आ गयी है। ऐसे में जम्मू-कश्मीर में शांति बहाली का कार्य भारत को ही करना है। हालात जटिल है। अराजकता सिर्फ सीमा पार से होती तो उसको सीधा सबक सिखाया जा सकता था लेकिन जब जम्मू-कश्मीर के घाटी क्षेत्र में रहने वाले बच्चे, महिलाएं सुरक्षा बलों पर पत्थर फेंकने लगे तो देश के अन्दर की इस अराजकता को कैसे दूर किया जाए।
कश्मीर घाटी में शांति कायम रखना भारत की जिम्मेदारी है। युद्ध के अलावा अन्य सभी संभव प्रयास भारत को ही करने हैं। पाकिस्तान को भी कोसना पड़ेगा। वर्तमान सरकार जानती है कि इससे समस्या का समाधान नहीं होगा। इसलिए उसने सेना को आतंकियों के खात्मे का अधिकार दिया है। पिछले कुछ महीनों में सैनिकों ने अस्सी से अधिक आतंकी मार गिराए गये। बुरहानबानी पर ज्यादा बवाल इसलिए हुआ क्योंकि उसे आतंकी संगठनों का पोस्टर ब्याय माना जाता था। उसके माध्यम से युवकों को आतंकी संगठनों में लाने की मुहिम चल रही थी। यह रणनीति ध्वस्त हुई है। जाहिर है कि सरकार अपना कार्य कर रही है। सीमा पार की गतिविधियों का माकूल जवाब दिया जा रहा है।
ऐसे में इतना तो तय है कि अब केवल पाकिस्तान को कोसने से काम नहीं चलेगा। भारत को आंतरिक सुरक्षा के मद्देनजर कारगर कदम उठाने होंगे। लेकिन अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का तकाजा यह भी है कि पाकिस्तान को बेनकाब किया जाए, उसे कठघरे में रखा जाए। हमको यह नहीं भूलना चाहिए कि अन्तर्राष्ट्रीय दबाव के चलते भारत को पहले ताशकन्द फिर शिमला का समझौता मेज पर वह जमीन लौटानी पड़ी थी, जिसे हमारे जवानों ने खून बहाकर जीता था। यह मान लेना चाहिए कि जंग से समस्या का समाधान नहीं होगा। यह पाकिस्तान की विचारधारा से जुड़ी समस्या है। कश्मीर घाटी में शांति कायम रखना भारत की जिम्मेदारी है। युद्ध के अलावा अन्य सभी संभव प्रयास भारत को ही करने हैं। पाकिस्तान को भी कोसना पड़ेगा। वर्तमान सरकार जानती है कि इससे समस्या का समाधान नहीं होगा। इसलिए उसने सेना को आतंकियों के खात्मे का अधिकार दिया है। पिछले कुछ महीनों में सैनिकों ने अस्सी से अधिक आतंकी मार गिराए गये। बुरहानबानी पर ज्यादा बवाल इसलिए हुआ क्योंकि उसे आतंकी संगठनों का पोस्टर ब्याय माना जाता था। उसके माध्यम से युवकों को आतंकी संगठनों में लाने की मुहिम चल रही थी। यह रणनीति ध्वस्त हुई है। जाहिर है कि सरकार अपना कार्य कर रही है। सीमा पार की गतिविधियों का माकूल जवाब दिया जा रहा है। पाकिस्तानी सीमा के सैकड़ों गांवों पर इसका प्रभाव पड़ा है। वह अपनी ही सरकार के खिलाफ नारेबाजी करते हैं। उनके अनुसार भारतीय सीमा में दखल की नीति का खामियाजा उनको उठाना पड़ रहा है। पाकिस्तान को दशकों बाद ऐसी जवाबी कार्रवाई का अनुभव हुआ है। यही कारण है कि पिछले दो वर्षों में कई बार उसे संयुक्त राष्ट्र संघ में गुहार लगानी पड़ी है। उसने कहा कि भारत को हमारी सीमा पर कार्रवाई से रोका जाए। लेकिन वह यह बात दबा गया कि भारत मात्र जवाबी कार्रवाई कर रहा है। बुरहानबानी के मसले पर जो हंगामा किया गया वह पाकिस्तान की हताशा का भी परिणाम है।
आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई आसान है। ये बात अलग है कि संप्रग सरकार के समय उनके प्रति भी नरमी दिखाई गयी। दूसरी ओर पत्थरबाजी कर रहे अपने देश के बच्चों, युवकों, महिलाओं पर आतंकियों जैसी सख्ती दिखाना आसान नहीं है। गृह मंत्री राजनाथ सिंह जहां को कोस रहे हैं, वहीं उन्होंने आतंकवादियों से निपटने का सुरक्षा बलों को पूरा अधिकार दिया है। वहीं उनका यह कहना भी ठीक है कि प्रदर्शनकारियों के साथ यथासंभव धैर्य से कार्य लेना चाहिए। क्योंकि यह सीमा पार के आतंकी संगठनों, तथा अन्य तत्वों के द्वारा बरगलाने का परिणाम है। चंद रुपयों की खातिर ये लोग अपने ही सुरक्षा बलों पर पत्थर फेंक रहे हैं। सीमा पार के आका इस तरह सुरक्षा बलों को उकसाने का काम कर रहे हैं। लेकिन संयम दिखाना वहीं तक उचित होगा, जहां तक इसे सुरक्षा बलों की कमजोरी न समझा जाए। संयम दिखाने के बाद भी जो तत्व समझने को तैयार न हो, उनके विरुद्ध कठोर कदम उठाने होंगे। उसके बाद सुरक्षा बलों को विशेष प्रकार के बुलेट के प्रयोग की छूट होनी चाहिए, जिससे जीवन तो सुरक्षित रहता है, लेकिन एक सबक अवश्य मिल जाता है। सुरक्षा बलों पर पत्थरबाजी को एक सीमा से अधिक बर्दाश्त नहीं करना चाहिए। इससे उनका मनोबल गिरता है। वह पत्थर सहने के लिए सैनिक नहीं बने हैं। यदि अराजकता फैलाने वाले नहीं मानते हैं तो फिर कठोर कदम उठाना एकमात्र विकल्प बचता है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)