उरी आतंकी हमले के बाद केरल के कोझिकोड में एक रैली को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो महत्वपूर्ण बातें कहीं थीं। पहली कि उरी में शहीद हुए हमारे जवानों का बलिदान बेकार नहीं जाएगा और उनके भाषण की दूसरी महत्वपूर्ण बात यह थी कि हम आतंकवाद को पनाह देने वाले एकमात्र देश (पाकिस्तान) को दुनिया के पटल पर अलग-थलग कर देंगे। इस बयान को दिए अभी ज्यादा दिन नहीं हुए और दोनों ही बातें सच साबित होती दिख रही हैं। उरी के बाद भारतीय सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक किया, जिसमे पाकिस्तान का भारी नुकसान बताया जा रहा है, को लेकर पाकिस्तान दुनिया के पटल पर अलग-थलग पड़ा दिख रहा है। सार्क देश उसके साथ नहीं हैं। इरान बलूच सीमा पर मोर्टार दाग रहा है। अफगानिस्तान भारत की भाषा बोल रहा है। नेपाल और श्रीलंका भारत के समर्थन में सार्क का बहिष्कार कर रहे चुके हैं। पाकिस्तान का मित्र और भारत का तथाकथित शत्रु बताया जाने वाला चीन इस पूरे मामले में राजनय के स्तर पर तटस्थता बरत रहा है। यानी दक्षिण एशिया एवं सीमावर्ती देशों में तो पाकिस्तान पहले ही अलग-थलग पड़ा चुका है, लेकिन दुनिया के दूसरे किनारे अर्थात अमेरिका से भी पाकिस्तान के लिए बुरी खबर आ रही है। सप्ताह दिन पहले पाकिस्तान को आतंकवाद प्रायोजक देश घोषित करने को लेकर एक हस्ताक्षर याचिका शुरू की गयी थी जो महज सात दिनों में अमेरिका के इतिहास में रिकॉर्ड दर्ज करा चुकी है। याचिका का विषय है, ‘हम लोग पाकिस्तान को आतंकवाद प्रायोजक देश घोषित करने की अपील करते हैं।‘ अबतक इस याचिका पर 6,65,769 लोगों ने हस्ताक्षर किये हैं। फिलहाल हस्ताक्षर की समय सीमा समाप्त हो चुकी है और अब इसे व्हाईट हाउस ने अपनी आर्काइव में दर्ज किया है। एक लाख से अधिक हस्ताक्षर वाली किसी याचिका पर व्हाईट हाउस की प्रतिक्रिया आती है। इस लिहाज से भी यह याचिका बहुत आगे है अर्थात ऎसी उम्मीद जताई जा रही है कि ओबामा प्रशासन इस याचिका पर जरुर अपना पक्ष रखेगा। नियम के मुताबिक़ साठ दिन में व्हाईट हाउस से इसपर प्रतिक्रिया आनी है।
अमेरिका में हस्ताक्षर की गयी याचिका और पाकिस्तान के खिलाफ बने माहौल के लिए भारत की वर्तमान सरकार की भूमिका महत्वपूर्ण है। कम से कम इतना स्वीकार करने में किसी को भी गुरेज नहीं होनी चाहिए कि दुनिया के अमेरिका जैसे देशों को भारत खुले तौर पर समझाने और उनकी स्वीकारोक्ति हासिल करने में कामयाब हुआ है कि पाकिस्तान एक खतरनाक आतंकवादी देश है। अपने स्तर पर भारत जो कार्यवाही पाकिस्तान पर करनी है, वो तो कर ही रहा है साथ ही दुनिया के सामने बेहद सफलता के साथ पाकिस्तान के असली चेहरे को बेनकाब भी कर रहा है।
इस पूरे याचिका प्रकरण में आतंकवाद केंद्र में है तो पक्ष के रूप में तीन देश हैं। एक पाकिस्तान दूसरा भारत और तीसरा अमेरिका। लिहाजा इस पूरे मामले को तीनों की भूमिका के लिहाज से समझने की जरुरत है। पाकिस्तान के लिहाज से देखें तो इसमें कोई शक नहीं कि इस याचिका के लिए वो खुद जिम्मेदार है। आतंकवाद की फसल उगाने का धंधा पाकिस्तान जैसे एक खतरनाक और अस्थिर देश में कोई नयी बात नहीं है। वहां लोकतंत्र का कोई अस्तित्व नहीं है। सत्ता के अनेक ध्रुव हैं, सिवाय लोक सहभागिता के। सेना, आईएसआई और मजहबी उन्माद वाले संगठन वहां मुख्य राजनीतिक गतिविधियों में शामिल हैं। सरकार वहां की व्यवस्था की सर्वाधिक अस्थायी बॉडी कही जा सकती है। लिहाजा आतंकवादी गतिविधियों के लिए पाकिस्तान एक सर्वाधिक सुरक्षित अड्डा बन चुका है, जिसका इस्तेमाल भारत के खिलाफ अघोषित तौर पर किया जाता रहा है। ऐसे में भारत के लिहाज से भी इस मामले का विश्लेषण आवश्यक है।
अमेरिका में हस्ताक्षर की गयी याचिका और पाकिस्तान के खिलाफ बने माहौल के लिए भारत की वर्तमान सरकार की भूमिका महत्वपूर्ण है। कम से कम इतना स्वीकार करने में किसी को भी गुरेज नहीं होनी चाहिए कि दुनिया के अमेरिका जैसे देशों को भारत खुले तौर पर समझाने और उनकी स्वीकारोक्ति हासिल करने में कामयाब हुआ है कि पाकिस्तान एक खतरनाक आतंकवादी देश है। अपने स्तर पर भारत जो कार्यवाही पाकिस्तान पर करनी है, वो तो कर ही रहा है साथ ही दुनिया के सामने बेहद सफलता के साथ पाकिस्तान के असली चेहरे को बेनकाब भी कर रहा है। भारत की सफलता इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि, पाकिस्तान के आतंकवाद प्रायोजक चेहरे को भारत द्वारा महज राजनय अथवा कूटनीतिक स्तर पर ही नहीं बल्कि मॉस स्तर पर भी दुनिया के आम नागरिकों के जेहन में उतारने में कामयाबी हासिल हुई है। जर्मनी, लन्दन आदि में भारत को धन्यवाद कहते हुए बलोच आंदोलनों की तस्वीरें इस बात की गवाह हैं कि पाकिस्तान को दुनिया के तमाम देशों की सरकारों के साथ-साथ वहां की आवाम के सामने भी बेनकाब करने में मोदी सरकार कामयाब होती दिख रही है। हालांकि कुछ लोग अमेरिका में चल रहे राष्ट्रपति चुनाव से इस हस्ताक्षर अभियान को जोड़ रहे हैं। राजनीतिक मामलों में ऐसा होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है, जरुर हो सकता है। लेकिन, अगर ऐसा भी है तो हमें इतना तो समझना ही होगा कि भारत ने दुनिया के दूसरे छोर के विशालतम लोकतंत्र और महाशक्ति देश के चुनाव में दक्षिण एशिया में व्याप्त आतंकवाद और उसे पनाह देने वाले पाकिस्तान को मुख्यधारा का राजनीतिक विषय बनाने में कामयाबी हासिल की है। वरना अमेरिकी चुनाव में भला पाकिस्तान मुद्दा क्यों रहता ? यह याचिका जिस मुकाम पर भी पहुंचे, लेकिन इस मॉस अभियान ने भारत की वैश्विक ताकत का अहसास कराया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब कहते हैं कि हम न आँख झुकाकर बात करेंगे और न उठाकर बात करेंगे, बल्कि आँख से आँख मिलाकर बात करेंगे, तो इसका आशय यही है कि भारत अब दुनिया का एजेंडा तय करने और गलत राह पकड़ने वालों को एक्सपोज करने के लिए न तो किसी पर आश्रित है और न ही किसी के सामने याचक है। भारत एक सक्षम राष्ट्र की तरह दुनिया में खुद को स्थापित कर रहा है। दुनिया के पटल पर बेनकाब पाकिस्तान की करारी शिकस्त इसका एक शुरूआती लक्षण भर है।
(लेखक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउन्डेशन में रिसर्च फेलो हैं एवं नेशनलिस्ट ऑनलाइन डॉट कॉम के सम्पादक हैं।)