उड़ी हमला पाकिस्तान के लिए खतरे की घंटी साबित होगा यह किसी ने भी नहीं सोचा था। भारत को चोट पर चोट देने की पाकिस्तान की एक आदत सी बन गयी थी, जिसमें उसे पूरी तरह विश्वास था कि भारत की तरफ से कभी कोई प्रतिक्रिया नहीं होगी। पाकिस्तान पहले से ही कड़ी निंदा और सबूत वाले डोजियर को रद्दी की टोकरी में फेंकने का आदी रहा और भारत उसे बार-बार डोजियर सौंपने का। पाकिस्तान एक बेशर्म और अनैतिक देश है, जो ना भरोसे के लायक है ना सहयोग के।समय रहते केंद्र की मोदी सरकार ने इसे समझा और ऐसा ऐतिहासिक कदम उठाने का निर्णय किया जिससे पाकिस्तान की हेकड़ी क्षण भर में ही काफूर हो गई और पाकिस्तान पूरे विश्व के सामने खुद को बेबस महसूस कर रहा है।
उड़ी हमले में भारत के 19 सैनिकों के शहीद होने के बाद पूरे देश में एक विशिष्ट आक्रोश था, पूरा देश एक स्वर में पाकिस्तान पर कड़ी कार्यवाही की मांग कर रहा था, देश के साथ-साथ सेना के मनोबल का भी सवाल था साथ ही सवाल मोदी सरकार की साख का भी था। मोदी सरकार चौतरफा दबाव में थी, ऐसे समय में उसे अपना बेहतर देना था। सरकार के रणनीतिकारों ने मीडिया के युद्धराग के सामने घुटने नही टेके और अपनी समझ बूझ से एक पुख्ता योजना बनाकर एलओसी पार करके सर्जिकल अटैक को अंजाम दिया। अनुमान के मुताबिक यह ऑपरेशन इतना सटीक और सफल रहा कि 7 आतंकवादी कैम्प ध्वस्त हो गए और पाकिस्तानी सैनिको समेत 50 से अधिक आतंकवादियों को मौत के घाट उतार दिया गया।
सर्जिकल ऑपरेशन के बाद विदेश नीति के स्तर पर की गई मोदी सरकार की मेहनत स्पष्ट रुप से परिलक्षित हुई है, जहां उड़ी हमले के बाद अधिकतर देश भारत के पक्ष में बोल चुके थे, वहीँ सर्जिकल अटैक के बाद किसी भी देश ने भारत की कार्यवाही पर प्रश्न चिन्ह नही लगाया और ना ही पाकिस्तान को मरहम लगाने वाले शब्दों का प्रयोग किसी भी देश ने किया है। सरकार के रणनीतिकार पूरी तरह से सभी प्रभावशाली देशों को विश्वास में लेने में कामयाब रहे। यहां तक कि पाकिस्तान का सबसे अधिक हितेषी चीन भी इस मसले पर प्रत्यक्ष रुप से पाकिस्तान का पक्ष नहीं ले पाया। इसके विपरीत सभी देशों ने पाकिस्तान को ही आतंकवाद का खात्मा करने की नसीहत दे डाली।
इस सर्जिकल ऑपरेशन से देश में जिस तरह का सकारात्मक माहौल बना, वह यह बताने के लिए पर्याप्त था कि इसकी कितनी बड़ी आवश्यकता थी। उड़ी हमले के बाद पाकिस्तान परमाणु बम के धौंस देता रहा, लेकिन उसकी सैन्य तैयारियों की पोल पूरी तरह से खुल गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि 1971 के बाद पहली बार सेना के जवानों ने एलओसी पार कर इस साहसिक कारनामे को अंजाम दिया है। देश ने संसद हमले से लेकर मुंबई हमला, पठानकोट और उड़ी सब झेला, लेकिन इस बार आतंकी गतिविधियों की अति हो गई थी। इसलिए हाल के दिनों में मोदी सरकार का यह सर्वश्रेष्ठ फैसला कहा जा सकता है। इससे देश को निराशा से उभरने का अवसर मिला है तथा सेना को भी अपना पराक्रम दिखाने का। बहुत दिनों से जो एक नीति चली आ रही थी कि आतंकवादी तय करते थे कब, कहां और कैसे हमला करना है और सेना केवल उसका प्रत्युत्तर देती थी। अब उस नीति में आमूलचूल परिवर्तन दिख रहा है, इस बार हमारे जवानों ने तय किया कि आतंकवादियों को कब, कहां और कैसे मारना है।
ये पाकिस्तान के प्रति भारत की नीति में बड़े बदलाव का संकेत है। इस बार भारत ने पाकिस्तान को आर्थिक रूप से अलग थलग करने का सघन प्रयास शुरु किया जिसका असर संयुक्त राष्ट्र के घटनाक्रम और सार्क सम्मेलन रद्द होने में दिखा। साथ ही, सिंधु समझौते की तथा एमएफएन देश के दर्जे की समीक्षा संबंधित कदम उठाने से पाकिस्तान पर तथा उसके हितैषियों पर भारी दबाव बनना शुरु हो गया, लेकिन इतने पर भी पाकिस्तान को लग रहा था कि कुछ समय बीतने पर भारत की जनता का आक्रोश सामान्य हो जाएगा तथा भारत सरकार निष्क्रिय हो जाएगी और हम अपनी अगली उड़ी की तलाश में निकल लेंगे। लेकिन इस बार नियति को कुछ और ही मंजूर था जैसे ही संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन खत्म हुआ, साथ ही सार्क सम्मेलन भी रद्द हुआ और उसके कुछ घंटों में भारत के जवानों ने पाकिस्तान में घुसकर उन्हें सबक सिखाया तथा अपने शोर्य का परिचय दिया।
देश में भारी आक्रोश के बावजूद भी सरकार ने युद्ध जैसे विकल्पों पर विचार नहीं किया, यह समझदारी भरा कदम रहा है। भारत ने पाकिस्तान से सीधे दो युद्ध किए हैं और जीते भी हैं, परंतु अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के अभाव में वार्ता की मेज पर जाते-जाते हम कुछ विशेष हासिल करने में समर्थ नहीं हो पाए। हमने 1965 में अपने साहसी प्रधानमंत्री को ताशकन्द समझौते की भेंट चढ़ते देखा और 1971 में 90000 सैनिको को बंदी बनाने के बाद भी हम कश्मीर समस्या तथा अन्य अपने हित के मुद्दों को नहीं साध पाये। युद्ध किसी परिणाम को प्राप्त करने के लिए लड़े जाते हैं, व्यक्तिगत प्रतिष्ठा को बढ़ाने के लिए नहीं।
सर्जिकल ऑपरेशन के बाद विदेश नीति के स्तर पर की गई मोदी सरकार की मेहनत स्पष्ट रुप से परिलक्षित हुई है, जहां उड़ी हमले के बाद अधिकतर देश भारत के पक्ष में बोल चुके थे, वहीँ सर्जिकल अटैक के बाद किसी भी देश ने भारत की कार्यवाही पर प्रश्न चिन्ह नही लगाया और ना ही पाकिस्तान को मरहम लगाने वाले शब्दों का प्रयोग किसी भी देश ने किया है। सरकार के रणनीतिकार पूरी तरह से सभी प्रभावशाली देशों को विश्वास में लेने में कामयाब रहे। यहां तक कि पाकिस्तान का सबसे अधिक हितेषी चीन भी इस मसले पर प्रत्यक्ष रुप से पाकिस्तान का पक्ष नहीं ले पाया। इसके विपरीत सभी देशों ने पाकिस्तान को ही आतंकवाद का खात्मा करने की नसीहत दे डाली। बहुत सारे विश्लेषकों ने मोदी की मुस्लिम नीति को लेकर चुनाव से पहले जमकर कोसा था तथा देश में भूचाल की नौबत तक जाहिर कर दी थी। लेकिन संयोग देखिए कि हमारे दो पड़ोसी इस्लामिक देश बांग्लादेश और अफगानिस्तान आज खुले तौर पर पाकिस्तान के खिलाफ और भारत के पक्ष में खड़े हुए दिखाई दे रहे हैं। श्रीलंका, नेपाल और भूटान, भारत को हर तरह का सहयोग देने को तैयार हैं। पाकिस्तान अपने लिए सहानुभूति तलाश रहा था, लेकिन मोदी सरकार की प्रभावशाली विदेश नीति ने उसे मरहम भी नसीब नहीं होने दिया।
अब पाकिस्तान के सामने संकट गहराता जाएगा। भारत सरकार अब पाकिस्तान को संभलने का मौका मुश्किल ही देगी। पाकिस्तान की अंदरूनी स्थिति बेहद कमजोर है, वर्षों के थके पड़े बलूची राष्ट्रवादियों के आंदोलन में अब तेजी आने लगी है, सिंधु की कसक भी जब-तब देखने को मिलती रहती है, पाक अधिक्रांत जम्मू कश्मीर की छटपटाहट शनैः-शनैः अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दस्तक दे रही है। पाकिस्तान पोषित आतंकवादी समूह भी अब सरकार के नियंत्रण से बाहर हैं , इसके साथ-साथ भारत के कूटनीतिक प्रयास और अब तो सीमा पार करने का संयम भी समाप्त हो चुका है। ऐसी स्थिति में पाकिस्तान को गंभीरता से आत्मचिंतन की जरुरत है, लेकिन यह तय है कि पाकिस्तान की कायराना हरकत उसे ऐसी दलदल में फांसेंगी जहां से पाकिस्तान का निकल पाना नामुमकिन हो जाएगा।
इस सारे घटनाक्रम के बाद भारत और पाकिस्तान के संबंध पिछले कुछ बरसो में सबसे नाजुक दौर में हैं। भारत अपना स्पष्ट स्टैंड ले चुका है, संयम को हल्के में न लिया जाए वर्ना बर्बर कारगुजारियों का पूरी तरह से जवाब दिया जाएगा। पाकिस्तान बौखलाहट में अपनी कायरता का परिचय देते हुए अपनी घिनौनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए अगर आतंकवाद का रास्ता अपनाता रहेगा तो आने वाले समय में दक्षिण एशिया क्षेत्र में भारी उथल-पुथल देखने को मिल सकती है। भारत सरकार को निरंतरता के साथ पाकिस्तान के खिलाफ आक्रामक रुख अख्तियार रखना चाहिए और कूटनीतिक प्रयासों से, आर्थिक तरीकों से पाकिस्तान पर लगातार चोट करते रहना चाहिए, जिससे वह अपनी भूमि को भारत के खिलाफ प्रयोग करने की नीति से बाज आये, वर्ना सेना तो अपना काम करेगी ही।
(ये लेखक के निजी विचार हैं।)