अनुच्छेद-370 पर पाकिस्तान का इस प्रकार अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी में अलग-थलग पड़ना यूँ ही नहीं हुआ है, इसके पीछे मोदी सरकार के लम्बे समय से किए जा रहे कूटनीतिक प्रयास हैं। इन प्रयासों के कारण ही आज भारत ऐसी कूटनीतिक लामबंदी करने में कामयाब हुआ है कि पाकिस्तान इस मुद्दे को लेकर जहां भी जा रहा है, उसे मुंह की खानी पड़ रही है।
बीते पांच अगस्त को भारत सरकार ने संसद की शक्ति का इस्तेमाल करते हुए जम्मू–कश्मीर को विशेषाधिकार प्रदान करने वाले अनुच्छेद–370 के अधिकांश प्रावधानों को समाप्त कर दिया। साथ ही, इस सूबे को दो हिस्सों जम्मू–कश्मीर और लद्दाख में विभाजित करते हुए केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया। भारत सरकार के इस कदम के बाद से ही पाकिस्तान एक अलग ही बौखलाहट में है।
अब चूंकि वो इस मसले में भारत को रोक पाने के लिए सीधे तौर पर कुछ नहीं कर सकता, इसलिए अपनी बौखलाहट प्रकट करने के लिए कभी परमाणु युद्ध की धमकी देने, कभी एयरबेस बंद करने तो कभी अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अनुच्छेद–370 ख़त्म किए जाने का मुद्दा उठाने में लगा है। हालांकि ये मामला लेकर वो जहां भी जा रहा है, वहां केवल उसकी भद्द ही पिट रही है।
पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र महासभा में प्रधानमंत्री मोदी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान का संबोधन हुआ। भारतीय प्रधानमंत्री ने जहां संक्षिप्त किन्तु सारगर्भित ढंग से आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन जैसी वैश्विक चुनौतियों से मिलकर निपटते हुए ‘जनकल्याण से जगकल्याण’ की बात कही, तो वहीं पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने लम्बा-चौड़ा किन्तु बेसिर-पैर का वक्तव्य दिया जिसमें केवल पाकिस्तान की दुर्दशा का रुदन, भारत व भाजपा-संघ का विरोध और नकारात्मकता भरी थी। मोदी का वक्तव्य न केवल प्रधानमंत्री की गरिमा के अनुरूप था बल्कि एक वैश्विक नेतृत्वकर्ता के जैसा भी था, जबकि इमरान की भाषा किसी नुक्कड़ के नेता की तरह थी। अपनी बातों के जरिये उन्होंने पाकिस्तान के वास्तविक चरित्र को ही उजागर किया।
इससे पूर्व पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र को पत्र लिखकर उसने इस मसले पर बैठक की मांग की थी। बैठक तो हुई लेकिन उस बैठक में जो हुआ, वो पाकिस्तान और उसके एकमात्र समर्थक चीन की बुरी तरह से किरकिरी कराने वाला था। इसमें सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों में एक चीन के सिवाय किसी देश का साथ पाकिस्तान को नहीं मिला, जबकि भारत के पक्ष में रूस का तो स्पष्ट समर्थन था ही, अमेरिका, फ़्रांस और ब्रिटेन ने भी भारत के कदम का विरोध नहीं किया।
बैठक में शामिल दस अस्थायी सदस्यों में से भी किसीने भारत के विरुद्ध पाकिस्तान का साथ नहीं दिया। इस प्रकार संयुक्त राष्ट्र के जरिये जम्मू–कश्मीर से अनुच्छेद–370 हटाने के भारत के कदम का अंतर्राष्ट्रीयकरण करने की जो पाकिस्तान की मंशा थी, वो पूरी नहीं हो सकी।
इस महीने की शुरुआत में मालदीव की संसद में साउथ एशियन स्पीकर समिट के दौरान भी पाकिस्तान की तरफ से ये मुद्दा उठाया गया, लेकिन भारत ने कड़ा जवाब देते हुए उसको चुप करा दिया। भारत की तरफ से राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने पाकिस्तान को बेनकाब करते हुए कहा कि जिस देश ने 1971 में नरसंहार को अंजाम दिया था और आजाद कश्मीर पर अवैध तरीके से कब्जा किया, उसे इस मसले को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर उठाने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। जाहिर है, वहां भी पाकिस्तान की बात पर किसीने ध्यान नहीं दिया और वो अपनी ढपली अपना राग गाकर चला आया।
इसके बाद पाकिस्तान यह मसला संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार परिषद में लेकर पहुँचा। दावा किया कि भारत कश्मीरियों के मानवाधिकार का हनन कर रहा है। ऐसी भी खबर आई कि अपने इस दावे के पक्ष में उसने भारत के ही दो बड़े विपक्षी नेताओं राहुल गांधी और उमर अब्दुल्ला के बयानों को आधार बनाया है। लेकिन भारत ने न केवल यूएनएचआरसी के मंच पर इस मुद्दे को उठाने के लिए पाकिस्तान को फटकार लगाईं बल्कि उसे आइना दिखाते हुए यह भी कहा कि दूसरे देशों में अल्पसंख्यकों के मानवाधिकारों पर बात करने वालों को अपने देश का हाल देखना चाहिए। अंततः वहां भी पाकिस्तान की कोई सुनवाई नहीं हुई, कोई समर्थन नहीं मिला।
इस विषय में पाकिस्तान को अमेरिका से बड़ी उम्मीदें थीं, लेकिन वो भी इस मसले पर भारत के ही साथ खड़ा है। संयुक्त राष्ट्र में तो अमेरिका ने पाकिस्तान का साथ नहीं ही दिया, फिर जी–7 सम्मेलन में भी भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ प्रेसवार्ता करते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि जम्मू–कश्मीर भारत–पाकिस्तान का निजी मामला है और भारत इस विषय में दुनिया के किसी देश का हस्तक्षेप नहीं चाहता है।
इसके अलावा बीते 22 सितम्बर को अमेरिका के ह्यूस्टन में आयोजित ‘हाउडी मोदी’ कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच जो तालमेल दिखा तथा दोनों पक्षों द्वारा जिस तरह की बातें कही गयीं, वो अनुच्छेद–370 पर भारत के खिलाफ अमेरिका का साथ पाने की पाकिस्तान की रही–सही उम्मीदों को भी समाप्त करने वाला था। हाउडी मोदी कार्यक्रम में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सामने मंच से प्रधानमंत्री मोदी ने अनुच्छेद–370 ख़त्म करने का जिक्र करते हुए न केवल इशारों–इशारों में पाकिस्तान पर निशाना साधा बल्कि इस अनुच्छेद को समाप्त करने वाले सांसदों के लिए उपस्थित जनसमूह से खड़े होकर ताली भी बजवा दी।
मोदी के भाषण के दौरान ट्रंप भी ताली बजाते नजर आए। मोदी ने भी आतंकवाद से मिलकर लड़ने की बात की तो वहीं ट्रंप ने भी अपने अंदाज में ‘कट्टरपंथी इस्लाम’ के खिलाड़ लड़ाई पर जोर दिया। ट्रंप ने यह भी कहा कि वे ह्वाईट हाउस में भारत के अबतक के सबसे अच्छे मित्र हैं। इन कुल बातों का यही संदेश है कि अमेरिका हर तरह से भारत के साथ है, और ये बात पाकिस्तान को समझ लेनी चाहिए।
अनुच्छेद–370 पर पाकिस्तान का इस प्रकार अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी में अलग–थलग पड़ना यूँ ही नहीं हुआ है, इसके पीछे मोदी सरकार के लम्बे समय से किए जा रहे कूटनीतिक प्रयास हैं। इन प्रयासों के कारण ही आज भारत ऐसी कूटनीतिक लामबंदी करने में कामयाब हुआ है कि पाकिस्तान इस मुद्दे को लेकर जहां भी जा रहा है, उसे मुंह की खानी पड़ रही है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)