उड़ी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच चल रही गरमा-गरमी के दरम्यान विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के संयुक्त राष्ट्र में होने वाले भाषण पर सबकी नजर थी। नवाज शरीफ इस बार के सम्मेलन को भारत के खिलाफ काफी कुछ हासिल करने वाला मान कर चल रहे थे, लेकिन नवाज का आतंकवादी बुरहान वानी को कश्मीरी युवा नेता करार देना उड़ी हमले पर संवेदना प्रकट न करना, ज्यादातर समय गैर तथ्यात्मकता के साथ भारत पर केंद्रित रहना, उनके लिए आत्मघाती सिद्ध हुआ और यूरोपियन संघ से लेकर तमाम देशों ने पाकिस्तान से इत्तेफाक नहीं रखा, इसके उलट मानवाधिकारों और आतंकवाद को लेकर नसीहत दे डाली। यहां तक कि पाकिस्तान की लाख कोशिशों के बावजूद भी संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने अपने भाषण में कश्मीर का जिक्र तक नहीं किया। उसके बाद पाकिस्तान का पक्ष स्वाभाविक रूप से कमजोर हो चला था तथा उसे अंतिम परिणति देने की बारी सुषमा स्वराज की थी।
उड़ी हमले के बाद भारत ने विश्व पटल पर पाकिस्तान को एक्सपोज़ करने और अलग-थलग करने का विशेष अभियान चलाया हुआ है। रणनीतिकारों का मानना है कि युद्ध अंतिम विकल्प हो सकता है, परंतु उससे इतर विकल्पों को भी सही तरह से आजमाने की आवश्यकता है। उनमें से एक कूटनीतिक प्रयासों के माध्यम से पाकिस्तान पर दबाव बनाने का विकल्प अन्यतम है। सुषमा स्वराज ने अपने भाषण में उठाये बिंदुओं से जहां भारत की एक जिम्मेदार राष्ट्र की छवि को मजबूत किया, वहीँ ठोस और संतुलित तरीके से पाकिस्तान पर करारा प्रहार भी किया। सुषमा स्वराज ने अपने भाषण की शुरुआत शांति के संदेश के साथ की जिसकी वर्तमान समय में विश्व भर को बेहद आवश्यकता है। प्राचीन काल में सबसे पहले विश्व शांति का संदेश वेदों द्वारा भारत की भूमि से ही दिया गया था। इससे यह प्रतिबिंबित हुआ कि भारत विश्व में शांति को लेकर कितना गंभीर है तथा अपनी तरफ से किसी भी तरह की अशांति के प्रयासों को तरजीह नहीं देता।
सुषमा स्वराज ने बलूचिस्तान का मुद्दा प्रभावशाली तरीके से उठाया, यह जानते हुए कि विश्व के लिए मानवाधिकारों का मुद्दा कितना अहम है, बलूचिस्तान को मानवाधिकारों के हनन की पराकाष्ठा करार दिया। यह पहली बार हुआ है जब भारत ने बलूचियो के मानवाधिकारों की चिंता अंतर्राष्ट्रीय पटल पर व्यक्त की तथा उनकी आवाज बनने का काम किया। यूरोपियन संघ पहले ही इस मुद्दे पर पाकिस्तान को नसीहत देने का काम कर चुका है। अब पाकिस्तान के लिए अपने कुकृत्य छिपाने आसान नहीं होंगे, वहीं दूसरी तरफ वर्षों से आंदोलन कर रहे बलूचियों को भी हौसला मिलेगा। यह पाकिस्तान के आंतरिक मोर्चे पर मुश्किलें पैदा करेगा। कमोबेश भारत का तीर सही निशाने पर लगता नजर आ रहा है।
पाकिस्तान तमाम मानवता विरोधी हरकतें करते हुए भी मासूमियत का नकाब ओढ़े रखना चाहता है, जिसे हरदम उतारने की जरूरत बनी रहती है। देश को सुषमा स्वराज से यही अपेक्षा थी। सुषमा स्वराज ने प्रधानमंत्री की लाइन को वैश्विक मंच पर आगे बढ़ाते हुए पाकिस्तान को आतंकवाद का निर्यातक देश करार दिया। पाकिस्तान के आतंकवाद का उत्पादक होने और खुद को आतंकवाद पीड़ित बताने की दोमुंही नीति को भी सुषमा स्वराज ने अपने भाषण में स्पष्ट रूप से उकेरा है।
15 अगस्त को लाल किले से बलूचिस्तान के जिक्र के बाद इस बात की जिज्ञासा सभी हलको में थी कि क्या भारत बलूचिस्तान के मुद्दे पर पाकिस्तान को घेरने की रणनीति संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाकर उसे ठोस रणनीति में परिवर्तित करेगा अथवा घरेलू राजनीति को ही मुद्दा बनाए रखेगा ? लेकिन सुषमा स्वराज के भाषण से स्पष्ट हो गया कि पाकिस्तान को बलूचिस्तान में अपने मानवता विरोधी कृत्यों के लिए सभी मंचों पर अब यूं ही शर्मसार होना पड़ेगा। सुषमा स्वराज ने बलूचिस्तान का मुद्दा प्रभावशाली तरीके से उठाया, यह जानते हुए कि विश्व के लिए मानवाधिकारों का मुद्दा कितना अहम है, बलूचिस्तान को मानवाधिकारों के हनन की पराकाष्ठा करार दिया। यह पहली बार हुआ है जब भारत ने बलूचियो के मानवाधिकारों की चिंता अंतर्राष्ट्रीय पटल पर व्यक्त की तथा उनकी आवाज बनने का काम किया। यूरोपियन संघ पहले ही इस मुद्दे पर पाकिस्तान को नसीहत देने का काम कर चुका है। अब पाकिस्तान के लिए अपने कुकृत्य छिपाने आसान नहीं होंगे, वहीं दूसरी तरफ वर्षों से आंदोलन कर रहे बलूचियों को भी हौसला मिलेगा। यह पाकिस्तान के आंतरिक मोर्चे पर मुश्किलें पैदा करेगा। कमोबेश भारत का तीर सही निशाने पर लगता नजर आ रहा है।
सुषमा स्वराज ने जिंदा पकड़े गए पाकिस्तानी आतंकवादियों (बहादुर अली) का जिक्र भी पाकिस्तान को घेरने के लिए किया। वस्तुतः यह कड़वी सच्चाई है कि भारत के पास पाकिस्तान के आतंकी कारनामों के खिलाफ जिंदा सबूत हैं, फिर भी पाकिस्तान बेपरवाह इठलाता फिरता है और कुछ देश इसकी उपेक्षा करते हैं। सुषमा स्वराज ने आतंकवाद को मानवाधिकारों का उल्लंघन करार देते हुए इशारों में पाकिस्तान को आतंकवाद को पालने का शौकीन देश करार दिया और साथ ही आतंक को पालने-पोसने वाले देशों को अलग अलग करने की भी गुजारिश सभी देशों से की।
नवाज शरीफ ने अपने भाषण में भारत पर बातचीत के लिए पूर्वशर्त रखने की बात कही थी, नवाज इतने शरीफ निकले कि अपनी ही बात में फस गए, सुषमा ने सवाल दाग दिया कि वह शर्त क्या है ये तो बताओ। अब पाकिस्तान किस मुंह से बोलेगा कि भारत की एक ही शर्त है आतंकवाद का खात्मा, जिसमें हमारी कोई रूचि नहीं है, क्योंकि हम खुद आतंकवाद के उत्पादक देश हैं। वैश्विक मंच पर पाकिस्तान के आतंकवादी कारनामों का पर्दाफाश करने और पाकिस्तान को अलग-थलग करने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए सुषमा जी का भाषण सही दिशा में सही शुरुआत कहा जा सकता है। आवश्यकता इस में निरंतरता बनाए रखने की है।
अगर नवाज और सुषमा के भाषण की तुलना की जाए तो नवाज की खाली कुर्सियो के बीच आत्मविश्वास से हीन, तथ्यों से रहित भाषण की अपेक्षा सुषमा जी का भाषण तथ्यों से भरा, आत्मविश्वास से लबरेज, दूसरों को कन्विंस करने वाला, सधा हुआ, संतुलित तथा तालियों की गड़गड़ाहट के बीच काफी प्रभावशाली था। अब भारत को बेहद सजगता और सावधानी से अपने उक्त लक्ष्य पर आगे बढ़ना चाहिए जिससे पाकिस्तान को हर मोर्चे पर शिकस्त दी जा सके।
(ये लेखक के निजी विचार हैं।)