प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूस की ताजा यात्रा का मूल मकसद आर्थिक संबंधों को मजबूती प्रदान करना है। हालाँकि, कुछ समय पहले रूस द्वारा पाकिस्तान को सैन्य हेलीकॉप्टर देने से दोनों देशों के बीच थोड़ी तल्खी आई थी, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस यात्रा से दोनों देशों के बीच के रिश्ते में फिर से नरमी आ गई है और पाकिस्तान की कूटनीति को गहरा धक्का लगा है। कुल मिलाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस दौरे ने दोनों देशों के 70 सालों के मजबूत रिश्तों में एक नयी गर्माहट ला दी है।
देखा जाये तो आज विदेश नीति के मायने बदल गये हैं। पहले विदेश नीति के तहत सामरिक मामलों को तरजीह दी जाती थी, लेकिन अब इसके अंतर्गत आर्थिक मसलों को केंद्र में रखा जाता है। आज की तारीख में छोटे देश भी परमाणु हथियार से लैस हैं। ऐसे में कोई भी देश किसी दूसरे देश पर हमला करने की हिमाकत नहीं कर सकता है।
दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर किये गये परमाणु हमले के जख्म अभी भी ताजे हैं। दूसरी तरफ दो देशों के बीच कारोबारी संबंध मजबूत होने से दोनों देशों के निर्यात में वृद्धि, विदेशी निवेश में तेजी, तकनीक से लाभान्वित होने आदि की संभावना में बढ़ोतरी होती है। इस वस्तुस्थिति से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अच्छी तरह से वाकिफ हैं। इसलिए, वे विदेश नीति को कारगर बनाने के लिये सत्ता में आने के बाद से ही दूसरे देशों के साथ मजबूत आर्थिक संबंध बनाने के लिये प्रयास कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ताजा विदेश यात्रा में से रूस के दौरे को सबसे महत्वपूर्ण माना जा जा रहा है, क्योंकि कुछ दिनों से दोनों देशों के संबंध में खटास आने की बात कही जा रही थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस के साथ कुल पाँच समझौतों पर हस्ताक्षर किये, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण तामिलनाडु स्थित कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा सयंत्र की पाँचवीं एवं छठी इकाई के निर्माण का करार है। फिलहाल, वहाँ तृतीय और चतुर्थ इकाई का निर्माण कार्य चल रहा है, जो 2024 तक पूरा होगा। उल्लेखनीय है कि इस आलोक में भारत को आर्थिक एवं तकनीकी मदद की दरकार थी, लेकिन रूस एक लंबे समय से मामले में आनाकानी कर रहा था।
बता दें कि कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा परियोजना का कुछ लोग भारत में बहुत सालों से विरोध कर रहे हैं। पीपुल्स मूवमेंट अगेन्स्ट न्यूक्लियर एनर्जी (पीएमएएनई), जो स्थानीय मछुआरों (रहवासियों) के हक के लिए लड़ाई लड़ने का दावा करता है, वह कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा सयंत्र द्वारा ऊर्जा उत्पादन का लेकर लगातार विरोध कर रहा है।
वैसे, ऊर्जा की महत्ता को समझते हुए बीते सालों सर्वोच्च अदालत ने कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा सयंत्र के पक्ष में अपना फैसला दिया था। शीर्ष अदालत का मानना है कि मौजूदा समय में परमाणु ऊर्जा अन्य ऊर्जा स्रोतों से कहीं ज्यादा सस्ती है और इसके बिना किसी भी देश के विकास के सपने को नहीं पूरा किया जा सकता है। सनद रहे, ऊर्जा की बदौलत औद्योगिक विकास में बढ़ोतरी, रोजगार में इजाफा, ग्रामीण पिछड़ेपन को दूर करने में मदद, अर्थव्यवस्था में मजबूती, विकास दर में तेजी आदि संभव हो सकता है।
ऊर्जा के स्रोत को दो भागों में विभाजित किया गया है। पहले वर्ग में वैसे स्रोत आते हैं, जो कभी खत्म नहीं होंगे। इस वर्ग में सौर ऊर्जा, वायु ऊर्जा, हाइड्रो पावर, बायोमास, बायो फ्युल, जियो थर्मल आदि को रखा जाता है। दूसरे वर्ग में वैसे स्रोत आते हैं, जिनके भंडार सीमित हैं। प्राकृतिक गैस, कोयला, पेट्रोलियम आदि ऊर्जा के स्रोत को इस श्रेणी में रखा जाता है। परमाणु ऊर्जा का वर्गीकरण भी इस श्रेणी में किया जा सकता है, क्योंकि यूरेनियम की मदद से ही परमाणु ऊर्जा का उत्पादन किया जाता है।
मौजूदा ऊर्जा की किल्लत को देखते हुए दोनों देश प्राकृतिक गैस का उपयोग करने पर भी राजी हुए हैं। इससे ऊर्जा की जरूरत पूरा होने के साथ-साथ पर्यावरण का स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा। इसके प्रयोग से न सिर्फ ग्रीन हाऊस गैसों का उत्सर्जन कम होगा, बल्कि इससे जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते को लागू करने में भी मदद मिलेगी।
ज्ञात हो कि भारत और रूस पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते के क्रियान्वयन को लेकर पहले ही प्रतिबद्धता जता चुके हैं। इस क्रम में भारत और रूस मिलकर समुद्र में ऊर्जा भंडारों की खोज एवं संयुक्त रणनीति बनाकर पारस्परिक हितों से जुड़ी परियोजनाओं को अमलीजामा पहनाएंगे। माना जा रहा है कि परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में भारत और रूस के बीच बढ़ते सहयोग से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजना “मेक इन इंडिया” के अंतर्गत परमाणु ऊर्जा के उपयोग क्षेत्र में नये अवसरों का आगाज होगा।
रूस यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने व्लादिमिर पुतिन के साथ सेंट पीटर्सबर्ग में आयोजित अंतरराष्ट्रीय आर्थिक मंच में द्विपक्षीय आर्थिक मसलों पर चर्चा व क़रारनामा किया। भारत रूस के साथ व्यापारिक संबंधों में इजाफा करना चाहता है। फिलवक्त, भारत और रूस के बीच महज 7 अरब डॉलर का ही कारोबार होता है, जबकि चीन के साथ 60 अरब डॉलर का। गौरतलब है कि रूस का चीन के साथ 70 अरब डॉलर का व्यापार होता है। जाहिर है, रूस के लिए भी आर्थिक पक्ष ज्यादा महत्वपूर्ण है और दूसरे देशों के लिए भी। भारत के चीन के साथ मधुर संबंध नहीं होने के बावजूद भी मौजूदा कारोबारी आंकड़ों से उनके बीच मजबूत कारोबारी रिश्ते का पता चलता है।
ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रूस के साथ कृषि, ऊर्जा, विज्ञान व प्रौद्योगिक आदि क्षेत्रों में कारोबार को बढ़ाना चाहते हैं। इस संदर्भ में नागपुर और सिकंदराबाद के बीच हाई स्पीड रेल चलाने के लिए रूसी तकनीकी सहयोग के संदर्भ में दोनों देशों ने एक करारनामे पर हस्ताक्षर किया है और दोनों देश कारोबार से संबंधित लेन-देन एक-दूसरे की राष्ट्रीय मु्द्राओं में करने के लिए भी राजी हुए हैं, ताकि दोनों देशों के कारोबार के मामले में दूसरे देश की मुद्रा पर से निर्भरता कम हो सके।
भारत और रूस के बीच राजनयिक एवं कारोबारी संबंध 13 अप्रैल 1947 को स्थापित हुए थे। शुरू में भारत रूस पर सैन्य जरूरतों के लिए पूरी तरह से निर्भर था, लेकिन कालांतर में दोनों देश दूसरे क्षेत्रों में भी कारोबार करने लगे। लेकिन, इसमें विस्तार की अभी भी जबर्दस्त गुंजाइश है। बहरहाल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी इस यात्रा में भी सुरक्षा क्षेत्र की भी अनदेखी नहीं की है। भारत और रूस के बीच पहली बार तीनों सेनाओं के संयुक्त सैन्य अभ्यास “इंद्र” के 2017 में आयोजित किये जाने पर सहमति बनी है। दोनों देश सैन्य साजो-सामान, संबंधित कलपुर्जों के साझे उत्पादन की मदद से रक्षा सहयोग को उन्नत बनाने के लिये भी सहमत हुए हैं।
कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूस की ताजा यात्रा का मूल मकसद आर्थिक संबंधों को मजबूती प्रदान करना है। हालाँकि, कुछ समय पहले रूस द्वारा पाकिस्तान को सैन्य हेलीकॉप्टर देने से दोनों देशों के बीच थोड़ी तल्खी आई थी, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस यात्रा से दोनों देशों के बीच के रिश्ते में फिर से नरमी आ गई है और पाकिस्तान की कूटनीति को गहरा धक्का लगा है। जो भी हो, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस दौरे ने दोनों देशों के 70 सालों के मजबूत रिश्तों में एक नयी गर्माहट ला दी है।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र, मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में मुख्य प्रबंधक हैं। स्तंभकार हैं। ये विचार उनके निजी हैं।)