उलटे-सीधे बयान देकर राजनीतिक माहौल बनाना और बाद में उसे शब्दों को तोड़-मरोड़कर पेश करने से लेकर अनुवाद की गलती करार देने की कांग्रेसी परंपरा रही है। ऐसे बयान देने में माहिर मणि शंकर अय्यर को कांग्रेस ने कहीं छिपा कर रखा है ताकि वे जाने-अनजाने कांग्रेस के चरित्र को न उजागर कर दें। कहा गया है कि आदतें नहीं बदलतीं इसीलिए मणि शंकर अय्यर नहीं तो कोई और कांग्रेस के असली चरित्र को उजागर कर रहा है।
तकनीकविद से राजनीतिज्ञ बने सैम पित्रोदा ने एक बार फिर कांग्रेस के असली चरित्र को उजागर करने का काम किया। 1984 के कांग्रेस प्रायोजित सिख विरोधी दंगों पर टिप्पणी करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के राजनीतिक गुरु ने कहा “1984 में दंगा हुआ तो हुआ।” इस प्रकार उन्होंने कांग्रेस प्रायोजित दंगे को छिटपुट घटना करार दिया। सिख विरोधी दंगों पर कांग्रेस पार्टी की ऐसी सोच कोई नई बात नहीं है। हालांकि इसके बाद राहुल गांधी ने पित्रोदा के बयान को शर्मनाक बताते हुए माफ़ी मांगने की बात कहकर डैमेज कंट्रोल की कोशिश की, मगर इससे 84 दंगों पर कांग्रेस की हकीकत नहीं बदल सकती।
सिख विरोधी दंगों पर पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी ने कहा था “जब बड़ा पेड़ गिरता है तब आसपास की धरती हिल जाती है।” गौरतलब है कि जिस समय देश की राजधानी समेत कई शहरों में सिख विरोधी दंगे हो रहे थे, उस समय तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने दंगे रूकवाने के लिए जब तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को फोन किया तब राजीव गांधी ने फोन तक नहीं उठाया। इतना ही नहीं पुलिस को साफ निर्देश दिए गए थे कि कांग्रेसी भीड़ के गुंडों पर एक भी गोली न चलाई जाए।
उल्लेखनीय है कि 1984 में सिख सुरक्षा गार्डों द्वारा की गई इंदिरा गांधी की हत्या के प्रतिशोध में देश के कई शहरों में दंगे भड़क उठे थे। इसका सबसे भीषण रूप दिल्ली में देखने को मिला जहां कांग्रेसी नेताओं ने वोट बैंक बनाने के लिए हिंसक भीड़ का नेतृत्व किया। इस दौरान हजारों सिखों को गाजर-मूली की तरह काट डाला गया। उनकी दुकानें लूट ली गईं।
सिख टैक्सी ड्राइवरों को तो गाड़ी के अंदर बंद करके आग के हवाले कर दिया गया। हजारों सिखों को जान बचाने के लिए अपने बाल तक कटवाने पड़े। मानव इतिहास के इस बर्बर हत्याकांड को कांग्रेसी आम घटना मानते रहे हैं और उसके गुनाहगारों को अदालत से बरी कराने में भी कामयाब रहे। भला ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जिन्होंने एसआईटी गठित कर दोषियों को जेल भिजवाया।
भले ही कांग्रेस पार्टी सैम पित्रोदा के बयान को पार्टी से अलग घोषित कर रही हो लेकिन उनकी टिप्पणी ने कांग्रेस के असली चरित्र को तो उजागर कर ही दिया। वैसे यह कोई नई बात नहीं है। यदि कांग्रेस के इतिहास को देखा जाए तो 84 का सिख दंगा बहुत छोटा उदाहरण लगेगा। देश विभाजन के भीषणतम कत्लेआम को छोड़ दिया जाए तो भी हैदराबाद, अहमदाबाद, भागलपुर, हाशिमपुरा, मलियाना, मुंबई जैसे सैकड़ों उदाहरण मिल जाएंगे जहां कांग्रेस ने सत्ता के लिए सुनियोजित तरीके से दंगा कराया और फिर उसी दंगे की ओट में सत्ता की चाबी हासिल की।
सत्ता की चाबी कांग्रेस के हाथ से न निकल जाए इस डर से कांग्रेसी सरकारों ने सच्चाई को सामने आने से रोका। यहां 1971 के पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के हिंदुओं के नरसंहार का उल्लेख प्रासंगिक है। 1971 के युद्ध में पाकिस्तानी फौज पूर्वी पाकिस्तान में हिंदुओं चुन-चुनकर मार रही थी।
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी इस बात से भयाक्रांत थीं कि यदि यह खबर हिंदुस्तान पहुंच गई तो भारतीय जन संघ इसका राजनीतिक फायदा उठा लेगा। इसीलिए उन्होंने इस खबर को ब्लैक आउट करा दिया। भारतीयों को इस सच्चाई का पता महीनों बाद विदेशी मीडिया से लगा। स्पष्ट है, कांग्रेस के लिए सत्ता ही सर्वोपरि है। इसके लिए वह किसी भी हद तक जा सकती है।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)