सरकार का अनुमान है कि इस योजना से एसी एवं एलईडी विनिर्माण में 7920 करोड़ के नए निवेश आएंगे और प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से चार लाख रोजगार सृजित होंगे। नए निवेश से 1,68,000 करोड़ रूपये मूल्य की वस्तुओं का इन्क्रीमेंटल उत्पादन होगा। समग्रत: दशकों की उपेक्षा से आयात केंद्रित अर्थव्यवस्था बन चुके देश को विनिर्माण धुरी बनाना आसान नहीं है। इसके लिए बहुआयामी उपाय करने होंगे। पीएलआई उसी प्रकार का उपाय है।
उदारीकरण के बाद देश में विशालकाय मध्यवर्ग का उदय हुआ लेकिन इस मध्यवर्ग की मांग को ध्यान में रखकर घरेलू विनिर्माण पर ध्यान नहीं दिया गया। नतीजा इलेक्ट्रानिक्स व इलेक्ट्रिकल सामानों, कार्बनिक रसायन, मशीनरी, प्लास्टिक व लोहे के सामान का आयात तेजी से बढ़ा।
इस दौरान कई उद्योगपतियों ने देश में तकनीक क्षेत्र में आधारभूत ढांचा विकसित करने की मांग उठाई लेकिन सरकारों ने लंबी अवधि की योजना बनाई ही नहीं। इतना ही नहीं सत्ता पक्ष से जुड़े आयातकों की मजबूत लॉबी ने अनुसंधान व विकास पर खर्च बढ़ने नहीं दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि देश का आयात लगातार बढ़ा ही गया।
दूसरी ओर भारत जैसी परिस्थिति वाले देश चीन ने इसे अपने लिए अवसर माना और विनिर्माण को प्रोत्साहन दिया गया ताकि दुनिया विशेषकर भारतीय बाजारों पर कब्जा जमाया जा सके। भारतीय नीति निर्माताओं द्वारा विनिर्माण की उपेक्षा के कारण चीन की नीति कामयाब रही। इसे 2019 के आयात–निर्यात आंकड़ों से देखा जा सकता है।
2019 में भारत ने चीन से 75 अरब डॉलर के सामान का आयात किया जबकि भारत ने चीन को मात्र 18 अरब डॉलर का सामान निर्यात किया। इस प्रकार चीन से कारोबार में भारत को 57 अरब डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा। विदेश विशेषकर चीन से होने वाले भारी-भरकम आयात का दुष्परिणाम यह हुआ कि भारत में विनिर्माण करना महंगा होता गया।
2014 में प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते ही नरेंद्र मोदी ने देश के भारी-भरकम आयात बिल में कटौती की योजना बनाई। इसके लिए मेक इन इंडिया मुहिम शुरू की गई लेकिन तकनीक क्षेत्र में आधारभूत ढांचा की कमी, बिजली की किल्लत, ऊंची लॉजिस्टिक लॉगत, जमीन अधिग्रहण में कठिनाई जैसे कारणों से घरेलू विनिर्माण को अपेक्षित सफलता नहीं मिली। इसीलिए प्रधानमत्री ने सबसे पहले इन ढांचागत खामियों को दूर करने पर ध्यान दिया।
घरेलू विनिर्माण में सबसे बड़ी बाधा सस्ता आयात रहा है। इसी को देखते हुए मोदी सरकार एक ओर आयात शुल्क में बढ़ोत्तरी किया तो दूसरी ओर उत्पादकों को सीधे प्रोत्साहन देने के लिए उत्पादन संबद्ध योजना (पीएलआई) लेकर आई है। सरकार ने 2020 में पांच क्षेत्रों के लिए पीएलआई योजना को मंजूरी दी थी।
इसी के तहत अब वातानुकूलित मशीनों (एसी), लाइट एमेटिंग डायोड (एलईडी) और उच्च क्षमता वाले सोलर फोटोवोल्टिक (पीवी) के लिए 10738 करोड़ रूपये की पीएलआई को मंजूरी दी है। इसमें एसी और एलईडी के लिए 6238 करोड़ रूपये और सोलर पीवी मॉड्यूल के लिए 4500 करोड़ रूपये का प्रावधान किया गया।
विनिर्माताओं को ये प्रोत्साहन वित्त वर्ष 2021-22 से शुरू होकर अगले पांच वर्षों के दौरान दिए जाएंगे। इसका उद्देश्य घरेलू स्तर पर विनिर्माण और इन वस्तुओं में इस्तेमाल होने वाले कल-पुर्जों के उत्पादन को स्थानीय स्तर पर बढ़ावा देना है। इससे स्थानीय स्तर पर उद्योग-धंधे मजबूत होंगे और रोजगार की संभावनाएं बढ़ेंगी। इतना ही नहीं आगे चलकर भारत इन वस्तुओं का निर्यात भी करेगा।
सरकार का अनुमान है कि इस योजना से एसी एवं एलईडी विनिर्माण में 7920 करोड़ के नए निवेश आएंगे और प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से चार लाख रोजगार सृजित होंगे। नए निवेश से 1,68,000 करोड़ रूपये मूल्य की वस्तुओं का इन्क्रीमेंटल उत्पादन होगा। समग्रत: दशकों की उपेक्षा से आयात केंद्रित अर्थव्यवस्था बन चुके देश को विनिर्माण धुरी बनाना आसान नहीं है। इसके लिए बहुआयामी उपाय करने होंगे। पीएलआई उसी प्रकार का उपाय है।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)