मोदी इस देश की वक्ती ज़रूरत हैं। आपने उनका गोवा में दिया गया भाषण सुना क्या ? उनकी शारीरिक भाषा देखी, आंखें देखीं और शब्दों के परे जो कुछ भी वह बयान कर रहे थे, वह देख पाए क्या ? क्या वह किसी थके आदमी की भाषा हो सकती है, किसी हारे हुए इंसान की बॉडी-लैंग्वेज लग रही है क्या, किसी चिंतित, गुस्साए, खीझे आदमी का भाषण वैसा हो सकता है क्या ? इन सब का जवाब एक शब्द में है- नहीं।
अपने दिल पर हाथ रखकर याद कीजिए, 2014 के पहले 10 वर्षों तक आप जब भी प्रधानमंत्री शब्द सुनते थे, तो किसका चेहरा याद आता था ? सोनिया गांधी का या मनमोहन सिंह का। या फिर, प्रधानमंत्री कितनी बार राजनीतिक चर्चा के केंद्र में होते थे। याद नहीं न। अगर आप दिमाग पर बहुत ज़ोर डालेंगे, तो शायद ‘देहाती औरत’ वाला वाकया (शर्म-अल-शेख) याद आएगा, या फिर एक 40 पार अपरिपक्व कांग्रेसी युवराज के संसद द्वारा पारित कानून के टुकड़े-टुकड़े बिखेरने की कहानी याद आएगी। 10 साल बाद अगर इस देश के एंटरटेनमेंट चैनल, अखबारी कंपनियां और सोशल मीडिया दिन में 24 बार प्रधानमंत्री पर लिख रहे हैं, दिखा रहे हैं, चर्चा कर रहे हैं, तो सचमुच मानिए कि यह आपकी राजनीति के लिए शुभ दिन है।
गौर कीजिएगा, पिछले लगभग ढाई वर्षों से पूरे भारतवर्ष की वामी बिरादरी इस आदमी के पीछे हाथ धोकर पड़ी हैं (बाक़ी 12 वर्षों का जिक्र मैं जान-बूझकर नहीं कर रहा), देश का तथाकथित मीडिया और बुद्धिजीवी संप्रदाय दिन-रात जिसके पीछे हाध-धोकर पड़ा है, फिर भी वह आदमी अनथक अपना काम किए जा रहा है, वही आदमी इस तरह की भाषा बोल सकता है, ऐसी बेबाकी दिखा सकता है और ऐसे तेवर के साथ सीधा जनता की आंखों में आंखें डाल कर बात कर सकता है, फिर भले ही उसके आलोचकों के अनुसार उसने पूरी जनता को सड़क पर कतारों में लाकर खड़ा कर दिया है।
मोदी-हेटर्स के पास इस नफरत की कोई वजह (तार्किक) नहीं है, लेकिन आपके पास अगणित वजहें हैं, अपने इस प्रधानमंत्री को प्यार करने की, चाहने की। इनमें से कुछ आप जानते हैं, कुछ आप नहीं जानतेः-
1. अपने इन पीएम से प्यार कीजिए क्योंकि 10 वर्षों बाद इन्होने राजनीति के केंद्र में फिर से प्रधानमंत्री पद को लाकर खड़ा कर दिया है। ज़रा अपने दिल पर हाथ रखकर याद कीजिए, 2014 के पहले 10 वर्षों तक आप जब भी प्रधानमंत्री शब्द सुनते थे, तो किसका चेहरा याद आता था ? सोनिया का या मनमोहन सिंह का। या फिर, प्रधानमंत्री कितनी बार राजनीतिक चर्चा के केंद्र में होते थे। याद नहीं न। अगर आप दिमाग पर बहुत ज़ोर डालेंगे, तो शायद ‘देहाती औरत’ वाला वाकया (शर्म-अल-शेख) याद आएगा, या फिर एक 40 पार अपरिपक्व कांग्रेसी युवराज के संसद द्वारा पारित कानून के टुकड़े-टुकड़े बिखेरने की कहानी याद आएगी। 10 साल बाद अगर इस देश के एंटरटेनमेंट चैनल, अखबारी कंपनियां और सोशल मीडिया दिन में 24 बार प्रधानमंत्री पर लिख रहे हैं, दिखा रहे हैं, चर्चा कर रहे हैं, तो सचमुच मानिए कि यह आपकी राजनीति के लिए शुभ दिन है।
2. अपने पीएम का सम्मान कीजिए, क्योंकि पिछले ढाई साल से उनके विरोधी भ्रष्टाचार का एक छोटा सा मामला भी नहीं खोज पाए हैं। अगर हम केजरीवाल की बेबुनियाद बातों, 10 लाख के कोट, 2 करोड़ के पानी (नवरात्र के दौरान), विदेश यात्राओं पर आधारहीन आरोपों को छोड़ दें, तो इस प्रधानमंत्री को घेरने के लिए विपक्षियों के पास मुद्दों की ही कमी हो गयी है। कभी असहिष्णुता तो कभी किसी युवक की आत्महत्या को मुद्दा बनाकर रोटी सेंकनेवालों की जमात को जब जनता ने दहाई अंकों में समेट दिया, तो अब पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक से लेकर प्रधानमंत्री की भावुकता तक को ये मुद्दा बना रहे हैं।
3. आप अपने इस प्रधानमंत्री को दाद दीजिए कि यह आपको चौंकाता है। यह आपको हंसाता भी है, रुलाता भी है और एक अभिभावक की तरह आपसे रूबरू भी होता है। याद कीजिए, आखिरी बार राजनीति के ये तत्व आपने कब देखे थे ? नेताओं को भ्रष्ट मानकर शायद आपने राजनीति से ही तौबा कर ली थी, लेकिन नरेंद्रभाई दामोदरदास मोदी ने राजनीति को आपके जीवन के केंद्र में लाकर खड़ा कर दिया है। कहावत भी है न, जो राजनीति आपकी रोटी को तय करती है, उस राजनीति को तय करने का भी हक़ तो आपका ही है। तो, राजनीति को इतना मज़ेदार और रोचक बनाने के लिए इस पीएम को एक सलाम तो बनता ही है।
4. धन्यवाद दीजिए कि आपका यह प्रधानमंत्री इतनी सरलता से सार्वजनिक मंच पर भावुक भी होता है, रो भी सकता है और दहाड़ भी सकता है। आखिरी बार, किसी राजनेता को अपने भावों का इस तरह सार्वजनिक प्रकटीकरण करते हुए आपने कब देखा था ? हालांकि, भावुक होने के बावजूद यह अपने पद को अपमानित करते हुए अपनी सात पुश्तों के लिए इंतजाम नहीं करता। इसी देश में ‘समाजवादी’ सरकार है, जिसमें परिवार के दूर-दूर तक के लोगों के लिए भी पद आरक्षित हो जाता है, वहीं यह प्रधानमंत्री भी है, जिसकी बूढ़ी मां खुद बैंक से पैसे बदलने जाती है, बड़ा भाई अब भी छोटी सी दुकान चलाकर निर्वाह करता है और भतीजी भी जब मदद मांगने जाती है तो यह आशीर्वाद की गठरी टिकाकर विदा कर देता है। आपको तो ‘डॉक्टर मीसा भारती’ याद ही होंगी, टॉपर थीं।
5. और, प्रधानमंत्री को धन्यवाद दीजिए कि इन्होनें पाकिस्तान को उसी की चवन्नी वापस लौटा दी है। सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल खड़ा करनेवाले लोगों की भले इस देश में कमी न हो, लेकिन जनमानस यह जानता है कि इस स्ट्राइक के मायने क्या हैं? जेएनयू में छेड़खानी के आरोपित एक लड़के को भले ही इस देश के कौमी-वामी पोस्टर ब्वॉय बना रहे हों, लेकिन इस लेखक जैसे जेएनयू के पूर्व छात्र जानते हैं कि पूरे देश में जेएनयू के खिलाफ किस तरह का गुस्सा फूट रहा है ? देश का आम जनमानस ही है, जिसने इस बार दीवाली में आमतौर पर चीनी झालरों का बहिष्कार कर उसे बयान देने पर मज़बूर कर दिया।
6. आखिरकार, प्यार कीजिए इस प्रधानमंत्री मोदी को कि उनका फिलहाल कोई विकल्प नहीं है। आप खुद देख लीजिए। राहुल, केजरीवाल, ममता, नीतीश, पटनायक, चंद्रबाबू, मुलायम- इनमें से कौन दे सकता है, इस प्रधानमंत्री को पटकनी? कोई नहीं न। इसलिए, आप बैंक की कतारों में थोड़ी दिक्कत झेलने के बावजूद जानते हैं कि पीएम जो कुछ भी कर रहे हैं, आखिरकार वह हमारे-आपके किसी न किसी काम ही आएगा। आपका प्रधानमंत्री भी जानता है कि आलोचकों को छोड़ दें, तो देश का अधिसंख्य उसके साथ खड़ा है और इसीलिए शायद वह अपने कोर वोटर्स की भी नाराज़गी मोल लेने का ख़तरा उठा रहा है।
तो, धन्यवाद दीजिए कि इस वक्त एक जीता-जागता इंसान प्रधानमंत्री के तौर पर गद्दीनशीन है, कोई रोबोट नहीं।
(लेखक पेशे से पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)