वर्तमान इंटरनेट, कप्यूटर और स्मार्ट फोन आदि के दौर में पुस्तकों का बचा रह जाना हैरान कर सकता है। वह भी जब ये गैजेट्स मनुष्य के दैनन्दिन जीवन का अनिवार्य हिस्सा हो चले हों। आजकल इंटरनेट पर ‘सबकुछ’ मिलता है। इस ‘सबकुछ’ का आकर्षण हमें बरबस ही अपनी ओर खींच लेता है। इसमें रचनाओं का अंबार है, जिसे एक उपलब्धि के रूप में देखा जा रहा है। इसमें एक बहुत बड़ा भ्रम भी है जिससे हमें खबरदार होने की जरूररत है। भ्रम यह है कि इंटरनेट और इससे जुड़े गैजेट्स की गठजोड़ से हमारा ज्ञानवर्धन होता है। हमें ध्यान रखना चाहिए कि सूचनाएं अंततः सूचनाएं ही होती हैं। दरअसल सूचना और ज्ञान में कमोबेस वही फर्क होता है जो किसी समाचार पत्र और पुस्तक में। समाचार पत्रों से हमारी आँखे खुलती हैं तो पुस्तकों से हमारी दृष्टी निर्मित होती है। यही कारण है कि इस तकनीकि दौर में भी पुस्तकों की प्रासंगिकता और रोमांच बना हुआ है। हालिया दिनों में प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित प्रखर राष्ट्रवादी देवेन्द्र स्वरूप द्वारा सृजित‘अखंड भारत संस्कृति ने जोड़ा राजनीति ने तोड़ा’ एक ऐसी पुस्तक आयी है जिस प्रत्येक संवेदनशील अध्येता के बुकसेल्फ में अनिवार्यतः होना चाहिए। ‘अखंड भारत संस्कृति ने जोड़ा राजनीति ने तोड़ा’ एक ऐसी गंभीर पुस्तक है जो दृष्टी संपन्न बनाती है। हमारे बोध को पैना करती है समझ को विस्तार करती है। जैसा कि इस पुस्तक का शिर्षक है ‘अखंड भारत संस्कृति ने जोड़ा राजनीति ने तोड़ा’ यह अपने नाम से ही अपने विषय का पता देती है। इस पुस्तक का पहला अध्याय ही है ‘अखंड भारत’ क्या है?।
भारत के संदर्भ में अनेकता में एकता का नारा बहुप्रचलित है। भारत विविध भाषा बोली, रीति-रिवाज,पर्व- त्योहार, मान्यताओं और अनूठी भौगोलिक विशेषताओं वाला देश है। अनेकता तो साफ झलकती है लेकिन ऐक्य का वह सुत्र कहां है जिससे ‘अनेकता में एकता’ की बात की जाती है? भारत की एकता-अखंडता के जटिल सुत्रों की सुस्पष्ट एवं सफल शिनाख्त इस अध्याय में किया गया है वैसे तो इस पुस्तक में गुंफित चिंतन कुल 29 अध्यायों में विभक्त है। किंतु गौर करने पर आप पाएंगे कि पहले ‘अध्याय अखंड भारत क्या है?’ का ही विस्तार है शेष 28 अध्यायों में। इन शेष 28 अध्यायों में भी दो शाखाएं देखी जा सकती है। आधा हिस्सा भारत के सांस्कृतिक एकता आखंडता, विशिष्टता, अछुण्णता और अविनाशी स्वरूप आदि पर गहरा चिंतन है।
भारत के संदर्भ में अनेकता में एकता का नारा बहुप्रचलित है। भारत विविध भाषा बोली, रीति-रिवाज,पर्व- त्योहार, मान्यताओं और अनूठी भौगोलिक विशेषताओं वाला देश है। अनेकता तो साफ झलकती है लेकिन ऐक्य का वह सुत्र कहां है जिससे ‘अनेकता में एकता’ की बात की जाती है? भारत की एकता-अखंडता के जटिल सुत्रों की सुस्पष्ट एवं सफल शिनाख्त इस अध्याय में किया गया है वैसे तो इस पुस्तक में गुंफित चिंतन कुल 29 अध्यायों में विभक्त है। किंतु गौर करने पर आप पाएंगे कि पहले ‘अध्याय अखंड भारत क्या है?’ का ही विस्तार है शेष 28 अध्यायों में। इन शेष 28 अध्यायों में भी दो शाखाएं देखी जा सकती है। आधा हिस्सा भारत के सांस्कृतिक एकता आखंडता, विशिष्टता, अछुण्णता और अविनाशी स्वरूप आदि पर गहरा चिंतन है। तो दूसरे हिस्से में इस पर होने वाले राजनीतिक षडयंत्र, कुचक्र, विभाजनकारी मानसिकता आदि का न सिर्फ पर्दाफाश किया गया है बल्कि इन नाकारात्मकताओं का करारा जवाब भी दिया गया है। छद्म सेकुलर और मार्क्सवादी जिस गांगा, गीता, राम,रामकथा, रामसेतु तथा रामजन्म भूमि आदि को मात्र धर्म विषेष का विषय बताकर रेड्यूज कर देते हैं उसे श्री देवेन्द्र स्वरूप जी ने अपनी ‘अखंड भारत संस्कृति ने जोड़ा राजनीति ने तोड़ा’ में मजबूत पक्षों-तर्कों के आधार पर इन्हे भारत की विराट सांस्कृतिक शरीर का स्वभाविक एवं जरूरी अंग साबित किया है।