इस खूनी खेल के लिए अगर कोई ज़िम्मेदार है तो सबसे पहले कांग्रेस उसके बाद समाजवादी और बसपा की पूर्ववर्ती सरकारें, जिन्होंने अपने राजनीतिक फायदे को देखा लेकिन गरीब आदिवासियों के लिये कुछ नहीं किया। अपना राजनीतिक वजूद ढूंढ रहे कांग्रेस परिवार को सोनभद्र जैसी घटना के बाद राजनीति करने से बचना चाहिए था, लेकिन लगता है कि कांग्रेस अपने अन्दर सुधार करने के बजाय फिर वही हथकंडे अपना रही है, जिसकी वजह से उसका देश के मानचित्र से लगभग सफाया हो गया है।
उत्तर प्रदेश के सोनभद्र में ज़मीनी विवाद को लेकर 10 आदिवासियों की हत्या से प्रदेश की सियासत गरमा गई है। ज़मीन पर कब्ज़े को लेकर एक ही गाँव के दो गुटों के बीच हुई गोलीबारी के बाद कम से कम 30 लोगों की गिरफ़्तारी भी हुई है। प्रशासन ने इस बीच सोनभद्र में शांति कायम करने का प्रयास भी किया है, लेकिन जैसा कि ऐसी घटनाओं के बाद होता है, विपक्षी अपनी सियासी रोटी सेंकने में भी जुट गए हैं।
इस घटना के बाद कांग्रेस ने अपनी खोई सियासी ज़मीन तलाशने की कवायद शुरू कर दी, इसकी अगुवाई कर रही थीं कांग्रेस नेता प्रियंका गाँधी, जो कहने को तो उत्तर प्रदेश के पूर्वी हिस्से की इन चार्ज हैं, लेकिन राहुल गाँधी के पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद पार्टी को पटरी पर लाने का जिम्मा इन्हीं के पास है।
लोगों ने देखा होगा कि इस घटना के बाद मीडिया के एक धड़े में वो तस्वीर भी वायरल हो गई जिसमें धरना पर बैठी प्रियंका की तुलना इंदिरा गाँधी से की जाने लगी। तस्वीरों में दिखाया गया कि किस तरह इंदिरा गाँधी ने भी 1977 में बिहार के बेलची गाँव में 11 दलितों की हत्या के बाद धरना दिया था। तब इंदिरा गाँधी अपनी हार के बाद भी 35 कारों के काफिले के साथ बेलची पहुंची थीं और हाथी पर बैठकर गाँव के आस-पास लोगों से मिल आई थीं।
वर्ष 2019 में सोनभद्र में वही बेलची मोमेंट्स पैदा करने की कोशिश प्रियंका ने की है। कारों का काफिला, आदिवासियों के बीच रात गुजारना। मीडिया का जमघट। सब कुछ स्क्रिप्टेड लगता है। सवाल है कि आदिवासियों की हत्या पर अपनी सियासी रोटियां सेंकना कहा था जायज़ है? इस घटना के लिए प्रियंका गाँधी ने उत्तर प्रदेश सरकार को जिम्मेदार ठहराया, लेकिन सोनभद्र की इस घटना को देखें तो आपको पता चलेगा कि यहाँ का ज़मीनी विवाद कम से कम 50 वर्ष पुराना है।
पहले समझना होगा कि 17 जुलाई को पुलिस फायरिंग क्यों हुई? सोनभद्र जिले के उभा गाँव में 90 बीघा ज़मीन के मालिकाना हक़ को लेकर पहले से विवाद था। गाँव के ही रहने वाला यज्ञ दत्त ने 2017 में बिहार के एक आईएस कैडर से जमीन खरीदी लेकिन पिछले साल भी गाँव के आदिवासियों के ज़मीन के मालिकों को कब्ज़ा करने नहीं दिया, क्योंकि यह लोग ज़मीन पर खेती करते आ रहे थे। इस ज़मीन को लेकर रेवेन्यु कोर्ट में पहले से मुक़दमा चल रहा था।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि यह ज़मीनी विवाद 1955 का था जब वहां कांग्रेस की ही सरकार थी। कांग्रेस सरकार ने तभी आदर्श सोसाइटी बनाई थी, फिर 1989 में जब वहां कांग्रेस की ही सरकार थी तब ज़मीन का मालिकाना हक़ एक सोसाइटी से लेकर निजी हाथों में दे दिया गया, सही मायने में विवाद की असली शुरुआत यहीं से हुई। यही ज़मीन यज्ञ दत्त के नाम से ट्रान्सफर कर दी गई जब यज्ञ दत्त से पहले ज़मीन मालिक इस ज़मीन से कब्ज़ा नहीं छुड़ा सके।
अतः इस खूनी खेल के लिए अगर कोई ज़िम्मेदार है तो सबसे पहले कांग्रेस उसके बाद समाजवादी और बसपा की पूर्ववर्ती सरकारें, जिन्होंने अपने राजनीतिक फायदे को देखा लेकिन गरीब आदिवासियों के लिये कुछ नहीं किया। अपना राजनीतिक वजूद ढूंढ रहे कांग्रेस परिवार को सोनभद्र जैसी घटना के बाद राजनीति करने से बचना चाहिए था, लेकिन लगता है कि कांग्रेस अपने अन्दर सुधार करने के बजाय फिर वही हथकंडे अपना रही है, जिसकी वजह से उसका देश के मानचित्र से लगभग सफाया हो गया है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)