महात्मा गांधी से लेकर इंदिरा गांधी, ललित नारायण मिश्रा, ललित माकन, राजीव गांधी, नगीना राय, बेअंत सिंह आदि तमाम राजनीतिक लोगों की हत्याएं की गई। क्या इनको पता था कि राजनीतिक साजिश के तहत इनकी हत्या की जाएगी ? या इनकी हत्या से पूर्व हत्यारों ने सूचना जारी की थी कि वे हत्या करने वाले हैं। ऐसे इतिहास के बावजूद कांग्रेस आदि विपक्षी दलों का प्रधानमंत्री मोदी की हत्या की साजिश के खुलासे पर राजनीतिक बयानबाजी करना शर्मनाक ही कहा जाएगा।
पुणे पुलिस ने सात जून को एक अदालत में खुलासा किया कि प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) के लोग प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हत्या की साजिश रच रहे हैं, ये प्लानिंग पिछले साल भर से की जा रही है। पुलिस का दावा है कि माओवादी नरेन्द्र मोदी की जन सभाओं और रोड शो को निशाना बना सकते हैं, ठीक उसी तरह जैसे पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को निशाना बनाया गया था।
पुणे पुलिस को माओवादियों से मिले एक गुप्त पत्र के मुताबिक, माओवादी संगठनों से कथित संबंध रखने वाले कुछ लोगों के बीच प्रधानमंत्री को निशाना बनाने को लेकर विस्तृत पत्र व्यवहार हुआ था। इस खुलासे के बाद प्रधानमंत्री पर खतरे के मद्देनज़र गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने बीते सोमवार को एक उच्चस्तरीय बैठक की जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल, केंद्रीय गृह सचिव राजीव गाबा और खुफिया ब्यूरो (आईबी) के निदेशक राजीव जैन ने भी हिस्सा लिया।
इस खबर के सामने आने के बाद एक तरफ जहाँ सुरक्षा एजेंसियों ने अपनी सुरक्षा चाक-चौबंद की, वहीं दूसरी तरफ हमारी सियासी पार्टियों और खासकर कांग्रेस ने पीएम की सुरक्षा को लेकर सतही राजनीति शुरू कर दी, जैसा अबतक पहले कभी न देखा गया था, न सुना गया था।
ये सवाल कांग्रेस के नेताओं से पूछा जाना चाहिए कि जिसने मोदी को निशाना बनाने की साजिश रचने का काम किया, उसकी आलोचना उनकी तरफ से क्यों नहीं की जा रही ? तमाम विपक्षी दलों द्वारा प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश की खबर को लेकर राजनीतिक बयानबाजियां क्यों की जा रहीं ?
राजनीतिक दलों के बीच भले ही लाख राजनीतिक प्रतिद्वंदिता हो, लेकिन प्रधानमंत्री की सुरक्षा को राजनीति का विषय नहीं बनाया जा सकता है। प्रधानमंत्री किसी एक दल के नहीं होते, वे पूरे देश के होते हैं। इसमें संशय नहीं कि मोदी देश के सबसे लोकप्रिय नेता हैं और आतंकवाद व माओवाद को लेकर सख्त भी हैं। ऐसे में, माओवादियों द्वारा उनकी हत्या की योजना बनाना कोई बड़ी बात नहीं है।
क्या भारत में ऐसा पहली बार हो रहा है कि किसी बड़े नेता को निशाना बनाने की योजना बन रही हो। कम से कम कांग्रेस पार्टी को यह सोच नहीं रखनी चाहिए, जिसके दो नेताओं की इसी तरह हत्या इतिहास में दर्ज है, पूर्व प्रधानमत्री इंदिरा गांधी को उनके सुरक्षाकर्मियों ने ही गोली मार दी, वहीं राजीव गांधी को लिट्टे के सदस्यों ने तमिलनाडु में निशाना बनाया।
ऐसे इतिहास के बावजूद आज प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश के खुलासे पर कांग्रेस नेता संजय निरुपम द्वारा सभी सीमाओं को लांघते हुए इस पत्र को लोकप्रियता बटोरने के लिए खुद भाजपा द्वारा सामने लाया हुआ बता दिया गया। एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने इसे सहानुभूति का प्रयास बता दिया।
वहीं देश के गृह मंत्री रह चुके कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम मोदी इस खुलासे पर कहते हैं कि महाराष्ट्र पुलिस को जो पत्र मिला है, वो सत्यापित नहीं है। वे तंज करने में लगे हैं कि वो भारत सरकार का राजपत्र नहीं है कि उसके आधार पर किसीकी गिरफ्तारी कर ली जाए।
चिदंबरम साहब को बताना चाहिए कि क्या आतंकवादी, माओवादी उनके गृहमंत्रित्व के दौरान सत्यापित करके साजिशी पत्र जारी करते थे ? और अब क्या पुलिस को बिना कोई कार्रवाई किए इस पत्र के सत्यापन की प्रतीक्षा करनी चाहिए ? चिदंबरम के ही गृह मंत्री रहते हुए माओवादियों द्वारा बड़े-बड़े नरसंहार किए गए। ऐसे में आज वे माओवादियों की एक साजिश के खुलासे पर किस मुंह से ऐसी हल्की और तंज भरी प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे हैं।
महात्मा गांधी से लेकर इंदिरा गांधी, ललित नारायण मिश्रा, ललित माकन, राजीव गांधी, नगीना राय, बेअंत सिंह आदि तमाम राजनीतिक लोगों की हत्याएं की गई। क्या इनको पता था कि राजनीतिक साजिश के तहत इनकी हत्या की जाएगी ? या इनकी हत्या से पूर्व हत्यारों ने सूचना जारी की थी कि वे हत्या करने वाले हैं। इसके बावजूद कांग्रेस आदि विपक्षी दलों का प्रधानमंत्री मोदी की हत्या की साजिश के खुलासे पर राजनीतिक बयानबाजी करना शर्मनाक ही कहा जाएगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)