गरीबी, बेरोजगारी, असमानता पर वैश्वीकरण का असर इस बात पर निर्भर करता है कि आम जनता को कैसी शिक्षा दी जा रही है,आधारभूत ढांचा कैसा है और श्रम बाजार व अन्य संस्थाओं की स्थिति कैसी है। दरअसल शिक्षा श्रमिकों को अपने काम और कौशल के हिसाब से नए सिरे से समायोजित करना सिखा देती है। लैटिन अमेरिका में गरीबी उन्मूलन में श्रमिकों की कौशलसंपन्नता का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। चीन के वैश्विक विनिर्माण धुरी बनने में भी कुशल कामगारों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। दुर्भाग्यवश आजादी के बाद भारत में सर्वाधिक समय तक शासन में रही कांग्रेस सरकारों ने अपनी विशाल आबादी को संपदा के बजाए विपदा के रूप में देखा और लगातार ऐसे मशीनी विकास को बढ़ावा दिया जिसमें मानव श्रम का महत्व गौण होता गया। उदारीकरण के दौर में इस कुप्रवृत्ति में तेजी आई। इस दौरान भारत ने अच्छी विकास दर जरूर हासिल की लेकिन उससे अर्जित समृद्धि का समान वितरण नहीं हुआ। यही कारण है कि इस दौरान गरीबी, बेकारी, असमानता, गांवों से पलायन, नक्सलवाद जैसी समस्याएं तेजी से बढ़ीं। वैसे तो इसके लिए कई कारण जिम्मेदार हैं, लेकिन गहराई से विश्लेषण किया जाए तो इसके लिए सबसे बड़ी दोषी हमारी शिक्षा प्रणाली नजर आएगी। दरअसल हमारी शिक्षा प्रणाली बदलते जमाने के अनुरुप नए कौशल का प्रशिक्षण न देकर पुराने ढर्रे पर चल रही है। बढ़ती बेरोजगारी का कारण यही है। इसका सबसे बड़ा दुष्परिणाम यह हुआ कि भारत विदेशी सामानों का सबसे बड़ा उपभोक्ता बन गया। इसे विडंबना ही कहेंगे कि एक ओर हम विदेशी उपग्रहों को अपनी धरती से भेज रहे हैं तो दूसरी ओर दैनिक जीवन में काम आने वाले घरेलू सामानों के लिए विदेशों का मुंह ताकतें हैं।
प्रधानमंत्री मोदी का लक्ष्य देश में उचित कारोबारी माहौल बनाना है। आधारभूत ढाँचे में सुधार और विदेशी निवेश बढ़ाने के उपाय करने के बाद प्रधानमंत्री का सबसे ज्यादा बल लोगों को बदलते समय के अनुरूप कौशल संपन्न बनाने पर है ताकि देश की विशाल जनसंख्या विपदा के बजाए संपदा बने। इससे न सिर्फ हर हाथ को काम मिलेगा बल्कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा मानव संसाधन केंद्र बनकर भी उभरेगा। सबसे बढ़कर इससे गरीबी, बेकारी, असमानता, गांवों से पलायन, नक्सलवाद जैसी समस्याओं का स्थायी समाधान होगा।
अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछली कांग्रेस सरकारों की इस ऐतिहासिक भूल को सुधारने में जुटे हैं। उनका लक्ष्य देश में उचित कारोबारी माहौल बनाना है। आधारभूत ढाँचे में सुधार और विदेशी निवेश बढ़ाने के उपाय करने के बाद प्रधानमंत्री का सबसे ज्यादा बल लोगों को बदलते समय के अनुरूप कौशल संपन्न बनाने पर है ताकि देश की विशाल जनसंख्या विपदा के बजाए संपदा बने। इससे न सिर्फ हर हाथ को काम मिलेगा बल्कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा मानव संसाधन केंद्र बनकर भी उभरेगा। सबसे बढ़कर इससे गरीबी, बेकारी, असमानता, गांवों से पलायन, नक्सलवाद जैसी समस्याओं का स्थायी उपाय होगा। स्पष्ट है कि हमें गरीबी-बेरोजगारी-असमानता के लिए उदारीकरण-निजीकरण को दोषी ठहराने के बजाए उन्हें लागू करने के तरीके में जो कमियां रह गईं हैं, उन्हें दूर करना होगा। इसी उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी देश के युवाओं को कौशल संपन्न बनाने का अभियान छेड़े हुए हैं। इसमें सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यम मंत्रालय की महत्वपूर्ण भूमिका है।
देश में सवा करोड़ नए लोग हर वर्ष कार्यबल में शामिल होते हैं, लेकिन इनमें से 4 प्रतिशत को ही किसी प्रकार का प्रशिक्षण मिल पाता है। दूसरी ओर चीन में 46, जर्मनी में 74 और कोरिया में 96 प्रतिशत श्रमिक प्रशिक्षित होते हैं। इन देशों में पिछले 50-60 वर्षों में सरकार व उद्योगों के प्रयास से ही वहां की श्रम शक्ति कौशल संपन्न बनी है। देश में कौशल विकास के पूर्व के अनुभवों के आधार पर देखें तो 2022 तक 40 करोड़ युवाओं को कौशल संपन्न बनाना असंभव नहीं तो चुनौतीपूर्ण कार्य जरूर है।
युवाओं को कौशल संपन्न बनाने के लिए सरकार ने 31 जुलाई 2014 को कौशल विकास और उद्यमिता विभाग का गठन किया गया जिसे बाद में बदलकर 9 नवंबर 2014 को एक पूर्ण मंत्रालय में बदल दिया गया। राष्ट्रीय कौशल विकास एजेंसी, राष्ट्रीय कौशल विकास निगम, राष्ट्रीय कौशल विकास कोष व 33 क्षेत्रीय कौशल परिषदों को इस मंत्रालय के अधीन शामिल किया गया है। मंत्रालय का मुख्य कार्य देश भर में कौशल विकास प्रयासों पर सहयोग, कुशल श्रमशक्ति की मांग व आपूर्ति के बीच अंतर को दूर करना और कौशल विकास को बढ़ावा देना ताकि उद्यमिता को प्रोत्साहन मिले। प्रधानमंत्री द्वारा शुरू की गई कौशल विकास योजना का एक प्रमुख अंग है भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों, भारतीय प्रबंधन संस्थानों, केंद्रीय विश्वविद्यालयों व अन्य 4,000 उच्च शिक्षाण संस्थानों में एक से छह माह के तकनीकी व वोकेशनल कोर्स चलाया जाना। इसके अलावा कौशल विकास प्रशिक्षण के लिए पांच हजार रूपये से डेढ़ लाख रूपये तक के कर्ज भी दिए जाएंगे। दरअसल अनुमान है कि 2022 तक अर्थव्यवस्था के 24 क्षेत्रों में 11 करोड़ अतिरिक्त जनशक्ति की जरूरत होगी। कौशल विकास मंत्रालय के अतिरिक्त भारत सरकार के कई और मंत्रालय व विभाग युवाओं को कौशल संपन्न बनाने का कार्यक्रम आयोजित करते हैं ताकि देश में उद्यमशीलता का वातावरण निर्मित हो।
समग्रत: देश की 65 प्रतिशत जनसंख्या का 35 साल से कम उम्र का होना एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है लेकिन इसका असली लाभ तभी मिलेगा जब इसे दक्ष व हुनरमंद बनाया जाए। ज्यादातर पिछली सरकारों द्वारा इस दिशा में जो प्रयास हुए हैं, वे आधू-अधूरे मन से किए गए हैं। यही कारण है कि इंजीनियरों की बड़ी फौज रखने वाला देश प्रतिभाओं की कमी से जूझ रहा है। अत: हमें चीन की भांति दक्षता निर्माण की नीति पर चलना होगा, जिसका लक्ष्य न केवल घरेलू बल्कि पूरी दुनिया के बाजार में पैठ बनाना हो। इससे न केवल देश का समावेशी विकास होगा बल्कि गरीबी, बेकारी, असमानता, गांवों से पलायन जैसी समस्याओं का अपने आप समाधान हो जाएगा। संतोषजनक यह है कि केंद्र की वर्तमान मोदी सरकार इस दिशा में गंभीरतापूर्वक कदम बढ़ा रही है।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)