मोदी सरकार के फैसलों के आ रहे नतीजों पर वित्त मंत्रालय का कहना है कि लॉकडाउन शुरू होने के साथ ही लोगों की जान बचाने के लिए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना और फिर ‘जान के साथ जहान भी’ के लक्ष्य के साथ आत्मनिर्भर भारत के तहत 20 लाख करोड़ का जो राहत पैकेज दिया गया है, उसका असर अब दिखने लगा है।
लॉकडाउन शुरू होने के साथ ही केंद्र सरकार द्वारा जिस तरह देश की अर्थव्यवस्था को बचाने और आम नागरिक को आत्मनिर्भर बनाने के लिए तमाम प्रयास किए गए थे, अब इसका असर दिखने लगा है। जगजाहिर है कि थम चुकी जिंदगियों को दुबारा पटरी पर लाने के लिए मोदी सरकार ने युद्ध स्तर पर काम किया।
आम जनता और कारोबारियों की परेशानियों को समझते हुए तमाम तरह के फैसले लिए गए। कई मामलों में तो सरकार के कठोर कदमों की निंदा भी की गई। लेकिन उन निर्णयों का ही यह अंजाम है कि देश की अर्थव्यवस्था अब पटरी पर आती नज़र आ रही है।
यह आत्मनिर्भरता कृषि से लेकर मैन्यूफैक्चरिंग तक में देखने को मिल रही है। यही नहीं, सेवा क्षेत्र से जुड़ी कड़ियों में भी सुगबुगाहट तेज हो गई है। इसका संकेत इस आधार पर भी मिलता है कि पहले की तुलना में ई-वे बिल के मूल्य में 130 फीसद की बढ़ोत्तरी हुई है। इस साल मई में 8.98 लाख करोड़ के ई-वे बिल जेनेरेट हुए जबकि अप्रैल में सिर्फ 3.9 लाख करोड़ के ई-वे बिल थे।
मोदी सरकार के फैसलों के आ रहे नतीजों पर वित्त मंत्रालय का कहना है कि लॉकडाउन शुरू होने के साथ ही लोगों की जान बचाने के लिए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना और फिर ‘जान के साथ जहान भी’ के विचार के साथ आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य के तहत 20 लाख करोड़ का जो राहत पैकेज दिया गया है, उसका असर अब दिखने लगा है।
यही नहीं, वित्त मंत्रालय की तरफ से जारी किए गए आंकड़ों में भी यह स्पष्ट नज़र आ रहा है कि मई में पेट्रोलियम उत्पाद की खपत में अप्रैल के मुकाबले 47 फीसद की बढ़ोत्तरी हुई है। वहीं, पिछले साल से तुलना की जाए तो बिजली की खपत में होने वाली गिरावट में भी कमी नज़र आ रही है। इस साल अप्रैल में बिजली की खपत में पिछले साल अप्रैल के मुकाबले 24 फीसद की गिरावट दर्ज की गई थी जो मई में 15 फीसद तक रह गई। जबकि 21 जून तक यह गिरावट 12.5 फीसद के स्तर पर पहुंच गई।
अब बात किसानों के फायदे की करें तो सरकार की तरफ से इस साल 16 जून तक 382 लाख टन गेहूं की रिकॉर्ड खरीददारी सीधा किसानों से की गई। सरकार की इस खरीददारी से करीब 42 लाख किसानों को सीधा फायदा हुआ। यही नहीं, उन्हें सरकारी खाते से न्यूनतम समर्थन मूल्य के रूप में 73,500 करोड़ रुपये बांटे गए।
किसानों के पक्ष में हुए मुनाफों को अधिक विस्तार से देखें तो खरीफ की बोआई में पिछले साल के मुकाबले इस साल 19 जून तक 39 फीसद की बढ़ोत्तरी देखने को मिली है। यह बड़ी उपलब्धी मानी जा सकती है। इसके अलावा लॉक डाउन के बाद मई की मैन्यूफैक्चरिंग में भी अप्रैल के मुकाबले गिरावट में कमी आई है।
ये तो हुई बात किसानों और मैन्यूफैक्चरिंग के क्षेत्र की। अब यदि सेवा क्षेत्र में बढ़ोत्तरी पर नजर डालें तो इसका अंदाजा देश के अलग-अलग स्थानों के मौजूद टोल कलेक्शन, डिजिटल भुगतान और रेलवे फ्रेट की वसूली में आई तेजी से लगाया जा सकता है। वित्त मंत्रालय के डेटा के अनुसार, इस साल अप्रैल महीने में जहां 6.54 करोड़ टन माल की ढुलाई की गई थी, वहीं मई में बढ़कर 8.26 करोड़ टन की माल ढुलाई की गई। जो निश्चित रूप से ध्यान खींचने वाली है।
टोल कलेक्शन पर गौर करें तो अप्रैल में यह आंकड़ा केवल 8.25 करोड़ रुपये का रहा था। लेकिन लॉक डाउन खुलने के बाद मई में यह तेजी से बढ़ा और आंकड़ा बढ़कर 36.84 करोड़ रुपये का हो गया। जबकि जून के पहले तीन सप्ताह में यह और तेजी से बढ़ा और 49.8 करोड़ रुपये के आंकड़े तक पहुंच गया।
इसके अलावा, खुदरा खरीददारी में प्रयोग किए गए डिजिटल ट्रांजेक्शन का आंकड़ा भी चौकाने वाला रहा। दरअसल अप्रैल में खुदरा खरीदारी के लिए 6.71 लाख करोड़ रुपये का डिजिटल ट्रांजेक्शन किया गया। लेकिन जब यह आंकड़ा मई में बढ़कर 9.65 लाख करोड़ के स्तर पर पहुंच गया तब यह तय हो गया कि खुदरा बाजार भी तेजी से रफ्तार पकड़ रहा है।
यही नही, इसका असर शेयर बाजार पर भी दिखने लगा है। शेयर बाजार में भारतीय कंपनियों और बैंकों के शेयरों में तेजी देखने को मिल रही है, जिनमें बजाज फाइनेंस, इंडसइंड बैंक, एनटीपीसी, पावरग्रिड, एमएंडएम और एक्सिस बैंक के शेयर में तेजी आई है। सेक्टर के हिसाब से बताएं तो पावर, कैपिटल गुड्स, यूटिलिटी, रियल्टी और बैंकिंग में बढ़त देखने को मिल रही है।
विशेषज्ञ बता रहे हैं कि भारत में अन्य देशों की तुलना में घरेलू शेयर बाजार में बढ़त देखने को मिल रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि लोगों का सरकार पर भरोसा बढ़ा है जिसका असर निवेशकों पर भी देखने को मिल रहा है। बताते चलें कि यह बढ़त चीन, हांगकांग, दक्षिण कोरिया और जापान के शेयर बाजार से अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों द्वारा बेहतर बताई जा रही है।
यदि अन्य देशों की तुलना में भारत के आर्थिक पैकेज की बात की जाए तो इसे भी अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञ बेहतर बता रहे हैं। भारत में आर्थिक सुधार के पैकेज के संबंध में मुख्य आर्थिक सलाहकार का कहना है कि अन्य देशों की तुलना में भारतीय पैकेज कई मामलों में बेहतर हैं। उन्होंने बताया कि इंग्लैंड ने भले अपनी जीडीपी के 15 फीसद के बराबर का पैकेज दिया लेकिन वित्तीय उपाय महज 3.5 फीसद का था।
जबकि बाकी का हिस्सा लिक्विडिटी सपोर्ट, ऋण आदि के लिए था। वहीं भारत में जन वितरण प्रणाली का प्रयोग किया गया जिससे भारत में गरीबों व जरूरतमंदों तक खाद्यान्न के लिए भी धन वितरण हुआ। यही वजह है कि दुनियाभर के देश व संस्थान भारतीय आर्थिक पैकेज की तारीफ कर रहे हैं।
हालांकि कोरोना संक्रमण के दौरान केंद्र सरकार के देश व्यापी कठोर लॉक डाउन और उसके बाद नागरिकों में राहत कार्य से जुड़े तमाम निर्णयों को कांग्रेस व अन्य वाम पार्टियां गलत ठहराती रही हैं। लेकिन देश के विकास दर के आंकड़ों ने जिस तरह रफ्तार पकड़ी है उससे इन सभी के सवालों का मुंह बंद हो गया है। हालांकि केंद्र सरकार की कई योजनाएं अभी भी युद्ध स्तर पर कार्यरत हैं जिसका सकारात्मक असर निश्चित रूप से जल्द ही देश को देखने को मिलेगा।
(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)