कभी आतंकी याकूब मेमन की फांसी को रोकने के लिए रतजगा करने वाले प्रशांत भूषण ने उत्तर प्रदेश में एंटी-रोमियो स्क्वाड का विरोध करते हुए भगवान श्रीकृष्ण पर आपत्तिजनक टिप्पणी की है। हालांकि उनकी यह टिप्पणी मुझे अधिक हैरान नहीं करती, क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण ने अपने जीवनकाल में अनेक आतंकवादियों (राक्षसों) का वध किया था, इसलिए बहुत स्वाभाविक है कि याकूब मेमन जैसे आतंकवादियों के बचाव में उतरने वाले प्रशांत भूषण उनके व्यक्तित्व को पसंद न करें।
ये श्रीकृष्ण पर आपत्तिजनक टिप्पणी करेंगे, गोमांस खाते हुए जुलूस निकालेंगे, कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग मानने से इनकार करेंगे, सेना को बलात्कारी बताएंगे, आतंकवादियों के समर्थन में खड़े हो जाएंगे, अफ़ज़ल और याकूब मेमन की फांसी रुकवाने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा देंगे, देश के टुकड़े-टुकड़े करने का सपना देखने वालों की आज़ादी की लड़ाई लड़ेंगे, तो इस देश में अपने आप सांप्रदायिक आधार पर एक ध्रुवीकरण शुरू हो जाता है, जो भाईचारा चाहने वाले हम जैसे लोगों को बेचैन कर देता है।
रोमियो कोई ऐतिहासिक पात्र नहीं है, इसलिए एंटी रोमियो स्क्वाड का नामकरण किसी को ग़लत भी लगता हो, तो इससे किसी की अवमानना तो नहीं होती। और तो और, अगर इस स्क्वाड का नाम “एंटी-मजनूं स्क्वाड” भी रखा जाता, तो नफ़रत के ये सौदागर उस पर भी बवाल करते और प्रचारित करते कि इसे एक ख़ास अल्पसंख्यक समुदाय के ख़िलाफ़ बनाया गया है। इस अभियान की मूल भावना देखी जानी चाहिए और इसका इम्प्लीमेंटेशन कैसा है, यह देखा जाना चाहिए। अगर इसमें कुछ गड़बड़ हो रही है, तो इस आधार पर अभियान और सरकार की आलोचना भी की जा सकती है, लेकिन महज इसके नाम को लेकर एक समुदाय की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना एक सोची-समझी शैतानी साज़िश का हिस्सा प्रतीत होता है।
“एंटी-रोमियो” नाम अलग विषय है, लेकिन इसकी आड़ में किसी को किसी भी धर्म के देवी-देवताओं के बारे में अनुचित टिप्पणियां करने का लाइसेंस कैसे मिल सकता है? वैसे भी रोमियो कोई ऐतिहासिक पात्र नहीं है, इसलिए अगर यह नामकरण किसी को ग़लत भी लगता हो, तो इससे किसी की अवमानना तो नहीं होती। और तो और, अगर इस स्क्वाड का नाम “एंटी-मजनूं स्क्वाड” भी रखा जाता, तो नफ़रत के ये सौदागर उस पर भी बवाल करते और प्रचारित करते कि इसे एक ख़ास अल्पसंख्यक समुदाय के ख़िलाफ़ बनाया गया है। इस अभियान की मूल भावना देखी जानी चाहिए और इसका इम्प्लीमेंटेशन कैसा है, यह देखा जाना चाहिए। अगर इसमें कुछ गड़बड़ हो रही है, तो इस आधार पर अभियान और सरकार की आलोचना भी की जा सकती है, लेकिन महज इसके नाम को लेकर एक समुदाय की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना एक सोची-समझी शैतानी साज़िश का हिस्सा प्रतीत होता है।
भगवान श्रीकृष्ण का लड़कियों (गोपियों) से छेड़खानी करने की बात एकदम असत्य और अर्थहीन है। चूंकि उनके पात्र की कल्पना एक ईश्वर के रूप में की गई है, इसलिए नर-नारी, पशु-पक्षी सभी उनके दीवाने थे। उनका व्यक्तित्व ऐसा मोहक था कि तमाम मां-बाप उन जैसी संतान और लड़कियां उन जैसे पति की कामना करती थीं। आधुनिक भाषा में इसे उनकी फैन फॉलोइंग कहा जा सकता है। जैसे आजकल सितारों की फैन फॉलोइंग होती है। देवानंद, अमिताभ बच्चन, राजेश खन्ना से लेकर गावस्कर, कपिलदेव, सचिन तेंदुलकर और विराट कोहली तक। अपने-अपने समय में इन सबकी लाखों लड़कियां दीवानी रही हैं और अब भी हैं, तो इससे ये लोग “ईव-टीज़र” हो जाते हैं क्या? ये लोग तो किसी एक कला के मास्टर हैं, भगवान श्रीकृष्ण के बारे में कहा जाता है कि वे सोलह कलाओं के स्वामी थे। ज़ाहिर है, उनकी फैन फॉलोइंग और भी बड़ी होगी।
जिन सोलह हज़ार एक सौ आठ पत्नियों वाले प्रसंग को लेकर अक्सर प्रशांत भूषण जैसे अज्ञानी लोग तंज़ कसा करते हैं, उनमें से सोलह हज़ार एक सौ राजकुमारियां उस वक्त के कुख्यात आतंकवादी (राक्षस) नरकासुर की कैद में थीं। श्रीकृष्ण ने उन्हें उनकी कैद से मुक्त कराया और उन सबने उन्हें अपना पति (स्वामी) मान लिया। इस प्रसंग में पति का आशय मूल रूप से स्वामी, रक्षक, मालिक, दाता, राजा, दयालु या कृपालु होने से ही है। “पति” एक व्यापक अर्थ वाला शब्द है। यह अंग्रेज़ी के “Husband” का अनुवाद नहीं है। अगर भगवान गणेश को गणपति, इंद्र को सुरपति, शेर को मृगपति, हिमालय को नगपति और राजा को भूपति कहा गया है, तो प्रशांत भूषण जैसे अज्ञानी इसका अर्थ कुछ यूं लगा सकते हैं कि भगवान गणेश सभी गणों के हसबैंड थे, इंद्र जी सभी देवताओं के हसबैंड थे, शेर हिरणों का हसबैंड होता है, हिमालय नगों (कीमती पत्थरों या पहाड़ों) का हसबैंड होता है और राजा धरती का हसबैंड होता है। नरकासुर, बंदी राजकुमारियों और कृष्ण वाले प्रसंग को लेकर प्रशांत भूषण की टीस दरअसल यह है कि कृष्ण ने उस आततायी आतंकवादी के साम्राज्य को चुनौती क्यों दी और उसका वध क्यों किया? अगर प्रशांत भूषण उस दौर में होते, तो वे नरकासुर की जान बचाने के लिए श्रीकृष्ण के ख़िलाफ़ वैसे ही अभियान चलाते, जैसे इन दिनों उन्होंने आतंकवादी अफ़ज़ल गुरु और याकूब मेमन को बचाने के लिए चलाया था।
ईव टीज़र वह होता है, जो लड़कियों से छेड़खानी करे। छे़ड़खानी मतलब ही है कि इसमें लड़की की मर्ज़ी नहीं होती और लड़के की तरफ़ से एकतरफ़ा उसे परेशान किया जाता है। श्रीकृष्ण के ख़िलाफ़ प्रशांत भूषण एक भी ऐसा प्रसंग बता दें, जिसमें लड़कियों ने उनसे परेशान होकर उनके आचरण की शिकायत की हो। क्या किसी “ईव-टीज़र” के प्रति समाज में वैसी दीवानगी हो सकती है, जैसी श्रीकृष्ण के लिए बताई जाती है? ज़ाहिर है, वकील होकर भी प्रशांत भूषण को या तो “ईव-टीज़र” शब्द का अर्थ ही नहीं मालूम है या फिर वे समाज के असली “ईव-टीज़र्स” को बचाना चाहते हैं, उन्हें भगवान कृष्ण जैसा बताकर। आख़िर आतंकवादियों की वकालत करने वाले प्रशांत भूषण से इसके सिवा और अपेक्षा भी क्या की जा सकती है?
प्रशांत भूषण के बारे में कुछ और बातें समझ लेना ज़रूरी है। ये इतने ईमानदार हैं कि जनलोकपाल वाली पांच लोगों की कमेटी में पिता-पुत्र दोनों बैठ गए। बाप-बेटे दोनों की सैंकड़ों करोड़ की वैध-अवैध संपत्ति है, जिनपर उंगलियां भी उठती रही हैं। आम आदमी पार्टी बनाई, लेकिन केजरीवाल ने पार्टी से निकाल दिया। फिर योगेंद्र यादव के साथ स्वराज पार्टी बनाई, लेकिन इस पार्टी का कोई भविष्य नहीं है। इसकी आड़ में थोड़ा चंदा इकट्ठा करना और थोड़ी टैक्स चोरी करना- यही उनका मकसद है, वरना वे भी जानते हैं कि चुनाव में उतरे तो अपनी ज़मानत ज़ब्त कराने का रिकॉर्ड बनाएंगे।
यानी यह सुपर-फ्लॉप नेता भारी फ्रस्ट्रेशन में है। चर्चा में बने रहने के लिए सस्ती पब्लिसिटी चाहिए। लेकिन देश की सेना को गाली देंगे, तो लोग अब बर्दाश्त करेंगे नहीं। केजरीवाल को गाली देंगे, तो कोई सुनेगा नहीं। योगेंद्र यादव को गाली देंगे, तो बुद्ध की तरह वे उन्हें ही वापस लौटा देंगे। इसलिए गाली देने के लिए इस बार उन्हें कोई ऐसा नाम चाहिए था, जो सीधा लोगों के दिल पर चोट करे। बदनामी से नाम कमाना उनका आजमाया हुआ प्रयोग है। इस प्रयोग से उन्हें बार-बार पब्लिसिटी मिल ही जाती है। इसी पब्लिसिटी से उनका धंधा चमकता है।
ज़ाहिर है, शर्म वाली उनकी ग्रंथि इतनी भोथरी हो चुकी है कि बार-बार फजीहत कराकर भी वे अपना आचरण सुधारने को तैयार नहीं हैं। अब उन्हें तो अभिव्यक्ति की आज़ादी है, लेकिन अगर कोई उनके इस बयान की आलोचना करे, तो इसे वे असहिष्णुता का महा-विस्फोट बताएंगे। बीजेपी और आरएसएस को गालियां देंगे। मोदी और योगी को कोसेंगे। कहना न होगा कि प्रशांत भूषण जैसे लोगों ने अपनी सस्ती लोकप्रियता के लिए ग़ज़ब का वैचारिक प्रदूषण फैला रखा है।
(लेखक पेशे से पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)