चुनाव नतीजों से पहले अगर बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने धूमल के नाम को आगे बढ़ाया, तो उसके पीछे उनके पिछले राजनीतिक अनुभवों का ज्यादा हाथ रहा। वहीं दूसरी तरफ, कांग्रेस पार्टी ने राज्य में चुनाव की कमान वीरभद्र सिंह को सौंप दी है, तो इसके पीछे पार्टी की मजबूरी ज्यादा दिखती है। ऐसी भी चर्चा है कि कांग्रेस चाहती थी कि वीरभद्र सिंह को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार नहीं बनाया जाए, लेकिन उनकी पार्टी तोड़ने की धमकियों के सामने पार्टी को झुकना पड़ा।
हिमाचल प्रदेश के मतदाताओं की एक खासियत रही है कि हर पांच साल के बाद वे सरकार बदल देते हैं। 9 नवम्बर को होने वाले चुनाव के लिए बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों ने पूरी ताक़त झोंक दी है। हिमाचल में बीजेपी की कमान प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रह चुके प्रोफेसर प्रेम कुमार धूमल के हाथों में है, वहीं कांग्रेस के चुनावी अभियान की अगुवाई 83 वर्षीय वीरभद्र सिंह कर रहे हैं। बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार प्रेम कुमार धूमल की छवि विकासवादी राजनीति करने वाले नेता की रही है। गौर करें तो बीजेपी शासन में हिमाचल का सकल घरेलू उत्पाद 7-8 प्रतिशत रहा है तथा उद्योग, शिक्षा, स्वास्थ्य और कृषि के क्षेत्र में हिमाचल का खूब विकास हुआ है।
चुनाव नतीजों से पहले अगर बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने धूमल के नाम को आगे बढ़ाया, तो उसके पीछे उनके पिछले राजनीतिक अनुभवों का ज्यादा हाथ रहा। वहीं दूसरी तरफ, कांग्रेस पार्टी ने राज्य में चुनाव की कमान वीरभद्र सिंह को सौंप दी है, तो इसके पीछे पार्टी की मजबूरी ज्यादा दिखती है। ऐसी भी चर्चा है कि कांग्रेस चाहती थी कि वीरभद्र सिंह को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार नहीं बनाया जाए, लेकिन उनकी पार्टी तोड़ने की धमकियों के सामने पार्टी को झुकना पड़ा।
83 साल के वीरभद्र सिंह छह बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और अपनी ज़िन्दगी की एक महत्वपूर्ण लड़ाई लड़ रहे हैं। भ्रष्टाचार के कई मुकदमें झेल रहे वीरभद्र मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार और पार्टी के स्टार प्रचारक भी हैं, उनके लिए सबसे बड़ी प्राथमिकता है कि ज़िन्दगी के इस पड़ाव पर वह अपनी राजनीतिक विरासत को कैसे बचाएँ? अपनी रैलियों में वीरभद्र आक्रामक नहीं दिखते हैं। शायद उन्हें अभी इस बात की आशंका है कि सरकार जाने की सूरत में तमाम भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों का क्या नतीजा होगा?
बीजेपी ने जिस दिन प्रोफेसर प्रेम कुमार धूमल को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया, उस दिन से हिमाचल चुनाव की ज़मीनी हकीकत काफी बदल गई है। बीजेपी के अन्दर नेतृत्व को लेकर जो असमंजस की स्थिति थी, उसको पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने समय रहते ही दुरुस्त कर दिया। प्रेम कुमार धूमल की छवि एक ऐसे नेता की रही है, जो सभी तबकों को साथ लेकर चलने में विश्वास रखते हैं साथ ही लोगो के बीच घुलने-मिलने में भी धूमल बहुत ही सहज रहते हैं।
विकास को लेकर धूमल की प्रतिबद्धता की वजह से उनको हिमाचल में “सड़कों वाले बाबा” के नाम से भी जाना जाता है। धूमल के पक्ष में एक और महत्वपूर्ण तथ्य है कि वह राजपूत समुदाय से आते हैं, जो हिमाचल प्रदेश की आबादी का 28 फ़ीसद हिस्सा है। धूमल को हिमाचल की दूसरी जातियों के बीच भी स्वीकार किया जाता है।
वहीं दूसरी तरफ बीजेपी की तरफ से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चुनावी मोर्चे पर लगातार कांग्रेस को घेरने का प्रयास किया है। चुनाव प्रचार के आखिरी दिनों में राहुल गाँधी ने कुछ रैलियाँ की हैं, लेकिन कांग्रेस की रैलियों में ऊर्जा का अभाव देखने को मिला है। इसकी एक वजह यह भी है कि कांग्रेस अपनी ज्यादा ताक़त हिमाचल की बजाय गुजरात में झोंक रही हैं, क्योंकि हिमाचल से कांग्रेस को शायद बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं है।हिमाचल में राजनीतिक विश्लेषक मान रहे कि प्रोफेसर धूमल के मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाए जाने के बाद से प्रदेश में नेतृत्व को लेकर अनिश्चितता ख़त्म हो गई है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)