आजादी के बाद से ही कांग्रेसी सरकारों ने पूर्वोत्तर भारत के मन को समझने का प्रयास नहीं किया। इतना ही नहीं, इस संवेदनशील क्षेत्र में सरकारें अलगाववादी गुटों को बढ़ावा देकर राजनीतिक रोटी सेंकने से भी बाज नहीं आई। आजादी के बाद पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्वोत्तर को शेष भारत से एकाकार करने के लिए ठोस जमीनी उपाय करने की दिशा में ध्यान दिया है।
आजादी के बाद से ही पूर्वोत्तर भारत अलगाववाद, आतंकवाद, गरीबी, बेरोजगारी, पलायन से जूझता रहा लेकिन सरकारों ने यहां की जमीनी समस्या को समझने का कभी प्रयास नहीं किया। 1947 से पहले पूर्वोत्तर की स्थिति ऐसी नहीं थी। उस समय पूर्वोतर का समूचा आर्थिक तंत्र चटगांव बंदरगाह से जुड़ा हुआ था लेकिन पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के निर्माण से यहां के उत्पादों के लिए कोलकाता बंदरगाह का ही सहारा बचा जो कि बहुत दूर होने के साथ-साथ व्यस्त भी है।
इसका नतीजा यह हुआ कि पूर्वोंत्तर के समृद्ध हस्तशिल्प और बागवानी उत्पादों (अनानास, आलू बुखारा, आड़ू, खुबानी, आम, केला और नाशपत्ती) बाजार के अभाव में दम तोड़ने लगे। इससे अलगाववाद, आतंकवाद, गरीबी को उर्वर भूमि मिली।
2014 में प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूर्वोत्तर की समस्या के स्थायी समाधान में जुट गए। प्रधानमंत्री ने अपनी “एक्ट ईस्ट” नीति को पूर्वोत्तर भारत के विकास से जोड़ दिया। दरअसल प्रधानमंत्री इस बात को समझ गए थे कि पूर्वोत्तर में समृद्धि की बहार तभी आएगी जब भारत सरकार यहां के उत्पादों के लिए दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में निकासी मार्ग ढूंढ़ ले। इसीलिए मोदी सरकार विभाजन पूर्व रेल संपर्कों को बहाल करने के साथ-साथ पूर्वोत्तर राज्यों की राजधानियों को ब्रॉडगेज रेल लाइन से जोड़ रही है।
2020 तक रेल लाइन इंफाल पहुंचेगी जिसे बाद में म्यांमार के मोरेह और तामू तक बिछाया जाएगा। सरकार रेलमार्गों का विद्युतीकरण और हाई स्पीड नेटवर्क बनाने पर भी काम कर रही है। बांग्लादेश के साथ रेल संपर्क एक्ट ईस्ट की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा। आज की तारीख में अगरतल्ला पूरे रेल, सड़क और हवाई मार्ग से जुड़ा है।
अगरतल्ला-अखौरा रेल लिंक शुरू होने के बाद कोलकाता और अगरतल्ला के बीच की दूरी 31 घंटे के बजाए महज 10 घंटे में पूरी हो जाएगी। सरकार का पूरा जोर चटगांव-माकुम रेल लाइन बनाने पर है। इससे चटगांव बंदरगाह पूर्वोत्तर राज्यों के लिए मुख्य बंदरगाह की तरह काम करने लगेगा। इससे पूर्वोत्तर ही नहीं पूर्वी भारत के उत्पाद भी आसानी से दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में पहुंचने लगेंगे।
सरकार सड़क मार्गों के विकास पर भी ध्यान दे रही है। भारत माला परियोजना के तहत पूर्वोत्तर राज्यों में 5300 किलोमीटर सड़कें निर्माणाधीन हैं। 2023 तक 90 प्रतिशत सड़कें पूरी हो जाएंगी। पूर्वोत्तर को दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ जोड़ने में सबसे महत्वपूर्ण कदम है भारत-म्यांमार-थाईलैंड सुपर हाईवे। 3200 किलोमीटर लंबा यह हाइवे मोरेह (मणिपुर) से शुरू होकर म्यांमार के मांडले व यंगून होते हुए मेसोट (थाइलैंड) को जोड़ेगा।
विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक के सहयोग से बनने वाला यह हाईवे पूर्वोत्तर राज्यों को दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों से जोड़ने के साथ-साथ व्यापार, निवेश, रोजगार जैसे कई फायदे देगा। इससे पूर्वोत्तर के कृषि, बागवानी, खाद्य प्रसंस्करण, इंजीनियारिेंग वस्त्र और दवा उद्योग की आसियान देशों तक आसान पहुंच बन जाएगी। सरकार हवाई यातायात को भी बढ़ावा दे रही है। पूर्वोत्तर के हवाई अड्डों के उन्नयन के साथ-साथ इंफाल, बागडोगरा, गुवाहाटी हवाई अड्डों का विस्तार किया जा रहा है ताकि यहां से अंतराष्ट्रीय उड़ाने संचालित की जा सकें।
चूंकि पूर्वोत्तर सांस्कृतिक-आर्थिक दृष्टि से दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के साथ गहराई से जुड़ा रहा है इसलिए रेल, सड़क, हवाई और जलमार्ग संपर्क बढ़ने से यहां समृद्धि की जो फसल लहलहाएगी उससे न सिर्फ अलगाववाद, आतंकवाद का खात्मा होगा बल्कि शेष भारत भी “चिकन नेक सिंड्रोम” से बाहर निकलेगा।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)