जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बोलते हैं तो देश ही नहीं अपितु दुनिया के कान उनके वक्तव्य पर टिके होते हैं। मोदी को चाहने वाले ही नहीं, अपितु उनके आलोचक भी अत्यंत ही ध्यानपूर्वक उन्हें सुनते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की संवाद शैली का असर है कि रेडियो फिर से जनमाध्यम बन गया। ‘मन की बात’ सुनने के लिए गाँव-शहर में चौपालें लगती हैं। वे जब विदेश में जाते हैं तो प्रवासी भारतीय उनको सुनने के लिए आतुर हो जाते हैं। विदेशों में भारतीय राजनेता को सुनने के लिए इतनी भीड़ कभी नहीं देखी गई है।
सार्वजनिक जीवन में संवाद कला का बहुत महत्व है। व्यक्तिगत स्तर और छोटे समूह में लोगों को आकर्षित करना एवं उन्हें अपने से सहमत करना अपेक्षाकृत आसान होता है। किंतु, जन (मास) को अपने विचारों से सहमत करना और अपने प्रति उसका विश्वास अर्जित करना कठिन बात है। जो लोग संवाद कला को साध लेते हैं, वे जनसामान्य से जुड़ जाते हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संवाद कला को सिद्ध कर लिया है। वे असाधारण वक्ता और प्रभावी संचारक हैं। प्रधानमंत्री मोदी संचार के 7-सी के सिद्धांत को जीते हैं। संचार के विशेषज्ञ फ्रांसिस बेटजिन ने बताया है कि 7-सी के सिद्धांत का उपयोग कर संचारक बहुत ही सरलता और प्रभावी ढंग से जन (मास) के मस्तिष्क में अपनी बात (संदेश) को पहुंचा सकता है। बहुत बड़े जनसमुदाय से अपनत्व स्थापित कर सकता है।
इस सिद्धांत के मुख्य तत्वों- स्पष्टता, संदर्भ, निरंतरता, विश्वसनीयता, विषय वस्तु, माध्यम और पूर्णता, की झलक प्रधानमंत्री मोदी के भाषण में रहती है। प्रधानमंत्री मोदी जो संदेश देना चाहते हैं, समाज तक वह संदेश स्पष्ट रूप से पहुँचता है। वह अपनी बात को संदर्भ के साथ प्रस्तुत करते हैं, इससे लोगों को उनका संदेश समझने में आसानी होती है और उसमें रुचि भी जाग्रत होती है। वह अपनी बात को निरंतरता और पूर्णता के साथ कहते हैं।
किस तरह की बात करने के लिए कौन-सा माध्यम उपयुक्त है, यह भी वह भली प्रकार जानते हैं। युवाओं के साथ संवाद करना है तो वह नवीनतम तकनीक का उपयोग करते हैं। सोशल मीडिया के सभी मंच और नमो एप के माध्यम से वह तकनीक के साथ जीने वाली नयी पीढ़ी से संवाद करते हैं तो इस पीढ़ी को मोदी अपने निकट नजर आते हैं। सुदूर क्षेत्रों में संवाद करना है तो वह रेडियो को चुनते हैं। अहिंदी क्षेत्रों में क्षेत्रीय भाषा में अपने भाषण की शुरुआत कर, वहाँ उपस्थित जनता का अभिवादन कर वह उनका दिल जीत लेते हैं।
यही कारण है कि उनको चाहने वाले लोग गुजराती और उत्तर भारत में ही नहीं, वरन भारत के दूसरे क्षेत्रों में भी समानुपात में हैं। कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी किसी कुशल संचारक की तरह प्रभावी संचार के सभी तत्वों को ध्यान में रखकर जन संवाद करते हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की यात्रा को नजदीक से देखते हैं तो हमें ध्यान आता है कि आज वह जिस शिखर पर हैं, वहाँ पहुँचने में उनकी संवाद शैली की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रही है। भारतीय राजनीति को लंबे समय बाद ऐसा राजनेता मिला है, जिसके संबोधन की प्रतीक्षा समूचे देश को रहती है। लाल किले की प्राचीर से दिए जाने वाले भाषण अब औपचारिक नहीं रह गए। वह एक विशेष वर्ग तक भी सीमित नहीं रह गए हैं। अब देश का जनसामान्य उनको सुनता है।
जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बोलते हैं तो देश ही नहीं अपितु दुनिया के कान उनके वक्तव्य पर टिके होते हैं। मोदी को चाहने वाले ही नहीं, अपितु उनके आलोचक भी अत्यंत ही ध्यानपूर्वक उन्हें सुनते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की संवाद शैली का असर है कि रेडियो फिर से जनमाध्यम बन गया। ‘मन की बात’ सुनने के लिए गाँव-शहर में चौपाल लगती हैं। वे जब विदेश में जाते हैं तो प्रवासी भारतीय उनको सुनने के लिए आतुर हो जाते हैं। विदेशों में भारतीय राजनेता को सुनने के लिए इतनी भीड़ कभी नहीं देखी गई है।
दरअसल, उन्हें यह अच्छे से ज्ञात है कि कब, कहाँ और किसके बीच अपनी बात को कैसे कहना है? यदि हम यह मान भी लें कि राजनीतिक सभाओं में भीड़ जुटाना एक प्रकार का प्रबंधन है। फिर भी अब वह दौर नहीं रहा जब आम आदमी हेलीकॉप्टर देखने के आकर्षण में सभा स्थल तक पहुँच जाता था। उस समय अपने प्रिय नेता को देखने के लिए संचार के अत्यधिक माध्यम भी नहीं थे। जबकि आज तो हर समय राजनेता की छवि हमारे सामने उपस्थित रहती है।
दूसरी बात यह कि सभा स्थल की अपेक्षा घर में बैठ कर अधिक आराम और अच्छे से अपने प्रिय नेता को टेलीविजन पर सीधे प्रसारण में सुना-देखा जा सकता है। ऐसे समय में भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को प्रत्यक्ष सुनने के लिए जनता जुटती है तो यह अपने आप में आश्चर्य और शोध-अध्ययन का विषय बनता है। यह उनकी असाधारण भाषण कला का जादू है जो लोग खिंचे चले आते हैं। वे अपनी इस कला से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करना जानते हैं।
वे जानते हैं कि आज के युवाओं को किस तरह की भाषा सुनना पसंद है। हिन्दी प्रेमी होने के बाद भी वह अपने भाषण में कुछ वाक्य/तुकबंदी अंग्रेजी के शब्दों की करते हैं। वह तुकबंदी तेजी से लोगों की जुबान पर चढ़ जाती है, जैसा कि वह चाहते थे। जैसे- रिकॉर्ड देखिए, टेप रिकॉर्ड नहीं; मिनिमम गवर्नमेंट-मैक्सिमम गवर्नेंस; रिफोर्म-परफोर्म-ट्रांसफोर्म; नेशन फर्स्ट (राष्ट्र सबसे पहले)। जीएसटी को उन्होंने कुछ इस तरह परिभाषित किया- ग्रोइंग स्ट्रॉन्गर टुगेदर।
‘भीम’ एप को उन्होंने डॉ. भीमराव आंबेडकर से जोड़ दिया। उनका दिया नारा ‘सबका साथ-सबका विकास’ और ‘अच्छे दिन आएंगे’ आज भी चर्चा और बहस के केंद्र में रहते हैं। अपने राजनीतिक विरोधियों पर जोरदार और असरदार हमला बोलने के लिए वह कैसे ‘आकर्षक शब्द’ गढ़ते हैं। उनकी संवाद कला का इतना जबरदस्त प्रभाव है कि उनके घोर विरोधी भी आजकल प्रभावी संवाद के लिए उनकी शैली का अनुसरण करते हैं।
वाकपटुता में उनका मुकाबला कोई नहीं कर सकता। अपने विरोधियों के आरोपों और अमर्यादित शब्दों को भी वह अपने हित में उपयोग कर लेते हैं। वह स्वयं स्वीकारते हैं कि विरोधियों के फेंके पत्थर (अपशब्दों) से उन्होंने अपने लिए पहाड़ बना लिया है। प्रधानमंत्री मोदी के भाषण देश की जनता के बीच विश्वास का एक वातावरण बनाते हैं। वह आह्वान करते हैं और देश की जनता उनका अनुसरण करने निकल पड़ती है। प्रधानमंत्री मोदी की वाणी का जादू है कि देश के निश्छल नागरिकों के अंतर्मन में स्वच्छता के प्रति आंदोलन का भाव प्रकट हो जाता है। छोटे बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक स्वच्छाग्रही बन जाते हैं।
मोदी के कहने पर लाखों लोग गैस की सबसिडी छोड़ देते हैं। देशवासी उनके कहने पर अंतरराष्ट्रीय योग दिवस को किसी बड़े धार्मिक-राष्ट्रीय उत्सव की तरह मनाते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को देश की जनता क्रिकेट के महान बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर की तरह देखती है। भारतीय दल कठिन स्थिति में फंसा है, किंतु यदि पिच पर सचिन खड़े हैं तो देश की जनता को एक उम्मीद रहती है कि मुकाबले का परिणाम देश के पक्ष में आएगा।
बहरहाल, भारतीय राजनीति में इतने अच्छे वक्ता राजनेता कम ही हैं। वर्तमान समय में तो प्रधानमंत्री मोदी के मुकाबले का कुशल संचारक अन्य कोई दिखाई नहीं देता है। पिछले सात-आठ वर्ष से नरेन्द्र मोदी लगातार बोल रहे हैं, इसके बाद भी उनको सुनने की भूख देश की जनता में बची हुई है।
(लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)