निजीकरण के लिए प्रस्तावित दोनों बैंकों का प्रदर्शन बढ़िया है और उनके एनपीए के स्तर में भी कमी आई है, इसलिए माना जा रहा है कि प्रस्तावित बैंकों के निजीकरण से सरकार को अच्छी-खासी रकम मिलेगी, जिसका इस्तेमाल देश के विकास में किया जा सकेगा। इसके अलावा यह भी माना जा रहा है कि निजीकरण के बाद ये बैंक बेहतर तरीके से काम करेंगे, जिससे अर्थव्यवस्था में मजबूती आयेगी।
नीति आयोग की सिफ़ारिश के आधार पर केंद्र सरकार 2 सरकारी बैंकों यथा सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया और इंडियन ओवरसीज बैंक में अपनी 51 प्रतिशत की हिस्सेदारी जल्द ही बेचने वाली है। सरकार ने 1 फरवरी 2021 को पेश किए गए बजट में वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान 2 सरकारी बैंकों और एक सरकारी बीमा कंपनी के निजीकरण का लक्ष्य रखा था। निजीकरण की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए सरकार को बैंकिंग क़ानूनों में बदलाव करना होगा।
इसलिए, केंद्र सरकार 29 नवंबर से शुरू हुए संसद के शीतकालीन सत्र में निजीकरण से जुड़े विधेयक को पारित कर सकती है। इस सत्र में सरकार ने कुल 26 विधेयकों को संसद में पारित करने का लक्ष्य रखा है, जिसमें यह विधेयक भी शामिल है।
इस विधेयक में बैंककारी कंपनियों के अर्जन और अंतरण अधिनियम, 1970 एवं 1980 में संशोधन किया जायेगा। साथ ही, बैंकिंग नियमन कानून 1949 में भी संशोधन किया जायेगा। पेश किए जाने वाले बैंकिंग कानून (संशोधन) विधेयक, 2021 के जरिये सरकारी बैंकों में न्यूनतम सरकारी हिस्सेदारी को 51 प्रतिशत से कम करके 26 प्रतिशत की जायेगी।
मौजूदा समय में सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया और इंडियन ओवरसीज बैंक के शेयरों की कीमत लगभग 44,000 करोड़ रुपए हैं। इंडियन ओवरसीज बैंक का मार्केट कैप 31,641 करोड़ रुपए है, जबकि सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया का मार्केट कैप 12,359 करोड़ रुपए। इस तरह, इन बैंकों में सरकार द्वारा अपनी हिस्सेदारी बेचने से उन्हें अपनी पूंजी वापस मिल जायेगी।
वैसे, सरकार को अपनी हिस्सेदारी बेचने में कितना समय लगेगा, अभी कहना मुमकिन नहीं है। इस पूंजी का मूल्य हिस्सेदारी बेचने के समय बाजार की स्थिति और बैंक की अंतर्निहित ताकत पर निर्भर करेगा, जैसे, शाखाओं व ग्राहकों की संख्या एवं कारोबार व एनपीए आदि का स्तर।
बैंकों के निजीकरण के बाद सरकार को इन बैंकों में और अधिक पूंजी डालने की जरूरत नहीं होगी, जिससे सरकार को अपनी वित्तीय स्थिति को मजबूत करने में मदद मिलेगी। इसके अलावा, वित्त मंत्रालय, केंद्रीय सतर्कता आयोग आदि सरकारी विभागों को इन संस्थानों की निगरानी और पर्यवेक्षण की आवश्यकता नहीं होगी, जिससे मानव संसाधन और धन दोनों की बचत होगी। माना जा रहा है कि सरकार से इन दोनों बैंकों की हिस्सेदारी खरीदने वाले अधिग्रहणकर्ता बैंक को अधिक कुशलता से संचालित कर पायेंगे।
इंडियन ओवरसीज बैंक में सरकार की हिस्सेदारी 95.8 प्रतिशत है, जबकि सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया में 92.4 प्रतिशत। माना जा रहा है कि सरकार, सरकारी बैंकों में अपनी हिस्सेदारी को 51 प्रतिशत तक लायेगी और उसके बाद उसे 50 प्रतिशत से नीचे लायेगी। ऐसा इसलिए किया जायेगा, ताकि कोरपोरेट्स इन 2 बैंकों के निजीकरण योजना का हिस्सा बन सकें।
निजीकरण के लिए प्रस्तावित दोनों ही बैंकों का आकार छोटा है। सेंट्रल बैंक में 33,000 और इंडियन ओवरसीज बैंक में 26,000 कर्मचारी कार्यरत हैं। इन दोनों सरकारी बैंकों में से इंडियन ओवरसीज बैंक ने 6 सालों के बाद वित्त वर्ष 2021 में 831 करोड़ रुपए का निवल लाभ अर्जित किया था, जबकि वित्त वर्ष 2020 में इसे 8,527 करोड़ रुपए का निवल नुकसान हुआ था। वहीं, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया को वित्त वर्ष 2020-21 में 887.58 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था।
हालाँकि, इन दोनों बैंकों का चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में शानदार प्रदर्शन रहा है। सेंट्रल बैंक ऑफ इडिया का चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में शुद्ध लाभ 20 प्रतिशत बढ़कर 161 करोड़ रुपए रह गया। एक साल पहले की समान तिमाही में बैंक ने 134 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ दर्ज किया था। बैंक की कुल आमदनी इस दौरान करीब 2 प्रतिशत बढ़कर 6,833.94 करोड़ रुपए रही, जो एक साल पहले की समान तिमाही में 6,703.71 करोड़ रुपए थी। बैंक का परिचालन लाभ 42.16 प्रतिशत बढ़कर 1,458 करोड़ रुपए रहा, जो एक साल पहले 1,026 करोड़ रुपए था।
बैंक का सकल ग़ैर निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) घटकर सकल अग्रिम के 17.36 प्रतिशत पर आ गया, जो एक साल पहले की समान तिमाही में 19.89 प्रतिशत था, जबकि शुद्ध एनपीए घटकर 5.60 प्रतिशत हो गया, जो एक साल पहले की समान तिमाही में 7.90 प्रतिशत था। इंडियन ओवरसीज बैंक का चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में शुद्ध मुनाफा दोगुना से अधिक होकर 376 करोड़ रुपये पर पहुंच गया, जो पिछले वित्त वर्ष की इसी तिमाही में 148 करोड़ रुपये था।
समीक्षाधीन अवधि के दौरान यह बैंक रिजर्व बैंक के त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई (पीसीए) के दायरे से भी बाहर आ गया। इस बैंक की दूसरी तिमाही में कुल आय 5,376 करोड़ रुपये रही, जो एक साल पहले इसी अवधि में 5,431 करोड़ रुपये थी। बैंक का 30 सितंबर, 2021 तक कुल अग्रिम पर शुद्ध एनपीए 2.77 प्रतिशत रहा, जो एक साल पहले 4.30 प्रतिशत था। राशि में बैंक का एनपीए 5,291 करोड़ रुपये से घटकर 3,741 करोड़ रुपये हो गया, जबकि सकल एनपीए 13.04 प्रतिशत (17,660 करोड़ रुपये) से घटकर 10.66 प्रतिशत (15,666 करोड़ रुपये) रह गया।
मार्च 2017 में देश में 27 सरकारी बैंक थे, जिनकी संख्या विलय के बाद अप्रैल 2020 में घटकर 12 रह गई। प्रस्तावित सरकारी बैंकों के निजीकरण के बाद सरकारी बैंकों की संख्या 10 रह जायेगी।
उम्दा प्रदर्शन नहीं करने वाले सरकारी उपक्रमों का निजीकरण केंद्र सरकार की प्राथमिकता में रहा है, क्योंकि वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के शानदार संग्रहण के बावजूद अभी भी सरकार विकासात्मक कार्यों को अमलीजामा पहनाने के क्रम में राजस्व की कमी का सामना कर रही है और सरकार विनिवेश के जरिये इस कमी को पूरा करना चाहती है।
चूँकि, निजीकरण के लिए प्रस्तावित दोनों बैंकों का प्रदर्शन बढ़िया है और उनके एनपीए के स्तर में भी कमी आई है, इसलिए माना जा रहा है कि प्रस्तावित बैंकों के निजीकरण से सरकार को अच्छी-खासी रकम मिलेगी, जिसका इस्तेमाल देश के विकास में किया जा सकेगा। इसके अलावा यह भी माना जा रहा है कि निजीकरण के बाद ये बैंक बेहतर तरीके से काम करेंगे, जिससे अर्थव्यवस्था में मजबूती आयेगी।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। आर्थिक मामलों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)