द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जिस तरह कम्यूनिस्ट सोवियत संघ के खिलाफ अमेरिकी नेतृत्व में नाटो (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन) ने कार्य किया था, ठीक उसी तर्ज पर अब चीन के आक्रामक रवैये के खिलाफ अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच ‘क्वाड’ (क्वाड्रिलेटरल सिक्योरिटी डायलाग) नाम का गठबंधन ठोस आकार लेने लगा है।
पूरे विश्व को कोरोना जैसी महामारी से त्रस्त करने वाला चीन एक तरफ तो वैक्सीन और दूसरे देशों की मदद का ढोंग कर रहा है, लेकिन दूसरी तरफ अपनी विस्तारवादी नीति को अंजाम देने की फिराक में लगा हुआ है।
गौरतलब है कि 15 जून, 2020 को पूर्वी लद्दाख की गलवान वैली में बातचीत की आड़ में चीन ने भारतीय सैनिकों पर अपनी फितरत के अनुरूप ही धोखे से हमला कर दिया था। जिसका जवाब देते हुए भारतीय सैनिकों ने 40 से अधिक चीनी सैनिकों को मार गिराया था। इतना ही नहीं एलएसी (लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल) पर चीन ने फिर जबरन घुसने की कोशिश की थी, जिसे भारतीय सेना ने नाकाम कर दिया।
चीन की ऐसी हरकतें अब भी जारी हैं। अब उसने पैंगोंग झील के क्षेत्र में सीमा का अतिक्रमण करने का प्रयास किया लेकिन भारतीय सेना के कड़े विरोध के कारण उसके मंसूबे नाकाम हो गए और उसे बातचीत के लिए आना पड़ा।
कोरोनाकाल में पूरी दुनिया की स्वास्थ्य व अर्थव्यवस्था को तबाह करने वाले चीन की सीनाजोरी तो देखिए, वह अब यह दिखाना चाहता है कि अमेरिका नहीं बल्कि चीन वैश्विक सत्ता है। लेकिन चीन को यह याद रखना चाहिए कि विस्तारवादी सोच और कम्युनिस्ट विचारधारा के कट्टरपंथ के कारण ही इसको आश्रय देने वाले देशों का पतन हमेशा हुआ है और चीन इससे कतई अलग नहीं है।
बहरहाल, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जिस तरह कम्यूनिस्ट सोवियत संघ के खिलाफ अमेरिकी नेतृत्व में नाटो (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन) ने कार्य किया था, ठीक उसी तर्ज पर अब चीन के आक्रामक रवैये के खिलाफ अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच ‘क्वाड’ (क्वाड्रिलेटरल सिक्योरिटी डायलाग) नाम का गठबंधन ठोस आकार लेने लगा है।
अमेरिका के उप विदेश मंत्री स्टीफन बीगन ने यूएस इंडिया स्ट्रैटजिक पार्टनरशिप फोरम में इस बाबत जानकारी देते हुए बताया कि क्वाड के सदस्य देशों के विदेश मंत्रालयों के बीच अब साप्ताहिक स्तर पर बातचीत हो रही है, जिसमें उक्त चार देशों के अलावा दक्षिण कोरिया, वियतनाम व न्यूजीलैंड के विदेश मंत्रालय भी शामिल होते हैं। साथ ही, क्वाड के चारों देशों के विदेश मंत्रियों की नई दिल्ली में जल्द ही एक बैठक भी आयोजित होने वाली है।
सनद रहे कि क्वाड के विदेश मंत्रियों की पहली बैठक सितंबर, 2019 में न्यूयॉर्क में हुई थी। दरअसल क्वाड की स्थापना वर्ष 2007 में ही हुई थी, लेकिन चारों देशों ने इसे 2016 से नए रूप में देखना शुरू किया। इस संगठन के माध्यम से चीन पर आर्थिक दबाव भी बनाया जाएगा। जाहिर है, क्वैड की नई दिल्ली में होने वाली बैठक से चीन को कड़ा सन्देश जाएगा।
अभी कुछ दिनों पहले ही अमेरिका के विदेश मंत्री माइकल पोम्पिओ ने भारत, जापान, दक्षिण कोरिया, आस्ट्रेलिया, इजरायल और ब्राजील के विदेश मंत्रियों के साथ बैठक कर चीन को बड़ा संदेश दिया था। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भी चीन पर यह आरोप लगाया था कि ‘चीन ने कोविड-19 को लेकर पारदर्शिता से काम नहीं किया और समय पर दुनिया को इस महामारी के बारे में सूचना नहीं दी। इसकी जांच होनी चाहिए।’
चीन के अतिक्रमण की नीति से पूरा विश्व परिचित है। अमेरिका कहता रहा है कि साउथ चाइना में कानून सम्मत व्यवस्था लागू होनी चाहिए। भारत, जापान, दक्षिण कोरिया और आस्ट्रेलिया भी साउथ चाईना सी को लेकर अमेरिका के इस रुख से सहमति रखते हैं।
भारत सरकार ने भी चीन से व्यापार संबंधी नियमों में बदलाव करने के साथ ही पबजी, टिक-टॉक समेत अन्य चीनी एपों को बैन करके चीन को सन्देश दे दिया है कि भारत अपनी सम्प्रभुता से किसी भी तरह समझौता नहीं करेगा।
वस्तुतः चीन को यह समझ लेना चाहिए कि उसके दोहरे रवैये को अब पूरी दुनिया पहचान चुकी है। एक तरफ बातचीत का ढोंग और दूसरी तरफ अतिक्रमण की नीति अब काम नहीं आने वाली है। चीन को यह भी समझ आ जाना चाहिए कि अब उसकी मनमानी नहीं चलेगी।
यदि उसने अपने रवैये में बदलाव लाकर शांति और परस्पर सम्मान की नीति को नहीं अपनाया तो उसे भारत सहित दुनिया के अन्य शक्तिशाली देशों के कड़े रुख के लिए तैयार रहना चाहिए। क्वैड को लेकर इस सदस्य देशों में आई सक्रियता का भी यही संकेत है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)