राहुल गुजरात में बाढ़ पीड़ितों से मिलने गए थे। लेकिन यह विषय बहुत पीछे रह गया। राहुल की कार का शीशा टूटना बाढ़ पीड़ितों की पीड़ा पर भारी पड़ गया। कांग्रेस इस खुशफहमी का शिकार हो सकती है कि उसने भाजपा और संघ पर लोकतंत्र की हत्या, अभिव्यक्ति पर हमला, आघोषित इमरजेंसी जैसे आरोप जड़ दिए। लेकिन सच्चाई यह है कि इस पूरे विवाद से कांग्रेस खुद कटघरे में पहुंच गयी है। इस प्रकरण ने जनता में कांग्रेस के प्रति गलत सन्देश ही प्रसारित किया है। पत्थर पर राजनीति करने के चक्कर में कांग्रेस खुद फँस गयी है।
प्रजातंत्र में हिंसा का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। गुजरात में राहुल गांधी की कार पर पत्थर फेंकना निंदनीय व आपराधिक कृत्य है। गुजरात सरकार ने इसे गंभीरता से लिया। पत्थर फेंकने वाले को जेल भेजा। अब कानून अपना कार्य करेगा। लेकिन इस प्रकरण ने कुछ प्रश्न भी उठाए हैं। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की कार पर एक पत्थर क्या फेंका गया कि लोकतंत्र खतरे में पड़ गया। एक साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भारतीय जनता पार्टी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सभी निशाने पर आ गए। राहुल गांधी ने कार का शीशा टूटने के बाद ऐसा ही बयान दिया। उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी और संघ की यही मानसिकता है। यह लोकतंत्र पर हमला करते हैं।
इसके बाद राहुल ने कहा कि वह ऐसे हमले से डरेंगे नहीं। राहुल की परेशानी को समझा जा सकता है। लेकिन इस परेशानी ने कई प्रश्न भी उठाएं हैं। क्या राहुल या समर्थक कभी कश्मीर की पत्थरबाजी पर भी इतने ही परेशान होते थे। जबकि कश्मीर घाटी में पत्थरबाजी कांग्रेस व नेशनल कांफ्रेंस सरकार के समय शुरू हो गई थी। उस समय केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार थी। लेकिन उस समय से इन पत्थरबाजों को भटके हुए बच्चे कहा जा रहा था। सैनिकों को उनके साथ संयम दिखाने का निर्देश था। लेकिन राहुल की कार पर पड़ा पत्थर लोकतंत्र पर हमला था।
यह भी रहस्य लगता है कि राहुल गुजरात सरकार द्वारा उपलब्ध बुलेट प्रुफ कार में क्यों नहीं बैठे। यदि वह उस कार पर जाते तो पत्थर का उस पर कोई असर ना होता। इसका तात्पर्य है कि गुजरात सरकार ने बाढ़ में व्यस्तता के बाद बावजूद राहुल की सुरक्षा में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। ऐसे में राहुल का कार्यकर्ता की कार में बैठना फिर पत्थर के लिए मोदी-शाह संघ को दोषी बताना अजीब लगता है।
कार का शीशा टूटने पर राहुल गांधी की नाराजगी जायज है। लेकिन जब सभी ने इसकी निंदा की, गुजरात सरकार पर्याप्त कार्रवाई कर रही है, तब इस मुद्दे को इतना तूल देने का औचित्य समझ नहीं आता। कांग्रेस ने इसे ऐसे बना दिया जैसे देश की सबसे बड़ी समस्या है। इस कारण पूरे दिन के लिए संसद बाधित की गई।
यदि कांग्रेस के सदस्य एक बार भी कश्मीर घाटी में पत्थरबाजी को झेल रहे जवानों के बारे में सोचते तो वह राहुल की कार का शीशा टूटने पर इतना हंगामा ना करते। इससे साबित हुआ कि कांग्रेस को कश्मीर घाटी की सुरक्षा में लगे जवानों की कोई चिंता नहीं है। उनके प्रति भावनात्मक लगाव का भी आभाव है, जबकि यह ज्यादा गंभीर मसला है। पत्थरबाज तो आतंकवादियों को सुरक्षित निकलने का रास्ता देते हैं। इसके लिए सीमा बाहर से उन्हें धन दिया जाता है, अब इस कार्य में लगे हुर्रियत नेता बेनकाब हो रहे हैं। जांच एजेंसियों ने उन पर शिकंजा कस दिया है। हुर्रियत नेताओं को कांग्रेस सरकार के समय बहुत बढ़ावा मिला था। इनके प्रति कांग्रेस की सहानुभूति रही है।
इन पर जब भी सख्ती होती है, तब कांग्रेस को तकलीफ होती है। ये हुर्रियत नेतओं से बातचीत करने और पत्थरबाजों को समझाने पर जोर देते है। कुछ समय पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणि शंकर अय्यर हुर्रियत नेताओं से मिलने गए। यह मुलाकात उस समय हुई जब पत्थरबाजी में उनकी भूमिका उजागर हो चुकी थी। कुछ समय पहले सर्वदलीय प्रतिनिधि के विपक्षी सदस्य हुर्रियत नेताओं की चौखट पर पहुंचे थे। लेकिन, वहां इनके लिए दरवाजे तक नहीं खोले गए। ये सभी देश के दिग्गज नेता थे। इन्हें अपमानित होकर लौटना पड़ा था। पत्थर वही है। राहुल की कार पर पड़े तो तूफान आ जाता है। सैनिकों पर रोज फेंका जाए तब आवाज भी नहीं होती।
कांग्रेस के समर्थक भी उसके ही जैसे हैं। लालू यादव बोले कि संघ और भाजपा राहुल गांधी की हत्या कराना चाहते हैं। फिर इस प्रसंग को नीतीश कुमार से भी जोड़ दिया। कहा कि देश में अघोषित इमरजेंसी है। इसलिए नीतीश कुमार को भागना पड़ा। यह वही लालू यादव है जिन्होंने कश्मीर के पत्थरबाजों पर कभी मुंह नहीं खोला। लालू के पास इस बात का भी जवाब नहीं कि राहुल गांधी निर्धारित कार में क्यों नहीं बैठे। प्रदेश की भाजपा सरकार ने तो उन्हें बुलेटप्रूफ कार उपलब्ध कराई थी।
ऐसे में यह कहना शरारत के अलावा कुछ नहीं है कि भाजपा राहुल की हत्या कराना चाहती थी। अघोषित इमरजेंसी होती तो सबसे पहले लालू की मुसीबत बढ़ती। नीतीश सही थे, उन्हें भागने की जरुरत नहीं थी। वह लालू कुनबे की बेनामी संपत्ति देखकर अलग हुए थे। वास्तविक गुनाहगार लालू ही नजर आ रहे हैं। अपने कारनामे छुपाने के लिए वह भाजपा संघ पर हमला बोल रहे हैं। यही लालू केरल और पश्चिम बंगाल में हो रही राजनीतिक हत्याओं पर मौन रहते हैं।
तृणमूल कांग्रेस ने कार का शीशा टूटने को अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला करार दिया। ऐसा लगता है कि ये विपक्षी नेता आमजन को बेवकूफ समझते हैं। कश्मीर घाटी में पत्थरबाजी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। पश्चिम बंगाल में एक वर्ग का सड़कों पर किया गया हिंसक उन्माद अभिव्यक्ति की आजादी है। गुजरात में पत्थर अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला हो जाता है। यह दोहरा मापदंड कैसे चल सकता है। राहुल की कार पर हमला गलत है, कश्मीर की पत्थरबाजी राष्ट्रीय सुरक्षा को चुनौती है, दोनों बातें खुलकर क्यों नहीं कही जाती। क्योंकि यह दोहरापन दिखाने वालों को दोनों स्थानों पर वोट बैंक की राजनीति नजर आती है।
इस पत्थर पर सियासत करने से कांग्रेस और उसके सहयोगियों का दोहरा मापदंड एक बार फिर सामने आ गया। संसद में इस विषय पर हंगामे से कांग्रेस को एक अन्य नुकसान हुआ। राहुल गांधी की विदेश यात्राओं में उनके द्वारा सुरक्षा नियमों का पालन ना करने की बात भी सबको पता चल गई।
गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने जो ब्योरा सांसद में दिया, उससे कांग्रेस ही कठघरे में आ गई। उन्होंने कहा कि क्या कारण था कि राहुल ने एसपीजी अधिकारियों की सलाह नहीं मानी। वह बुलेटप्रूफ कवर वाली कार की ओर बढ़ रहे थे। यही सुरक्षा अधिकारी चाहते थे। यही नियम है। लेकिन राहुल अपने निजी सचिव की सलाह पर उस कार में बैठे जिसमें बुलेटप्रूफ कवर नहीं था। जांच एजेंसियों को इस बात का संज्ञान लेना चाहिए। राहुल का बुलेटप्रूफ कार में न बैठना, सुरक्षा अधिकारियों की सलाह को नजरअंदाज करना, निजी सचिव की सलाह पर दूसरी कार में बैठना और उस कार में पत्थर से शीशा टूटना – क्या यह सब संयोग मात्र था ? कांग्रेस को इस बात का जवाब देना चाहिए।
गृहमंत्री के दूसरे प्रश्न का जवाब भी कांग्रेस को देना होगा। राजनाथ सिंह का कहना था कि राहुल पिछले 6 विदेशी दौरों में 72 दिन बाहर रहे। लेकिन वह एसपीजी को अपने साथ नहीं ले गए। इतना ही नहीं, विदेश जाने की सूचना भी मात्र कुछ घंटे पहले दी। राजनाथ ने सीधा प्रश्न किया कि राहुल देश से क्या छुपाना चाहते थे। उमर अब्दुल्ला भी राहुल के जोड़ीदार हैं। बोले की एसपीजी गुप्तचरी करती है। विशेषज्ञों का जवाब आया कि एसपीजी कवर में ऐसा कुछ नहीं होता। इनमें से किसी को भी गुप्तचरी की ट्रेनिंग दी ही नहीं जाती है।
लेकिन, उमर भी राहुल, लालू, ममता, गुलाम नबी आज़ाद आदि से पीछे कैसे रह सकते हैं। इस प्रकरण का तीसरा नुकसान भी कांग्रेस को हुआ। राहुल गुजरात में बाढ़ पीड़ितों से मिलने गए थे। लेकिन यह विषय बहुत पीछे रह गया। राहुल की कार का शीशा टूटना बाढ़ पीड़ितों की पीड़ा पर भारी पड़ गया। कांग्रेस खुश हो सकती है कि उसने भाजपा संघ पर लोकतंत्र की हत्या, अभिव्यक्ति पर हमला आघोषित इमरजेंसी जैसे आरोप जड़ दिए। लेकिन सच्चाई यह है कि इससे कांग्रेस खुद कटघरे में पहुंच गयी है। इस प्रकरण ने जनता में कांग्रेस के प्रति गलत सन्देश ही प्रसारित किया है।
(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)