राफेल लड़ाकू विमान का समझौता तो यूपीए शासन के दौरान हो जाना चाहिए था। लेकिन वह दस वर्षों में इसको अंजाम तक नहीं पहुंचा सकी, जबकि सुरक्षा के मद्देनजर इसकी सख्त जरूरत थी। जाहिर है कि यूपीए सरकार ने अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं किया। उसके द्वारा छोड़े गए अनेक कार्यों को वर्तमान सरकार ने पूरा किया। राफेल समझौता भी इसी में शामिल है। कांग्रेस अपनी नाकामी के कारण हीन भावना से ग्रस्त है, इसीलिए राफेल समझौते में मीन मेख निकाल रही है, जबकि यह किसी कंपनी के साथ नहीं बल्कि दो देशों के बीच का समझौता है।
राफेल विमान सौदे के सहारे कांग्रेस चुनावी उड़ान की रणनीति बना रही थी। फ्रांस के साथ हुए समझौते में घोटाले के आरोप लगाकर वह एक तीर से दो निशाने साधने का प्रयास कर रही थी। पहला, उसे लगा कि नरेंद्र मोदी सरकार पर घोटाले का आरोप लगा कर वह अपनी छवि सुधार लेगी। दूसरा, उसे लगा कि वह इसे बड़ा चुनावी मुद्दा बना सकेगी। लेकिन इस संबन्ध में नई जानकारी ने कांग्रेस को ही कठघरे में पहुंचा दिया है। नए तथ्यों के अनुसार, कांग्रेस के मुकाबले मोदी सरकार ने राफेल पर सस्ता और बेहतर समझौता किया है।
यूपीए सरकार में एक राफेल की कीमत करीब 1705 करोड़ रुपए होती। वहीं भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में यह कीमत 1646 करोड़ रुपए तय की गई है। मोदी सरकार ने हर विमान की कीमत में 59 हजार करोड़ रूपये बचाए हैं। भारत की सुरक्षा जरुरतों को पूरा करने के लिए मोदी सरकार एक फाइटर जेट की मूल कीमत के ऊपर नौ हजार आठ सौ पचपन करोड़ रुपए अतिरिक्त खर्च कर रही है। इसके अलावा फ्रांस अब भारत को मुफ्त में 32 जगुआर बमवर्षक विमान भी देगा।
राफेल लड़ाकू विमान का समझौता तो यूपीए शासन के दौरान हो जाना चाहिए था। लेकिन वह दस वर्षों में इसको अंजाम तक नहीं पहुंचा सकी, जबकि सुरक्षा के मद्देनजर इसकी सख्त जरूरत थी। जाहिर है कि यूपीए सरकार ने अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं किया। उसके द्वारा छोड़े गए अनेक कार्यों को वर्तमान सरकार ने पूरा किया। राफेल समझौता भी इसी में शामिल है। कांग्रेस अपनी नाकामी के कारण हीन भावना से ग्रस्त है, इसीलिए राफेल समझौते में मीन मेख निकाल रही है, जबकि यह किसी कंपनी के साथ नहीं बल्कि दो देशों के बीच का समझौता है।
लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान हुई फजीहत से कांग्रेस ने कोई सबक नहीं लिया है। संसदीय इतिहास में पहली बार विपक्षी नेता के बयान पर दो देशों को अधिकृति सफाई देनी पड़ी। इसके आधार पर राहुल गांधी का बयान गलत साबित हुआ। उन्होंने फ्रांस के राष्ट्रपति से अपनी कथित मुलाकात की चर्चा की थी, जिसमें उन्होंने समझौते की गोपनीयता से इनकार किया था।लेकिन फ्रांस के राष्ट्रपति ने ऐसी किसी मुलाकात से ही इनकार कर दिया। वैसे भी सामरिक समझौतों की जानकारी राहुल गांधी को देने का कोई औचित्य भी नहीं था।
राहुल गांधी के बयान पर फ्रांस ने कहा कि भारत के साथ 2008 में किया गया सुरक्षा समझौता गोपनीय है। दोनों देशों के बीच रक्षा उपकरणों की संचालन क्षमताओं के संबंध में इस गोपनीयता की रक्षा करना कानूनी रूप से बाध्यकारी है। गौर करें तो यूपीए सरकार के रक्षा मंत्री ए के एंटनी और प्रणब मुखर्जी ने सदन में छह बार कहा था कि सुरक्षा के चलते वो इस डील के बारे में जानकारी नहीं दे सकते।
अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के आरोपों को रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने खारिज कर दिया था। मोदी ने भी साफ कर दिया था कि डील पूरी तरह पारदर्शी हुई है। लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन ने बताया कि उन्हें राहुल गांधी के खिलाफ इस मसले पर चार विशेषाधिकार हनन नोटिस प्राप्त हुए हैं। उन्होंने बताया कि वह नोटिस के आधार पर कार्रवाई के बारे में अभी निर्णय लेंगी।
राफेल डील के मुद्दे पर बीते अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के दौरान राहुल गांधी ने पीएम मोदी पर सीधे आरोप लगाया था। कहा कि अपने कारोबारी मित्रों को फायदा पहुंचाने के लिए सीक्रेसी का हवाला देकर सरकार सच्चाई छुपा रही है। वहीं, दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण के खिलाफ विशेषाधिकार हनन नोटिस दिए गए हैं।
पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी और कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा था कि प्रधानमंत्री और रक्षामंत्री ने राफेल डील पर संसद को गुमराह किया है और ये विशेषाधिकार का हनन है। इसलिए कांग्रेस इसे लेकर लोकसभा में नोटिस देगी। लेकिन कांग्रेस की यह रणनीति उल्टी पड़ रही है। वस्तुतः भ्र्ष्टाचार या घोटाले के विरुद्ध जंग के लिए नैतिक बल की जरूरत होती है जो कि कांग्रेस के पास नहीं है। इसलिए उसके सभी अस्त्र उंसकी मुसीबत बढ़ाने वाले साबित होते हैं। दूसरी तरफ नरेंद्र मोदी की निजी विश्वसनीयता आज भी कायम है।
(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)