आखिरकार लंबे इंतज़ार के बाद भारत और फ्रांस के बीच बहुप्रतीक्षित राफेल डील पर मुहर लग गयी। इस सौदे के तहत फ्रांस भारत को 36 राफेल लड़ाकू विमान देगा। भारत और फ्रांस सरकार के बीच राफेल लड़ाकू विमानों के लिए 7।87 अरब यूरो (करीब 59,000 करोड़ रूपए) के सौदे पर सहमति बनी है। ज्ञातव्य हो कि फ्रांस के रक्षामंत्री ज्यां ईव ल द्रियां और भारत के रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने 23 सितम्बर, 2016 को नई दिल्ली में इस सौदे पर हस्ताक्षर किये। रक्षा सूत्रों के अनुसार राफेल सौदा देश की अबतक की सबसे बड़ी रक्षा खरीद है।
भारतीय वायुसेना के लिहाज से यह खरीद इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि अबतक वायुसेना के पास 1970 और 1980 के दशक के लड़ाकू विमान ही मौजूद हैं। फिलहाल भारतीय वायुसेना के पास 34 स्क्वैड्रन हैं जो नाकाफी है और वायुसेना को जरुरत 45 स्क्वैड्रन की है। लेकिन अब, राफेल विमान जो कि अत्याधुनिक मिसाइलों से लैस है जब भारतीय वायुसेना के बेड़े में शामिल होगा तो निश्चित रूप से हमें मजबूती मिलेगी। गौरतलब है कि राफेल लड़ाकू विमानों की आपूर्ति 36 महीने में शुरू हो जाएगी और यह अनुबंध किये जाने की तारीख से 66 महीने में पूरी हो जाएगी। यानि 2019 से भारत को लड़ाकू विमानों की आपूर्ति शुरू हो जाएगी।
गौरतलब है कि राफेल लड़ाकू विमान खरीदने की योजना का ऐलान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 16 माह पूर्व अपने फ्रांस दौरे पर किया था। अगर बात करें राफेल विमान की खासियत की तो ऊँचे इलाकों में लड़ने में यह विमान शानदार है। राफेल सिर्फ एक मिनट में 60 हज़ार फुट की ऊंचाई तक जाने में सक्षम है। वहीँ इसकी मारक क्षमता करीब 3700 किलोमीटर है और यह 2200 से 2500 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से उड़ सकता है। राफेल लड़ाकू विमानों की सबसे खास बात यह है कि इसमें नए दौर की दृश्य से ओझल होने में सक्षम ‘मिटिअर’ मिसाइल और इजराइली प्रणाली भी है।
बहरहाल, लंबे समय के बाद राफेल सौदे पर सहमति बन पाई है। राफेल विमानों की डील के बाद रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने कहा कि राफेल एक शक्तिशाली हथियार है और इसके आने से भारतीय वायुसेना को मारक क्षमता के लिहाज से ज़रूरी ताकत मिलेगी। रक्षामंत्री ने कहा कि इस समझौते में 5 वर्षों के लिए पुर्जे एवं रखरखाव, प्रदर्शन आधारित साजो-सामान, भारत के अनुसार किये गये विशेष प्रावधान भी शामिल हैं। जाहिर है कि यह रक्षा सौदा पिछले 20 वर्षों में लड़ाकू विमानों की खरीद का पहला सौदा होगा। इससे पूर्व भारत ने रूस से सुखोई विमानों की खरीद की थी।
भारतीय वायुसेना के लिहाज से यह खरीद इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि अबतक वायुसेना के पास 1970 और 1980 के दशक के लड़ाकू विमान ही मौजूद हैं। फिलहाल भारतीय वायुसेना के पास 34 स्क्वैड्रन हैं जो नाकाफी है और वायुसेना को जरुरत 45 स्क्वैड्रन की है। लेकिन अब, राफेल विमान जो कि अत्याधुनिक मिसाइलों से लैस है जब भारतीय वायुसेना के बेड़े में शामिल होगा तो निश्चित रूप से हमें मजबूती मिलेगी। गौरतलब है कि राफेल लड़ाकू विमानों की आपूर्ति 36 महीने में शुरू हो जाएगी और यह अनुबंध किये जाने की तारीख से 66 महीने में पूरी हो जाएगी। यानि 2019 से भारत को लड़ाकू विमानों की आपूर्ति शुरू हो जाएगी। इस सौदे में वार्षिक मुद्रास्फीति दर सीमा 3।5 प्रतिशत तय की गयी है। गौरतलब है कि राफेल डील को लेकर बातचीत 2012 से ही चल रही थी, मगर वह बेनतीजा रही। इसका कारण यह था कि विमान बनाने वाली कंपनी डेसाल्ट के साथ तकनीकी विषय और कीमतों पर बात नहीं बन पाई थी। लेकिन, इसके बाद वर्तमान की मोदी सरकार ने नए सिरे से इसपर सीधे कंपनी से सौदा न कर फ्रांस सरकार के माध्यम से राफेल सौदा सुनिश्चित किया। इसके अतिरिक्त इसमें 50 प्रतिशत ऑफ़सेट का भी प्रावधान रखा गया है। इसका आशय है कि भारत की छोटी-बड़ी कंपनियों के लिए कम से कम 3 अरब यूरो (करीब 22,406 करोड़ रूपए) का कारोबार और ऑफ़सेट के जरिये हजारों रोजगार सृजित होंगे। इस सौदे के तहत राफेल विमान बनाने वाली डेसाल्ट एविएशन विमान के पुर्जे सात सालों तक शुरुआती मूल्यों पर ही मुहैया कराएगी।
गौरतलब है कि मोदी सरकार ने यूपीए शासन में राफेल डील के मुकाबले 75 करोड़ यूरो की बचत की है। बहरहाल, वर्तमान सुरक्षा परिस्थितियों पर ध्यान दें तो राफेल सौदा बहुत मायने रखता है। राफेल लड़ाकू विमानों के भारतीय वायुसेना में शामिल होने से हमारी ताकत में अभूतपूर्व वृद्धि होगी। ध्यान दें तो मोदी सरकार लगातार रक्षाक्षेत्र में विद्यमान लालफीताशाही के मकड़जाल को ख़त्म करने और इसे अधिक से अधिक पारदर्शितायुक्त बनाने पर जोर दे रही है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)