क्या इस बात से इनकार किया जा सकता है कि कांग्रेस का सबसे बड़ा नेता झूठ का सहारा लेता है, गैर जिम्मेदाराना बयान देता है, सच्चाई को देश के सामने तोड़ मरोड़कर पेश करता है। यह तो अच्छा हुआ कि भाजपा नेता और वकील मिनाक्षी लेखी ने सच को देश के सामने लाने का काम किया और अदालत के माध्यम से सब कुछ देश के सामने आ गया। अन्यथा राहुल गांधी देश में घूम-घूमकर आज भी यही झूठ बेच रहे होते कि अदालत ने चौकीदार को चोर मान लिया है।
आप उस व्यक्ति के बारे में क्या कहेंगे जिसके चुनावी अभियान की बुनियाद ही झूठे नारों पर खड़ी की गयी हो। झूठ की बुनियाद पर खड़ी इमारत को भरभरा कर गिरते देर नहीं लगती है और फिलवक्त ऐसा कांग्रेस के साथ हुआ है। खुद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने अदालत के सामने पेश हलफनामे में कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए जो अपशब्द और इल्जामात वह चुनावी सभाओं में लगा रहे हैं, उसका कोई आधार नहीं है। अपने आरोपों में अदालत का नाम घसीटने को लेकर उन्होंने माफ़ी भी मांगी है।
वाह! इसका मतलब यह है कि आप जो चाहें कहें, जिसको चाहें गलियाँ दें और बवाल खड़ा होने पर माफ़ी मांग लें। लोकतंत्र है न, यहाँ सब कुछ माफ़ है। यहाँ तो कुछ भी, किसी के खिलाफ बोलने की आज़ादी है! शायद राहुल गाँधी को यही लगता है कि “फ्रीडम ऑफ़ स्पीच” या बोलने की आज़ादी का मतलब है कि आप बिना किसी आधार के किसीके भी खिलाफ कुछ भी बोलें।
पिछले कुछ हफ्ते से राहुल गाँधी ने राफेल को लेकर पीएम मोदी के खिलाफ अभियान चलाया हुआ है कि “चौकीदार चोर है”। बीते दिनों उन्होंने यह बात अदालत के हवाले से ही कह डाली। लेकिन इसपर जब अदालत ने उन्हें नोटिस भेजा और बात जब अदालत में इसे साबित करने की आई तो उनका कहना था कि ऐसा उन्होंने चुनावी माहौल की गर्मी में कह दिया, इसका आधार कोई नहीं है, सच्चाई का उन्हें पता नहीं। समझिये कि यह हालत देश की सबसे पुरानी पार्टी के अध्यक्ष की है।
इस स्थिति को देखिये और विपक्ष में बैठे नेताओं की राजनीति को समझिये। फिर आप अगर अपना वोट देने जा रहे हैं तो बहुत ही सोच समझकर सही पार्टी और सही उम्मीदवार के सामने वोट डालियेगा क्योंकि आपके वोट की कीमत है, उसी से देश बनेगा। 22 पन्नों के हलफनामे में राहुल गाँधी ने सुप्रीम कोर्ट के सामने चौकीदार चोर वाले बयान पर माफ़ी मांगी और दुःख का इज़हार किया। चुनाव से पहले अगर यह माफीनामा सत्ताधरी पार्टी के तरफ से आता तो सारे अख़बारों और टेलीविज़न की यह सुर्खियाँ होती, लेकिन बात जब राहुल गाँधी की आई तो इसमें भी ज्यादातर मीडिया समूहों ने ढिलाई से काम लिया।
आज जब तीसरे दौर का मतदान चल रहा है, देश के मतदाताओं के दिमाग में यह बात ज़रूर रहेगी कि लोकतंत्र में जिस विपक्ष की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है और जिसपर सत्ताधारी दल के समक्ष जनता की आवाज बनने का दायित्व होता है, उसका सबसे बड़ा नेता कैसी सतही और झूठी बातें करता है।
क्या इस बात से इनकार किया जा सकता है कि कांग्रेस का सबसे बड़ा नेता झूठ का सहारा लेता है, गैर जिम्मेदाराना बयान देता है, सच्चाई को देश के सामने तोड़ मरोड़कर पेश करता है। यह तो अच्छा हुआ कि भाजपा नेता और वकील मिनाक्षी लेखी ने सच को देश के सामने लाने का काम किया और अदालत के माध्यम से सब कुछ देश के सामने लाया। अन्यथा राहुल गांधी देश में घूम-घूमकर आज भी यही झूठ बेच रहे होते कि अदालत ने चौकीदार को चोर मान लिया है।
आप विपक्ष में रहकर जब दूसरे के ऊपर इल्ज़ाम लगाते हैं तो इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि आप सच बोल रहे हों। झूठ की बुनियाद पर आप इतने बड़े आसमानी महल नहीं खड़े कर सकते हैं। चुनाव के बाद जनता के सामने कोई विकल्प नहीं रहेगा, जो भी करना है चुनाव से पहले करना है। जनता समझदार है, इसलिए कहना नहीं होगा कि वह सच और झूठ का चुनाव बहुत समझदारी से करेगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)