‘चौकीदार चोर है’ का नारा उछालने के कारण अब बुरे फँसे राहुल गांधी

कोर्ट ने राहुल गांधी को लताड़ लगाते हुए सफाई मांगी और पूछा कि अदालत ने प्रधानमंत्री के खिलाफ ‘चौकीदार चोर’ जैसे शब्‍दों का प्रयोग कब किया है? इसकी सुनवाई स्‍वयं मुख्‍य न्‍यायाधीश रंजन गोगोई की बेंच ने की और कहा कि कोर्ट ने ऐसी टिप्‍पणी नहीं की है। राहुल ने कोर्ट के वक्‍तव्‍य को तोड़-मरोड़कर पेश किया है। कोर्ट ने राहुल को 22 अप्रैल तक जवाब पेश करने की मोहलत दी है और मीनाक्षी लेखी की याचिका पर 23 अप्रैल को सुनवाई होनी है।

बीते चार वर्षों में केंद्र की भाजपा सरकार में एक भी घोटाला नहीं हुआ, इसलिए मुद्दों के लिए तरस रही कांग्रेस ने जबर्दस्‍ती राफेल जैसे रक्षा सौदे में कथित घोटाले का शोर मचाया हुआ है। भगोड़े कारोबारियों को प्रधानमंत्री का करीबी बताने वाले राहुल गांधी भूल जाते हैं कि वारेन एंडरीसन प्रकरण उन्‍हें विरासत में मिला है। ये वही राहुल गांधी हैं जिन्‍हें बोफोर्स घोटाले का अपयश विरासत में राजीव गांधी से मिला है।

इसके बावजूद पूरी निर्लज्जता के साथ राहुल गांधी राफेल सौदे में कथित घोटाले को तोते की तरह रट रहे हैं। हालांकि उनके ‘चौकीदार चोर है’ के नारे की बैंड तो पीएम मोदी के ‘मैं भी चौकीदार’ अभियान ने पहले से ही बजा रखी थी, लेकिन इसमें भी राहुल ने पिछले दिनों एक बड़ी भूल कर दी, जो कि उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं। उन्‍होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ अभद्र टिप्‍पणी करने के क्रम में सुप्रीम कोर्ट के नाम का बेजा इस्‍तेमाल कर दिया। उन्‍होंने अपने बेसिर पैर के भाषणों में सुप्रीम कोर्ट का हवाला देते हुए अपने प्रसिद्ध ‘चौकीदार चोर है’ का स्‍लोगन दे डाला।

इस पर बीजेपी की नेत्री व सांसद मीनाक्षी लेखी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जिसके बाद कोर्ट ने राहुल गांधी को लताड़ लगाते हुए सफाई मांगी और पूछा कि अदालत ने प्रधानमंत्री के खिलाफ ऐसे शब्‍दों का प्रयोग कब किया है? इसकी सुनवाई स्‍वयं मुख्‍य न्‍यायाधीश रंजन गोगोई की बेंच ने की और कहा कि कोर्ट ने ऐसी टिप्‍पणी नहीं की है। राहुल ने कोर्ट के वक्‍तव्‍य को तोड़-मरोड़कर पेश किया है। कोर्ट ने राहुल को 22 अप्रैल तक जवाब पेश करने की मोहलत दी है और मीनाक्षी लेखी की याचिका पर 23 अप्रैल को सुनवाई होनी है।

गौरतलब है कि राहुल गांधी अपनी चुनावी सभाओं में भी हर शहर में जाकर वहां के स्‍थानीय विषयों पर बात करने की बजाय केवल राफेल का ही राग अलापते रहते हैं। हर मंच पर अलग-अलग दाम बताकर वे पहले ही अपनी बहुत फजीहत करा चुके हैं। देश भर में हंसी उड़ने के बाद भी राहुल गांधी की बचकानी हरकतों में कोई सुधार नहीं आया है।

इधर, मध्‍यप्रदेश में भी निर्वाचन आयोग ने इस अशोभनीय शब्‍दावली पर कठोर संज्ञान लेते हुए इसे तत्‍काल प्रभाव से प्रतिबंधित कर दिया है। मप्र के मुख्‍य निर्वाचन पदाधिकारी वीएल कांताराव की अध्‍यक्षता वाली कमेटी ने प्रदेश कांग्रेस के उन सभी विज्ञापनों पर रोक लगा दी है जिनमें “चौकीदार चोर है” नामक आक्षेप वाली शब्‍दावली प्रयुक्‍त की गई थी। मप्र भाजपा ने इन विज्ञापनों के प्रसारण को रोकने की अपील की थी। इसके बाद रेडियो एफएम पर इस विज्ञापन के प्रसारण को रोका गया है।

असल में राहुल गांधी जैसे परिवारवाद की बदौलत पनपे नेता को सबसे पहले भारतीय संविधान का अध्‍ययन करने की आवश्यकता है। वे बिना किसी तैयारी के केवल वंशवाद के दम पर राजनीति में घुस तो आए हैं लेकिन यहां बने रहने के लिए न्‍यूनतम योग्‍यता का भी उनमें घोर अभाव है। उन्‍हें यह नहीं पता है कि संवैधानिक व्‍यवस्‍था के अनुसार किसी भी व्‍यक्ति विशेष के नाम से विज्ञापनों में आरोप नहीं लगाए जा सकते। यह सीधे तौर पर संविधान का उल्‍लंघन है।

विज्ञापन में कांग्रेस को यह बताना चाहिये था कि चोर शब्‍द से उनका क्‍या आशय है और उनका इशारा किसकी ओर है। हालांकि भाजपा ने जब आपत्ति ली तो मप्र कांग्रेस की मीडिया प्रमुख शोभा ओझा ने यह दलील दी कि ‘चौकीदार चोर है” शब्‍द से उनका आशय पीएम मोदी से नहीं है। लेकिन कांग्रेस यह स्‍पष्‍ट नहीं कर पाई कि उनका इशारा किस ओर है।

दूसरी तरफ, ऐसे प्रवक्‍ताओं की दलीलों को राहुल गांधी स्‍वयं ही अपनी अज्ञानता के चलते धता बता देते हैं और सार्वजनिक मंचों से सीधे तौर पर प्रधानमंत्री का नाम पूरी अभद्रता से लेकर उन पर व्‍यक्तिगत आक्षेप करते हैं। ऐसे में कांग्रेस के तमाम प्रवक्‍ता खुद को ठगा हुआ पाते हैं।

अब तो उनकी बेसिर पैर की बातों पर जनता भी हंसने लगी है और उनकी बातों पर कोई विश्‍वास नहीं करता। नेशनल हेराल्‍ड मामले में खुद जमानत पर घूम रहे आरोपी राहुल गांधी किस मुंह से प्रधानमंत्री पर आरोप लगाते हैं, यह समझ से परे है। आने वाले चुनाव परिणाम में जनता निश्‍चित ही राहुल की इस मुद्दाहीन अनर्गल राजनीति को मुंहतोड़ जवाब देगी और देश के लिए एक सही सरकार चुनने की दिशा में मतदान करेगी।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)