महाराष्ट्र की खिचड़ी सरकार के बीच किसी तरह का कोई वैचारिक समन्वय या तालमेल नहीं है। इसके तीनों दल केवल अपने निहित स्वार्थों की सिद्धि करने के लिए एकदूसरे के साथ आकर सत्ता पर कुंडली जमाए हुए हैं। लेकिन इस बेमेल गठबंधन की सरकार का कितना बड़ा खामियाजा महाराष्ट्र को भुगतना पड़ रहा है, ये वहां दिन-प्रतिदिन कोरोना के बढ़ते मामलों और उससे उपजी विद्रूपताओं से समझा जा सकता है।
देश व दुनिया में कोरोना महामारी का कहर है। संक्रमितों एवं मृतकों की संख्या में रोज इजाफा हो रहा है। सरकारी मशीनरी एवं समाज के स्वयंसेवी संगठन अपने स्तर पर यथासंभव कोशिशें कर रहे हैं। स्वास्थ्य अमला जुटा हुआ है, पुलिस एवं प्रशासन ने स्वयं को झोंक दिया है और सरकारी मशीनरी अनथक कार्य में जुटी है।
गली व मोहल्लों में संक्रमण से बचने के लिए लोगों ने शारीरिक दूरी तो बनाई है लेकिन मानसिक दूरी नहीं बनाई है। मुसीबत के फंसे लोगों के लिए कहीं ना कहीं से, मतभेद-मनभेद भुलाकर लोग राशन आदि की मदद पहुंचा रहे हैं। लेकिन यह सब तो गत दो माह से चल रहा है। इसमें नया क्या है। जाहिर है कुछ नहीं।
यदि नया होता तो यह होता कि इस वैश्विक संकट में जहां मानव मात्र की जान बचाया जाना ही एकमात्र ध्येय है, अन्य मुद्दे गौण हैं और हमारे देश की राजनीति में इसके चलते कुछ युगपत बदलाव आता। नया यह होता कि हमारे देश के विपक्षी दल कम से कम इस दौर में तो अपने ओछेपन से उबर पाते और वृहद पैमाने पर देशहित की सोचते। लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं है।
इसलिए नया कुछ नहीं है। जो हुआ है, वह अपेक्षित और अफसोस प्रकट करने जैसा है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, जो बिना सोचे समझे, बिना जाने अनर्गल बयानबाजी के लिए जाने जाते हैं, इस बार भी उन्होंने अपनी इस अपरिपक्वता का प्रदर्शन किया है। महामारी से निपटने के लिए केंद्र सरकार का सहयोग करने की बजाय, उन्होंने यहां भी अपनी घटिया राजनीति शुरू कर दी है।
हैरत है कि उन्हें इस समय भी राजनीति सूझ रही है और इसमें वे अवसर की तलाश कर रहे हैं। कोरोना संक्रमण को काबू में करने के लिए मोदी सरकार ने देश में लॉकडाउन घोषित किया है जिसे दो महीने हो चुके हैं।
विश्व शक्ति अमेरिका में मृतकों का आंकड़ा 1 लाख पार हो चुका है जबकि भारत में अभी भी स्थिति अपेक्षाकृत रूप से नियंत्रण में है। स्वास्थ्य मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के अनुसार कई जोन में अब संक्रमण की ग्रोथ रेट कम हुई है।
पूरा विश्व इस बात को मान रहा है कि कोरोना के घातक संक्रमण से भारत ने अपनी जनता को बहुत प्रभावी तरीके से सुरक्षित बचाया हुआ है। लेकिन राहुल गांधी या विपक्षी दल को यह प्रशंसा हजम नहीं हो रही है। वे लॉकडाउन को विफल बताते हुए सरकार से आगे का ब्लूप्रिंट मांग रहे हैं।
लॉकडाउन के अलावा राहुल गांधी ने लद्दाख के मामले पर भी अपनी अपरिपक्व समझ का परिचय देते हुए बेसिर पैर की बातें शुरू कर दीं। उन्होंने सीमा के हालात को लेकर देश को सब कुछ साफ बताए जाने की सरकार को सलाह दे डाली।
उन्हें तो जैसे पता ही नहीं है कि देश की जनता की प्राथमिकता क्या है और जनता की अपेक्षाएं क्या हैं, वर्ना ऐसी बेमतलब की बात ना कहते। जनता को यह बखूबी इल्म है कि केंद्र सरकार कोरोना और सीमा दोनों मोर्चों पर सजग है, अडिग है और सफल है। बीते सप्ताह भी भारतीय सेना ने सरहद पर कई आतंकी ढेर किए।
जहां तक लद्दाख सीमा पर पनपे तनाव की बात है, भारतीय एवं चीनी सैनिकों के बीच झड़प जरूर हुई लेकिन कमांडर के स्तरों पर वार्ता होने के बाद मामला शांत हो चुका है। वहां हालात पूरी तरह से काबू में हैं। लेकिन राहुल गांधी ना जाने क्यों, इस घड़ी में, ऐसे संवेदनशील मसले पर भी अपनी अधकचरी समझ के साथ गलत माहौल पैदा करने की कोशिश में लगे हैं।
यदि राहुल गांधी अपनी सक्रियता दिखाना ही चाहते हैं, तो जरा महाराष्ट्र की तरफ भी झांककर देख लें कि उनकी कांग्रेस के सहयोग से बनी ठाकरे सरकार के राज में महाराष्ट्र किस स्थिति में पहुंचा हुआ है। अव्वल तो यहां पूरे देश में सर्वाधिक कोरोना के मरीज हैं। महामारी के संक्रमण का यहां जिस तेजी से विस्फोट हुआ, उतना कहीं नहीं हुआ।
दिनों दिन बढ़ते आंकड़ों के चलते ठाकरे सरकार बुरी तरह विफल साबित हो गई है। सत्ता में आने के लिए उद्धव ठाकरे जिस प्रकार लालायित थे, जितने हथकंडे अपना रहे थे, जितने तत्पर थे, वही तत्परता अब कोरोना से निपटने की दिशा में कहीं नज़र नहीं आ रही। लेकिन राहुल गांधी इसपर यह कहते हैं कि उनकी पार्टी राज्य में ‘की-डिसीजन मेकर’ नहीं है। सवाल है कि यदि महाराष्ट्र सरकार के कार्यों के प्रति वे कोई जवाबदेही नहीं रखते, तब वे उस सरकार में कर क्या रहे हैं?
कहने की जरूरत नहीं कि महाराष्ट्र की खिचड़ी सरकार के बीच किसी तरह का कोई वैचारिक समन्वय या तालमेल नहीं है। इसके तीनों दल केवल अपने निहित स्वार्थों की सिद्धि करने के लिए एकदूसरे के साथ आकर सत्ता पर कुंडली जमाए हुए हैं। लेकिन इस बेमेल गठबंधन की सरकार का कितना बड़ा खामियाजा महाराष्ट्र को भुगतना पड़ रहा है, ये वहां दिन-प्रतिदिन कोरोना के बढ़ते मामलों और उससे उपजी विद्रूपताओं से समझा जा सकता है।
अतः केंद्र को नसीहत देने और उससे सवाल पूछने की बजाय राहुल गांधी को महाराष्ट्र जैसे राज्यों की स्थिति पर रुख स्पष्ट करना चाहिए क्योंकि सत्ता में भागीदार रहते हुए वे इनकी जवाबदेही से बच नहीं सकते।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)