क्या यह सही नहीं कि कार्यक्रम में उग्रवादी गोपाल चावला पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के साथ हाथ मिलाता भी दिखाई दे रहा था। कुछ महीनों पहले पाकिस्तान में हाफिज सईद से चावला की मुलाकात की फोटो भी जांच एजेंसियों के हाथ लगी थी, जो खालिस्तान समर्थकों के पाकिस्तान के आतंकी संगठनों से रिश्ते होने की आशंका की पुष्टि करती है। बताया जा रहा है कि गोपाल सिंह चावला पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई और लश्कर-ए-तैयबा के साथ मिलकर पंजाब में आतंक फैलाने की साजिश रच रहा है। और सिद्धू उस चावला के साथ तस्वीर खिंचवा आए।
करतारपुर कॉरिडोर के शिलान्यास कार्यक्रम में शामिल होने के लिए भारत ने अपने प्रतिनिधि अधिकृत तौर पर भेजे थे। यह औपचारिक निर्णय था। लेकिन पंजाब के उपमुख्यमंत्री नवजोत सिंह सिद्धू की पाकिस्तान यात्रा को मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह व कई मंत्रियों ने अनुचित माना था। ऐसे में बेहतर यह था कि सिद्धू वहां न जाते। पिछली यात्रा के दौरान सिद्धू के करतारपुर कॉरिडोर के प्रस्ताव संबन्धी बयान को पाकिस्तान ने झूठा बताया था। लेकिन जब नरेंद्र मोदी ने प्रस्ताव किया तो उसे पाकिस्तान ने स्वीकार कर लिया। ऐसे में निजी प्रतिष्ठा के मद्देनजर भी सिद्धू को वहां नहीं जाना चाहिए था।
पाकिस्तान यात्रा पर लगातार दूसरी बार नवजोत सिंह सिद्धू को फजीहत झेलनी पड़ी है। पहली बार पाकिस्तानी सेना प्रमुख के गले लगने पर उनकी आलोचना हुई थी। पंजाब में आतंकी हिंसा के शिकार हुए परिवारों के परिजनों ने तो उनके खिलाफ विरोध प्रदर्शन तक किया था। इस बार सिद्धू एक खालिस्तानी उग्रवादी से मुलाकात को लेकर बदनाम हुए हैं।
सुब्रमण्यम स्वामी ने तो राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत सिद्धू को गिरफ्तार करने की मांग की है। फिलहाल सिद्धू को यह स्पष्ट करना चाहिए कि वे एक खालिस्तानी उग्रवादी से कैसे मिल लिए। पिछले पाकिस्तान दौरे की तरह ही इस बार भी सिद्धू विवादों में घिर गए। उनके खालिस्तानी आतंकी गोपाल सिंह चावला के साथ फोटो पर विवाद हो रहा है। इस पर सफाई देते हुए सिद्धू ने कहा, गोपाल सिंह चावला कौन है, मैं नहीं जानता। पाकिस्तान में मेरी पांच से दस हजार फोटो खींची गईं। कौन चावला था और कौन चीमा, मुझे नहीं मालूम।
यह ठीक है कि इमरान और सिद्धू दोस्त हैं। लेकिन कोई भी दोस्ती देश से बड़ी नहीं हो सकती। सिद्धू और केंद्रीय मंत्री हरिसिमरत कौर, हरदीप सिंह पूरी के वहाँ जाने की तुलना नहीं हो सकती। समारोह भारत सरकार की पहल के चलते आयोजित हुआ था। इसलिए दो केंद्रीय मंत्रियों ने भारत का प्रतिनिधित्व किया।
अब यह मान भी लें कि सिद्धू उस उग्रवादी को नहीं पहचानते थे। लेकिन उन्हें यह तो स्वीकार करना चाहिए कि पाकिस्तान में आतंकियों को शीर्ष स्तर का संरक्षण मिल रहा है। सेना प्रमुख आतंकियों से मेल-मिलाप रखता है, प्रधानमंत्री इस विषय पर बोलने की हैसियत में नहीं होता। मगर वे तो पाकिस्तान की तरफदारी में लगे हैं।
सिद्धू का यह कहना बेमानी है कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान फरिश्ता बनकर आए हैं। उन्होंने हमारा इस्तकबाल किया। सत्तर वर्षो से दोनों मुल्कों के बॉर्डर बंद हैं। करतारपुर साहिब कॉरिडोर का द्वार खुलने का मतलब है कि अब एक हजार द्वार खुल जाएंगे, दस हजार खिड़कियां खुलेंगी। कजाकिस्तान व उज्बेकिस्तान रूट पर जो ताले लगे हैं, वे भी खुल जाएंगे। इससे दोनों देशों के पंजाब प्रांत सौ साल आगे चले जाएंगे। सिद्धू केवल अपने और अपनी दोस्ती के लिए परेशान हैं।
क्या यह सही नहीं कि कार्यक्रम में उग्रवादी गोपाल चावला पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के साथ हाथ मिलाता भी दिखाई दे रहा था। कुछ महीनों पहले पाकिस्तान में हाफिज सईद से चावला की मुलाकात की फोटो भी जांच एजेंसियों के हाथ लगी थी, जो खालिस्तान समर्थकों के पाकिस्तान के आतंकी संगठनों से रिश्ते होने की आशंका की पुष्टि करती है। बताया जा रहा है कि गोपाल सिंह चावला पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई और लश्कर-ए-तैयबा के साथ मिलकर पंजाब में आतंक फैलाने की साजिश रच रहा है।
केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने नवजोत सिद्धू पर करारा प्रहार किया है। उहोंने सिद्धू को पाकिस्तान का एजेंट करार दिया है। हरसिमरत ने सिद्धू के मामले में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से अपना व पार्टी का रुख स्पष्ट करने को कहा है। इस संबन्ध में कांग्रेस हाई कमान को अपनी स्थिति स्पष्ट करनी होगी। अगर पार्टी सिद्धू की इन गतिविधियों से सहमत नहीं है, तो सवाल यह है कि अबतक उनपर अनुशासनात्मक कार्यवाही क्यों नहीं की गयी?
(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)