यदि राहुल को अमेरिका में जाकर मोदी सरकार की बुराई करना पड़ रही है तो इसका यही अर्थ हुआ कि उनके अपने देश में या तो उनका कोई जनाधार नहीं है, उन्हें कोई सुनने वाला नहीं है या फिर पूरा देश गलत है और वे अकेले ही सही हैं। सवाल यह भी है कि अमेरिका में इस तरह का प्रलाप करने से उन्हें हासिल क्या होगा ? वास्तव में, राहुल गांधी का यह दौरा बौखलाहट की पराकाष्ठा, खिन्नता और वैचारिक दरिद्रता से अलावा कुछ नहीं है।
कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी पिछले सप्ताह अपने अमेरिका दौरे को लेकर चर्चाओं में रहे। वहां यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया, बर्कले में उन्होंने अपना भाषण दिया जिसमें मोदी सरकार की योजनाओं की आलोचना की और खुद को पाक साफ बताया। उन्होंने केंद्र की भाजपा नीत सरकार के तीन साल के कार्यकाल के दौरान हासिल सभी उपलब्धियों को लगभग नकारने के अंदाज में आड़े हाथों लिया। उन्होंने जो भी कहा वह कितना सच है, कितना झूठ यह तो दीगर है, लेकिन सबसे अहम सवाल ये उठता है कि अंदरूनी मसलों पर बोलने के लिए आखिर उन्हें विदेश क्यों जाना पड़ रहा है।
ऐसा किसीने कभी सुना है कि किसी अमेरिकी, जापानी, चीनी, रूसी, जर्मन या ब्रिटिश नेता ने भारत आकर उसके देश की बातें कहीं हों और भारत की जनता से शिकायत दर्ज कराई हो। क्या किसी लोकतांत्रिक देश में यह इससे पहले हुआ है, शायद नहीं। जिस प्रकार से राहुल गांधी ने अमेरिका में जाकर भारत की सरकार की बुराई की, उससे उन्होंने एक बार फिर से अपनी अपरिपक्वता पर मुहर लगा दी और साबित कर दिया कि वे कुछ भी करनी से पहले उसे औचित्य-अनौचित्य के विषय में सोचते नहीं है।
यदि राहुल को अमेरिका में जाकर मोदी सरकार की बुराई करना पड़ रही है तो इसका यही अर्थ हुआ कि उनके अपने देश में या तो उनका कोई जनाधार नहीं है, उन्हें कोई सुनने वाला नहीं है या फिर पूरा देश गलत है और वे अकेले ही सही हैं। सवाल यह भी है कि अमेरिका में इस तरह का प्रलाप करने से उन्हें हासिल क्या होगा ? अमेरिका की जनता तो भारत आकर वोट देने से रही, ना ही अमेरिका के लोग भारत की नागरिकता ले लेंगे। वास्तव में, राहुल गांधी का यह दौरा बौखलाहट की पराकाष्ठा, खिन्नता और वैचारिक दरिद्रता के अलावा और कोई सन्देश नहीं देता।
मोदी वक्तृत्व से नहीं, अपने काम से लोकप्रिय हैं
अमेरिकी दौरे पर गए राहुल ने हालांकि यह जरूर कहा कि पीएम मोदी उनसे बेहतर वक्ता हैं, लेकिन यह बात इतनी प्राथमिक है कि इसे अमेरिका जैसे वैश्विक मंच पर कहने में कोई सार नहीं है। निश्चित ही मोदी एक कुशल वक्ता हैं, लेकिन वे अपने वक्ता होने के कारण नहीं बल्कि अपनी लंबी, बेदाग सेवाओं के चलते देश के प्रधानमंत्री चुने गए हैं और साढ़े तीन साल प्रधानमंत्री रहने के बावजूद यदि उनकी लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई बल्कि वृद्धि ही हुई है, तो ये उनके शासन की सफलता का ही सूचक है। ऐसे में राहुल का वक्ता होने की बात का जिक्र करना अप्रासंगिक है।
सत्ता परिवर्तन के बाद शुरू हुआ आतंकियों का सफाया
इसके बाद राहुल ने कहा कि उन्होंने मनमोहन सिंह, पी चिदंबरम, जयराम रमेश व अन्य लोगों के साथ मिलकर 2013 में आतंकवाद का खात्मा करना शुरू किया था। राहुल की यह बात कपोल कल्पित व सफेद झूठ इसलिए साबित होती है क्योंकि सीमा पार आतंकवाद के खिलाफ भारतीय सेना का कड़ा रूख देश की सत्ता बदलने के बाद ही सामने आया। ऐसा नहीं है कि इसके पहले सेना सक्षम नहीं थी; देश की सेना तो सदा सक्षम रही है, लेकिन नेतृत्व रीढ़हीन था।
2014 में सत्ता बदली तो सेना को संबल मिला। यही कारण है कि भारतीय सेना ने म्यामार की सीमा में घुसकर दुश्मनों को मार गिराया था और जवानों की शहादत का बदला लिया था। इसी तरह जब पाकिस्तानी आतंकियों ने उरी के आर्मी बेस पर हमला किया तब भारत ने दस दिन बाद ही सर्जिकल स्ट्राइक जैसे बड़े सैन्य ऑपरेशन को सफलतापूर्वक अंजाम देते हुए शहीदों का प्रतिशोध लिया और पूरे देश ने जिस गर्व को अनुभूत किया, उसे बयां नहीं किया जा सकता। ऐसा गौरव कांग्रेस की सरकार में कभी महसूस नहीं किया गया। राहुल के इस बयान के एक दिन बाद ही अमरनाथ आतंकी हमले के मास्टरमाइंड अबु इस्माइल को सेना ने मार गिराया।
ऐसा लगता है कि राहुल गांधी शायद अखबार नहीं पढ़ते होंगे और ना ही उनकी पार्टी के लोग उन्हें यह बताना उचित समझते होंगे कि पिछले तीन-चार महीने में सेना ने एक के बाद लगातार बड़ी सफलताएं हासिल करते हुए क्रमवार आतंकी कमांडरों और आतंकियों का सफाया किया है। हर दूसरे दिन के अखबार आदि संचार माध्यम इन सूचनाओं से भरे पड़े हैं। ये सारे तथ्य राहुल गांधी की बयानबानी को सिरे से खारिज करते हैं।
वंशवाद की बुराई के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं राहुल
वंशवाद के मसले पर राहुल ने कहा कि पूरे देश में वंशवाद चल रहा है। उन्होंने अखिलेश यादव, अभिषेक बच्चन, मुकेश अम्बानी आदि का उदाहरण दिया। वंशवाद का बचाव करने की उनकी यह कोशिश बेहद खोखली है। राजनीति में वंशवाद एक बुराई है और राहुल से बड़ा इसका कोई उदाहरण नहीं मिल सकता। इस देश में गांधी परिवार वंशवाद की सबसे बुरी व सटीक मिसाल रहा है।
पिछले 70 सालों में इस नेहरू-गांधी परिवार ने देश को अपनी निजी बपौती मानकर रखा और पिछड़ेपन की गर्त में ढकेलने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यदि राहुल नेहरू-गाँधी परिवार के वंशज नहीं होते तो उनकी व्यक्तिगत उपलबिध क्या है, इसपर भी उन्हें बर्कले में बोलना चाहिए था। उनमें ना नेतृत्व क्षमता है, ना दूरदर्शिता ना ही प्रतिभा। वे एकदम आशाहीन, दिशाहीन हैं। कहना न होगा कि वंशवाद के बचाव और अपने बड़बोलेपन के चक्कर में जिन तर्कों को उन्होंने गढ़ा, वे उन्हीकी पोल-पट्टी खोलने वाले हैं।
कांग्रेस का अहंकार
हालांकि राहुल ने अमेरिका में कम से कम यह सच तो स्वीकार ही लिया कि कांग्रेस लगातार अपने अहंकार के कारण हारी। उन्होंने कहा कि 2012 तक कांग्रेस दंभ में थी, इसलिए हानि हुई। लेकिन इसके बाद के तथ्य कहते हैं कि कांग्रेस इसके बाद भी बुरी तरह धराशायी हुई और कभी उबर नहीं सकी। और रही अहंकार की बात तो कांग्रेस का रवैया आज भी अहंकारी ही है, जिसे शायद राहुल देखकर भी अनदेखा कर रहे हैं।
इन सबके अलावा नोटबंदी को लेकर भी राहुल ने सरकार पर निशाना साधा, लेकिन वे अपनी बात फिर भी ठीक से रख नहीं सके, क्योंकि नोटबंदी से हुए दीगर लाभों की रिपोर्ट लगातार विश्व के सामने आ रही है। सांप्रदायिकता पर बोलते हुए राहुल ने कहा कि मोदी सरकार में सांप्रदायिक ताकतें मजबूत हो रही हैं। कहना न होगा कि ये उनकी पार्टी का रटा-रटाया आरोप है, जिसे उन्होंने बर्कले में भी दोहरा दिया। रही बात अल्पसंख्यकों की, तो मोदी सरकार ने इस वर्ग के उन्नयन का ही कार्य किया है। तीन तलाक जैसी कुप्रथा पर रोक लगाना इसका श्रेष्ठ उदाहरण है। कांग्रेस के समय में तीन तलाक पर रोक लगना तो दूर, इसका जिक्र भी नहीं किया जाता था। सरकार किसीका तुष्टिकरण नहीं कर रही, बल्कि संविधान के हिसाब से समानतापूर्वक सभी के हितों के लिए कार्य कर रही है।
विवादित तथाकथित पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या पर राहुल ने कहा कि लिबरल जर्नलिस्ट की हत्या हुई। राहुल को पता होगा कि अभी तक इस हत्याकांड का खुलासा नहीं हुआ है, हालांकि एक नक्सली पर ही मृतिका के भाई ने शंका व्यक्त की है। नक्सली किसी भी राज्य के ना तो मतदाता होते हैं ना नागरिक। नक्सली यदि किसी पत्रकार की हत्या करते हैं तो वे सुरक्षाबलों को भी निशाना बनाते हैं। इस मामले में सरकार को बीच में लाना केवल मानसिक खोखलेपन का ही परिचायक है।
अंत में उन्होंने खुद ही खुद को प्रधानमंत्री बनने योग्य बताते हुए यह घोषणा कर दी कि वे प्रधानमंत्री बनने के लिए तैयार हैं। ऐसा कहते हुए वे शायद भूल गए कि लोकतंत्र में एमपी से पीएम तक सबकुछ जनता तय करती है और उनका भविष्य भी जनता ही तय करेगी और वो जनता अमेरिका की नहीं, भारत की होगी।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)