राहुल गांधी का सोमनाथ मंदिर में गैर-हिन्दू के रूप में प्रवेश गलती है या राजनीति !

सवाल यह है कि राहुल का सोमनाथ मंदिर के गैर-हिदू रजिस्टर में नाम लिखना गलती से हुआ या दोनों हाथ से लड्डू खाने की राजनीति के चक्कर में। बहरहाल, राहुल गांधी क्या हैं, क्या नहीं हैं, कौन सा धर्म फॉलो करते हैं, शायद किसी भारतीय मतदाता ने उनसे नहीं पूछा होगा, लेकिन कांग्रेस के सलाहकारों में अब ऐसे लोग हैं, जो कांग्रेस नेता राहुल गांधी को जनेऊधारी हिन्दू साबित करने पर उतारू हो गए हैं।

राहुल गांधी शायद मंदिरों का दौरा करते-करते थक गए हैं, वर्ना वो ऐसी गलती नहीं करते जैसी कि उन्होंने सोमनाथ मंदिर में की। यह एक ऐतिहासिक भूल है, जिसका खामियाजा कांग्रेस पार्टी और राहुल गाँधी को भुगतना पड़ सकता है। दरअसल, गुजरात के सोमनाथ मंदिर में दर्शन करने से पहले राहुल गाँधी का नाम उनके साथी ने एक ऐसे रजिस्टर में लिख दिया गया जिसमें एंट्री सिर्फ गैर-हिन्दू ही करते हैं। राहुल गांधी का नाम उनके मार्गदर्शक अहमद पटेल के नाम के साथ उसी रजिस्टर में लिखा गया। 

अहमद पटेल ने गलत नहीं किया क्योंकि उनको पता है कि वह कौन सा धर्मं फॉलो करते हैं, मगर क्या राहुल गाँधी को नहीं पता था कि उनका धर्म क्या है? बाद में में जब डैमेज होता दिखा दिखा तो कांग्रेस को उसके कण्ट्रोल के लिए प्रेस कांफ्रेंस कर बताना पड़ा कि राहुल गांधी गैर-हिन्दू नहीं हैं, वह तो जनेऊधारी हिन्दू हैं।  

सोमनाथ मंदिर में राहुल गांधी

सोमनाथ ट्रस्ट ने 2015 में यह नियम बनाया था कि जो हिन्दू नहीं हैं उनको मंदिर में प्रवेश करने से पहले अपने नाम की एंट्री करनी होगी।  सवाल यह है कि क्या राहुल गाँधी का उस तथाकथित सेकुलरिज्म जिसकी दुहाई कांग्रेस पार्टी लगातार देती रहती है, से अब विश्वास उठ गया है? क्या उन्हें गुजरात में हार का डर इस कदर सता रहा है कि वह खुद को हिन्दू धर्म के बहुत बड़े पैरोकार के तौर पर दिखाने के चक्कर में दुबले हुए जा रहे हैं?

सवाल यह है कि राहुल का सोमनाथ मंदिर के गैर-हिदू रजिस्टर में नाम दर्ज होना गलती से हुआ या दोनों हाथ से लड्डू खाने की राजनीति के चक्कर में किया गया ? बहरहाल, राहुल गांधी क्या हैं, क्या नहीं हैं, कौन सा धर्म फॉलो करते हैं, शायद किसी भारतीय मतदाता ने उनसे नहीं पूछा होगा, लेकिन कांग्रेस के सलाहकारों में अब ऐसे लोग हैं, जो कांग्रेस नेता राहुल गांधी को जनेऊधारी हिन्दू साबित करने पर उतारू हो गए हैं।

एक तथ्य यह भी है कि नेहरू ने नहीं, सरदार पटेल ने सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था। यह बात तो गुजरात में बच्चा-बच्चा जानता है। साथ ही, यह बात भी कि देश के पहले प्रधानमंत्री इस मंदिर को बनवाने के पक्ष में नहीं थे। कल से यह विवाद सामने आया है, उसके बाद से इंटरनेट पर एक पत्र भी लगातार प्रसारित हो रहा है, जिसको पढ़ने पर जाहिर होता है कि नेहरू कतई नहीं चाहते थे कि देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद मंदिर के पुनर्निर्माण के कार्यक्रम में जाएं।

सी. राजगोपालाचारी को लिखे अपने पत्र में तो राजेंद्र प्रसाद के सोमनाथ यात्रा पर ही नेहरू ने सीधा-सीधा सवाल उठा दिया था। नेहरू लिखते हैं कि राजेंद्र बाबू को ऐसे कार्यक्रमों से खुद को अलग रखना चाहिए। आज सोमनाथ मंदिर के फेरे लगा रही कांग्रेस को देश की जनता और गुजरात के मतदाताओं को बताना चाहिए कि आखिर नेहरू को सोमनाथ मंदिर से इतनी दिक्कत क्यों थी?

सोमनाथ मंदिर के इतिहास की बात करें तो मुस्लिम आक्रान्ता मोहम्मद गज़नी ने इस मंदिर को अनेक बार ध्वस्त किया। इस मंदिर को क्यों खंडित किया गया, क्यों लूटा गया, क्यों नेस्तनाबूद किया गया? यह सवाल राहुल गाँधी या नेहरू के हिन्दू होने या न होने से ज्यादा देश की अस्मिता से जुड़ा हुआ है। इस जनभावना को ध्यान में रखकर ही सरदार पटेल ने इस ऐतिहासिक मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। भाजपा के शीर्ष नेता इस मंदिर के सालाना कार्यक्रम में हर वर्ष जाते हैं और और उन्हें यह देखने या दिखाने की जरूरत नहीं होती है कि वह हिन्दू हैं या नहीं।

दरअसल यह राहुल गांधी की असुरक्षा है, जिसको छुपाने के लिए राहुल गांधी मंदिर-मंदिर का फेरा लगा रहे हैं। अगर आप उनके मंदिर के फेरों की संख्या पर नजर डालेंगे तो आप भी चकित रह जायेंगे। क्या इसके पीछे कांग्रेस नेता ए. के. एंटनी का वह बयान तो नहीं जिसमें उन्होंने कहा था कि देश की जनता को सेकुलरिज्म से यकीन उठ गया है?

गुजरात चुनाव के आखिरी बेला में अब एंटनी साहब की वह बात शायद राहुल को सच लगने लगी है। बस इसीलिए वे मंदिर-मंदिर का फेरा लगाकर हिन्दुओं के ध्रुवीकरण की कोशिश में लगे हैं। इससे पहले तो उन्हें मंदिर जाने वाले छेड़खानी करने वाले लगते थे। कांग्रेस राहुल गाँधी के नेतृत्व में लगातार चुनाव हार रही है, अब जब राहुल गाँधी की कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर ताजपोशी होने वाली है, तो वह जीत की खोज में हर दाँव आजमाने की कोशिश में लग गए हैं।  

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)